अयोध्या केस LIVE / सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच आज 10:30 बजे फैसला सुनाएगी, 6 राज्यों में स्कूल-कॉलेज बंद

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  • सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन सुनवाई हुई, हिंदू-मुस्लिम पक्ष की 160 घंटे से ज्यादा समय की दलीलें सुनने के बाद 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रखा गया
  • प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- अयोध्या पर जो भी फैसला आएगा, वह किसी की हार या जीत नहीं होगा
  • देशभर में कड़ी सुरक्षा, उप्र, मप्र समेत कई राज्यों में आज स्कूल-कॉलेज बंद; अयोध्या में सुरक्षा बलों की 47 कंपनियां तैनात

अयोध्या/नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ शनिवार को अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाएगी। न्यूज एजेंसी के मुताबिक, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ सुबह 10.30 पर फैसला सुना देगी। 6 अगस्त से 16 अक्टूबर तक 40 दिन तक हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

फैसले के मद्देनजर अयोध्या में सुरक्षा बढ़ा दी गई और धारा 144 लागू कर दी गई है। राज्यों को भी अलर्ट भेजा गया है। उत्तर प्रदेश में 3 दिन तक स्कूल-कॉलेज बंद रहेंगे, लेकिन अयोध्या में रामलला के दर्शनों पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है। मध्य प्रदेश में भी फैसले के मद्देनजर शनिवार को स्कूल-कॉलेज बंद रहेंगे।

  • कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और दिल्ली में भी शनिवार को स्कूल बंद रहेंगे
  • उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ और मुजफ्फरनगर, राजस्थान के भरतपुर में शनिवार को इंटरनेट बंद

ये फैसला भारत की शांति, एकता और सद्भावना को और बल दे: मोदी 
मोदी ने कहा- अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, वो किसी की हार-जीत नहीं होगा। देशवासियों से मेरी अपील है कि हम सब की यह प्राथमिकता रहे कि ये फैसला भारत की शांति, एकता और सद्भावना की महान परंपरा को और बल दे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटने के लिए कहा था
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान बांट दिया जाए। एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा रामलला विराजमान को मिले। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

40 दिन तक सुनवाई के दौरान 6 प्रमुख बिंदुओं पर हिंदू-मुस्लिम पक्ष की दलीलें

संविधान पीठ के न्यायाधीश
अयोध्या मामले पर सुनवाई कर रही संविधान पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस रंजन गोगोई कर रहे हैं। उनके अलावा इस बेंच में जस्टिस एसए बोबोडे,  जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

अयोध्या विवाद : 1526 से अब तक 

1526 : इतिहासकारों के मुताबिक, बाबर इब्राहिम लोदी से जंग लड़ने 1526 में भारत आया था। बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने 1528 में अयोध्या में मस्जिद बनवाई। बाबर के सम्मान में इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया।
1853 : अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की। हिंदू समुदाय ने कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई।
1949 : विवादित स्थल पर सेंट्रल डोम के नीचे रामलला की मूर्ति स्थापित की गई।
1950 : हिंदू महासभा के वकील गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा का अधिकार देने की मांग की।
1959 : निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक जताया।
1961 : सुन्नी वक्फ बोर्ड (सेंट्रल) ने मूर्ति स्थापित किए जाने के खिलाफ कोर्ट में अर्जी लगाई और मस्जिद व आसपास की जमीन पर अपना हक जताया।
1981 : उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने जमीन के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
1885 : फैजाबाद की जिला अदालत ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की महंत रघुबीर दास की अर्जी ठुकराई।
1989 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बरकरार रखने को कहा।
1992 : अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया।
2002 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित ढांचे वाली जमीन के मालिकाना हक को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
2010 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2:1 से फैसला दिया और विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बराबर बांट दिया।
2011 : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
2016 : सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की इजाजत मांगी।
2018 : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
6 अगस्त 2019 : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर हिंदू और मुस्लिम पक्ष की अपीलों पर सुनवाई शुरू की।
16 अक्टूबर 2019 : सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई पूरी हुई।


