8
लुधियाना. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या में शामिल बब्बर खालसा के बलवंत सिंह राजोआना की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का महत्वपूर्ण फैसला लिया है। इसके अलावा आठ अन्य की रिहाई के आदेश दे दिए गए हैं। यह फैसला गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव पर मानवीय स्नेह के आधार पर लिया गया है। इस पर लुधियाना में दाखां उप चुनाव के लिए कैप्टन संदीप संधू का नामांकन दाखिल करवाने पहुंचे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार ने सजा माफी के लिए टाडा के अंतर्गत सजा काट रहे लोगोंं की लिस्ट मांगी तो उन्होंने 17 लोगोंं के नाम भेजे थे। सीएम ने कहा जिन लोगोंं की सजा माफ हुई है, उस संबंधी उनके पास अभी केंद्र से कोई लिस्ट नहीं आई है। कैप्टन ने कहा कि उन्होंने 2012 में कह दिया था कि वह फांसी की सजा के खिलाफ हैं। आतंकियोंं की सजा माफी पर माहौल खराब होने की आशंका संबंधी पूछे सवाल पर कैप्टन ने कहा, ”मैं पुराना फौजी हांं सब नूंं ठीक कर दूंं।”
31 अगस्त, 1995 को पूर्व मुख्यमंत्री की थी हत्या
दरअसल चंडीगढ़ में सिविल सचिवालय के बाहर 31 अगस्त, 1995 को हत्या कर दी गई थी। आतंकियों ने उनकी कार को बम से उड़ा दिया था। इस घटना में 16 अन्य लोगों की भी मौत हुई थी। पंजाब पुलिस के कर्मचारी दिलावर सिंह ने इस घटना में मानव बम की भूमिका निभाई थी, जबकि बलवंत सिंह राजोआना ने उसके साथ साजिश रची थी। राजोआना दिलावर के असफल रहने पर बैकअप की भूमिका में था। यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि राजोआना ने अपने बचाव में कोई वकील नहीं किया था और न ही फांसी कि सजा माफ करने की अपील की थी।
पंजाब-हरियाणा की राजनीति पर असर डालेगा फैसला
केंद्र सरकार का यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भाजपा ने लोकसभा चुनाव के बाद पंजाब में अपना सीटों के रूप में हिस्सा बढ़ाने की मांग की दी। अभी इस पर फैसला होना बाकी है। हरियाणा में भी भाजपा ने अकाली दल की एक साथ लडऩे की मांग को घास नहीं डाली है। हरियाणा में 10 फीसद से ज्यादा सिखों की आबादी है। निश्चित रूप से भाजपा नीत एनडीए सरकार का यह फैसला सिख वोट बैंक पर प्रभाव डालेगा। भाजपा ने हरियाणा में शिरोमणि अकाली दल के एकमात्र विधायक बलकौर सिंह को अपने में शामिल कर लिया है। इसका शिअद ने यह कहते हुए विरोध किया कि यह गठबंधन धर्म के खिलाफ है। केंद्र के इस फैसले से पंजाब की राजनीति में भी असर पडऩे की संभावना है।
कानूनी उलझनों में फंसता रहा है फांसी का मामला
राजोआना की फांसी का मामला कई कानूनी उलझनों में फंसता रहा है। उसे 31 मार्च, 2012 को फांसी मुकर्रर की गई थी, लेकिन केंद्र सरकार ने इस पर रोक लगा दी थी। सीबीआइ ने इसका विरोध किया था। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने भी कहा था कि राज्य सरकार राजोआना को फांसी देने के हक में नहीं है। उन्होंने अपील की थी कि पंजाब में अमन, एकता और भाईचारा हर स्थिति में कायम रखने के लिए मामले में मानवीय और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाए।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने भी राजोआना की फांसी की सजा की माफी के लिए राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी थी। बलवंत सिंह राजोआना की मुंहबोली बहन कमलजीत कौर ने राजोआना का एक पत्र सार्वजनिक किया था, जिसमें राजोआना ने कहा था कि उसे सरकार की हमदर्दी नहीं चाहिए। उसने अपने गुनाह के लिए जो सजा मांगी है, उसे उसी दिन, तारीख और समय पर दी जाए। फांसी की सजा रद करने की मांग को लेकर पंजाब में कई संगठनों ने प्रदर्शन भी किया था।
एसजीपीसी ने किया स्वागत
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने कहा है कि भारत सरकार के आठ सिख कैदियों की रिहाई और पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने के फैसले का एसजीपीसी स्वागत करती है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का धन्यवाद। अब सरकार को शेष रह गए सिख कैदियों रिहा करने के लिए पहल करनी चाहिए।