‘हाउडी मोदी’ में नमो-नमो करते दिखेंगे डोनाल्ड ट्रंप, ऐसे साधेंगे अपना चुनावी गणित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को अमेरिका के टेक्सास राज्य के ह्यूस्टन शहर में 50,000 भारतीय-अमेरिकियों को संबोधित करेंगे. इस बार उनके कार्यक्रम में अमेरिका के राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के नेता डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल होंगे.

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  • हिलेरी के पक्ष में रहे 57.6 % भारतीय
  • भारतीयों में घट रही डेमोक्रैट के प्रति लोकप्रियता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को अमेरिका के टेक्सास राज्य के ह्यूस्टन शहर में 50,000 भारतीय-अमेरिकियों को संबोधित करेंगे. इस बार उनके कार्यक्रम में अमेरिका के राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के नेता डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल होंगे.

एक तरफ जहां टेक्सास में होने वाले इस कार्यक्रम से भारत-अमेरिका के रिश्तों में और मजबूती की उम्मीदें की जा रही हैं तो वहीं राजनीतिक लिहाज से भी इस कार्यक्रम को महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है.

इंडिया टुडे के डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने 2016 में हुए अमेरिका के चुनावों का आकलन किया और पाया कि भारतीय-अमेरिकियों ने चुनावों में ट्रंप को नहीं वोट दिया था.

भारतीय अमेरिकियों की आबादी

अमेरिकन कम्युनिटी सर्वे 2017 के अनुसार अमेरिका में लगभग 40 लाख भारतीय-अमेरिकी हैं जो उनकी जनसंख्या का 1.3 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं.

अगर सिर्फ आबादी के हिसाब से देखा जाए तो सबसे बड़ी संख्या में कैलिफोर्निया में 7.3 लाख भारतीय अमेरिकी रहते हैं. कैलिफोर्निया के बाद आता है न्यूयॉर्क, जहां 3.7 लाख भारतीय हैं. उसके बाद आता है न्यू जर्सी (3.7 लाख), टेक्सास (3.5 लाख), इलेनॉइस (2.3 लाख) और फ्लोरिडा (1.5 लाख).

अमेरिका के 50 राज्यों में से 16 राज्य ऐसे थे जहां भारतीय अमेरिकियों की आबादी 1 प्रतिशत से ज्यादा थी.

फीसदी के हिसाब से देखें तो न्यू जर्सी में भारतीय-अमेरिकियों का प्रतिशत सबसे ज्यादा था. न्यू जर्सी में 4.1 प्रतिशत आबादी भारतीय-अमेरिकियों की थी. न्यू जर्सी के बाद आते हैं रोड आइलैंड न्यू यॉर्क, इलेनॉइस कैलिफोर्निया और डेलावेर शहर, जहां भारतीयों की आबादी का प्रतिशत सबसे ज्यादा था.

वे 16 राज्य जहां भारतीय अमेरिकियों की संख्या 1 प्रतिशत से ज्यादा थी, उनमें से 10 राज्यों के नागरिकों ने 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की विरोधी हिलेरी क्लिंटन को वोट दिया था और सिर्फ 6 राज्यों ने ही डोनाल्ड ट्रंप को समर्थन दिया.

अमेरिका में रह रहे भारतीयों के वोटिंग पैटर्न को समझने के लिए DIU ने दो सर्वे का अध्ययन किया. पहला UPI/CVoter और दूसरा 2016 के चुनाव के पहले एशियाई अमेरिकी सामुदायिक सर्वे (NAAS). दोनों सर्वे में यह साफ हो गया कि भारतीय-अमेरिकियों ने बढ़-चढ़कर क्लिंटन की पार्टी (डेमोक्रैट) को समर्थन दिया था, ट्रंप को नहीं.

हिलेरी के पक्ष में रहे 57.6 % भारतीय

UPI/CVoter के सर्वे में पाया गया कि 57.6 प्रतिशत भारतीयों ने हिलेरी क्लिंटन को राष्ट्रपति बनाने के लिए वोट दिया और लगभग 29 प्रतिशत ने ट्रंप को. सर्वे में यह भी पाया गया कि बाकी अल्पसंख्यकों की तुलना में सामूहिक रूप से भारतीय अमेरिकियों का झुकाव क्लिंटन के लिए सबसे कमजोर था. सिर्फ 57.6 प्रतिशत भारतीय अमेरिकियों ने क्लिंटन को समर्थन दिया, वहीं लगभग 90 प्रतिशत अफ्रीकी-अमेरिकियों ने क्लिंटन को समर्थन दिया. क्लिंटन को 75.3 प्रतिशत हिस्पैनिक और 72 प्रतिशत अन्य एशियाई वोटरों ने समर्थन दिया.