अयोध्या पर 2010 का फैसला / जजों ने कहा था- यह जमीन का छोटा-सा टुकड़ा है, जहां देवदूत भी पैर रखने से डरते हैं

नई दिल्ली. 30 सितंबर 2010। यही वह दिन था, जब अयोध्या विवाद पर पहली बार कोई बड़ा अदालती फैसला आया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने अयोध्या की 2.77 एकड़ विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में मुस्लिमों, रामलला और निर्मोही अखाड़े में बराबर बांट दिया था। इसी फैसले को बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला सुनाने वाले जस्टिस एसयू खान ने 285 पेज के अपने फैसले में टिप्पणी की थी, ‘‘यह जमीन का छोटा-सा टुकड़ा है, जहां देवदूत भी पैर रखने से डरते हैं। हम वह फैसला दे रहे हैं, जिसके लिए पूरा देश सांस थामें बैठा है।’’

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जज की टिप्पणी
जस्टिस एसयू खान ने लिखा था, ‘‘यह जमीन का छोटा-सा टुकड़ा है, जहां देवदूत भी पैर रखने से डरते हैं। 1500 वर्ग गज का यह टुकड़ा बारूदी सुरंग की तरह है, जिसे मैंने और मेरे सहयोगी जजों ने साफ करने की कोशिश की है। कुछ बहुत समझदार लोगों ने हमें ऐसा न करने की सलाह भी दी कि कहीं हमारे परखच्चे न उड़ जाएं, लेकिन हमें जोखिम लेने पड़ते हैं। जिंदगी में यह भी जोखिम ही है कि हम कोई जोखिम न उठाएं। जज के तौर पर हम यह फैसला नहीं करते कि हमारी कोशिशें कामयाब हुईं या नाकाम। जब कभी देवदूतों को इंसान के आगे झुकना पड़ता है तो कभी-कभी उनके सम्मान को न्याय संगत भी ठहराना पड़ता है। यह ऐसा ही एक मौका है। हम कामयाब हुए हैं या नाकाम? खुद के मामले में कोई जज यह नहीं कह सकता। हम वह फैसला दे रहे हैं, जिसके लिए पूरा देश सांस थामें बैठा है।’’

2.77 एकड़ की जमीन को इस तरह बांटा गया

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि विवादित स्थल पर मुस्लिमों, हिंदुओं और निर्मोही अखाड़े का संयुक्त मालिकाना हक है। इसका नक्शा कोर्ट द्वारा नियुक्त आयुक्त शिवशंकर लाल ने तैयार किया था।
  • हाईकोर्ट ने कहा था कि 2.77 एकड़ विवादित भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान स्थल का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन पक्षों के बीच बराबर हिस्सों में बांटा जाए।
  • तीन गुंबद वाले ढांचे के केंद्रीय गुंबद के नीचे वाला स्थान हिंदुओं का है। यहां वर्तमान में रामलला की मूर्ति है। यह हिस्सा हिंदुओं को आवंटित किया जाए।
  • निर्मोही अखाड़े को राम चबूतरा और सीता रसोई सहित उसका हिस्सा दिया जाएगा।
  • पक्षकारों को उनके हिस्से की जमीन का आवंटन करते वक्त यदि मामूली संशोधन करने पड़े तो संबंधित पक्षकार के नुकसान की भरपाई सरकार द्वारा पास में अधिगृहित की गई जमीन के हिस्से से होगी।
  • जस्टिस खान और सुधीर अग्रवाल ने फैसले में कहा कि इस स्थान पर मुसलमान नमाज पढ़ते थे, इसलिए उन्हें जमीन का तीसरा हिस्सा दिया जाए।

कोर्ट की ऑफिशियल ब्रीफिंग
1. क्या विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थल है?

विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थल है। जन्मस्थल वैधानिक और पूज्य है। इसे भगवान राम के जन्मस्थल के तौर पर पूजा जाता है। परमात्मा का भाव हरदम हर जगह हर किसी के लिए मौजूद रहता है। किसी भी आकार में व्यक्ति की आकांक्षा के मुताबिक या निराकार भी हो सकता है।

2. क्या विवादित इमारत एक मस्जिद थी? इसे कब-किसने बनाया?
विवादित इमारत का निर्माण बाबर ने कराया था। निर्माण के वर्ष को लेकर असमंजस है लेकिन यह इस्लाम के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं बनाई गई थी। इसलिए इसे मस्जिद की तरह नहीं माना जा सकता।

3. क्या मस्जिद एक हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी?
विवादित ढांचा, पुराने ढांचे को तोड़कर उसके स्थान पर बनाया गया था। पुरातत्व विभाग इसकी पुष्टि कर चुका है कि ढांचा एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा था।

4. क्या मूर्तियां इमारत में 1949 में रखी गई थीं?
मूर्तियां 22-23 दिसंबर 1949 की दरमियानी रात विवादित ढांचे के बीच गुंबद के नीचे रखी गई थीं।

5. विवादित स्थान की स्थिति (उदाहरण के लिए भीतरी और बाहरी भाग) क्या रहेगी?
यह स्थापित हो चुका है कि मामले की जमीन रामजन्मभूमि स्थल है और हिंदुओं को चरण, सीता रसोई, अन्य मूर्तियों और अन्य पूजा स्थलों पर पूजा का अधिकार है। यह भी स्थापित हो चुका है कि हिंदू विवादित स्थल को भगवान राम का जन्मस्थान मानकर वहां पूजा करते रहे हैं और बहुत पुराने समय से पवित्र तीर्थस्थल मानकर यहां आते रहे हैं। विवादित ढांचे के निर्माण के बाद यह साबित हो चुका है कि मूर्तियां यहां 22-23 दिसंबर 1949 की दरमियानी रात को रखी गईं। यह भी साबित हो चुका है कि बाहरी भाग हिंदुओं के कब्जे में रहा है और वे वहां पर पूजा भी करते रहे हैं। यह भी स्थापित हो चुका है कि विवादित ढांचे को मस्जिद नहीं माना जा सकता क्योंकि वह इस्लाम के सिद्धांतों के अनुरुप नहीं बनाई गई थी।

जस्टिस सुधीर अग्रवाल के फैसले की मुख्य बातें
विवादास्पद स्थान के अंतर्गत केंद्रीय गुंबद के दायरे में आने वाला क्षेत्र भगवान राम का जन्मस्थान है, जैसा कि हिंदू धर्मावलंबी सोचते हैं। विवादास्पद स्थान को हमेशा मस्जिद की तरह माना गया और वहां मुस्लिमों ने नमाज पढ़ी। लेकिन यह साबित नहीं हुआ कि यह बाबर के समय 1528 में बनाई गई थी।

जस्टिस एसयू खान के फैसले की मुख्य बातें
मस्जिद बनाने के लिए किसी मंदिर को तोड़ा नहीं गया। मंदिर के अवशेष पर मस्जिद का निर्माण हुआ था। हालांकि, मस्जिद का निर्माण बहुत बाद में हुआ। मस्जिद के निर्माण में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ था। मस्जिद बनने से पहले लंबे समय तक हिंदू विवादित जमीन के हिस्से को भगवान राम का जन्मस्थान मानते रहे हैं।

जस्टिस धर्मवीर शर्मा के फैसले की मुख्य बातें
पूरा विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है। मुगल बादशाह द्वारा बनवाई गई विवादित इमारत का ढांचा इस्लामी कानून के खिलाफ था और इस्लामी मूल्यों के अनुरूप नहीं था।

पहले याचिकाकर्ता को फैसला मान्य था
“”मैं इस फैसले का इस्तकबाल करता हूं। मैंने वादा किया था कि कोर्ट का जो भी फैसला होगा, वो मुझे मंजूर होगा। मैं इस पर कायम हूं। अब इस फैसले के बाद बाबरी मस्जिद के नाम पर चल रहा राजनीतिक अखाड़ा बंद हो जाना चाहिए।

हाशिम अंसारी, विवाद के पहले याचिकाकर्ता

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