NAAS सर्वे में कुछ और ही पाया गया. NAAS सर्वे के अनुसार, 77 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों ने हिलेरी क्लिंटन को समर्थन दिया और ट्रंप को सिर्फ 16 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों ने समर्थन दिया.

NAAS सर्वे ने यह भी बताया कि 31 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकी अपने आप को कट्टर डेमोक्रैट मानते थे, तो वहीं अपने आप को कट्टर रिपब्लिकन (या ट्रंप सपोर्टर) मानने वालों की संख्या मात्र 4 प्रतिशत ही थी.

एकता में अनेकता

उन राज्यों में जहां भारतीय-अमेरिकियों की संख्या ज्यादा थी, वहां वे चुनावों में वोटों को लेकर बंटे हुए थे.

सबसे ज्यादा भारतीय-अमेरिकियों वाले न्यू जर्सी के भारतीय वोटर काफी हद तक बंटे हुए थे. न्यू जर्सी में 53.7 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों ने क्लिंटन को समर्थन दिया, वहीं 25.2 प्रतिशत ने ट्रंप को समर्थन दिया. 16 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों ने अन्य उम्मीदवारों को समर्थन दिया और 4.9 प्रतिशत ने कोई राय नहीं दी.

न्यू यॉर्क में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. ट्रंप और क्लिंटन को समर्थन देने वाले भारतीय 2 हिस्सों में बंटे हुए थे. यहां तक कि टेक्सास में भी, जहां ट्रंप और मोदी मिल रहे हैं. 62.5 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों ने क्लिंटन का साथ दिया, 18.8 प्रतिशत ने ट्रंप और 18.7 प्रतिशत ने अन्य को समर्थन दिया.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो, नीलांजन सरकार का मानना है कि भारतीय-अमेरिकी वोटर ज्यादातर डेमोक्रैट पार्टी को समर्थन देते हैं. नीलांजन यह भी बताते हैं कि ट्रंप और मोदी की टेक्सास में होने वाली यह मुलाकात शायद ही स्थिति बदल पाए.

नीलांजन कहते हैं, “संजोय चक्रवर्ती, देवेश कपूर और निर्विकार सिंह की हाल ही में पब्लिश हुई रिसर्च ने यह दर्शाया है कि भारतीय-अमेरिकी ज्यादातर डेमोक्रैट पार्टी का समर्थन करते हैं. अमेरिका के ज्यादातर धनी वोटर रिपब्लिकन पार्टी को वोट देते हैं, लेकिन भारतीय-अमेरिकी, जो वहां पर सबसे धनवान समुदायों में से एक हैं, डेमोक्रैट पार्टी को ही समर्थन देते हैं.”

“मोदी और ट्रंप की मुलाकात भारत-अमेरिका के रिश्तों में मजबूती, व्यवसाय में वृद्धि और कूटनीतिक मामलों के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है लेकिन वहां के वोटरों को बदलने में शायद यह कामगार न हो. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के विपरीत अमरीका के वोटर अपनी पार्टी को लेकर काफी कट्टर हैं.”

CVoter के संस्थापक यशवंत देशमुख का मानना है कि ट्रंप और मोदी की यह मुलाकात भारतीय वोटरों को लुभाने में काफी कामयाब हो सकती है. देशमुख कहते हैं, “अमेरिका में रह रहे भारतीय वोटरों पर मेरी यही राय है कि वे कोई अलग-थलग वोटर नहीं हैं. खैर, उन्होंने बड़ी संख्या में डेमोक्रैट पार्टी को समर्थन दिया है लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि वे एक ही पार्टी पर अड़े रहेंगे, जैसे आम अमेरिकी वोटर करते हैं. पूर्वी और पश्चिमी तटों पर केंद्रित भारतीय-अमेरिकी ज्यादातर डेमोक्रैट शासित प्रदेशों में रहते हैं.”

‘भारतीयों में घट रही डेमोक्रैट के प्रति लोकप्रियता

देशमुख ने भारतीय समुदाय में डेमोक्रैट के प्रति घटती लोकप्रियता के बारे में भी बताया. “डेमोक्रैट पार्टी की तरफ से टिकट लेने की होड़ में जुटे उम्मीदवार मोदी की आलोचना करते हैं और उनके हाल ही में दिए गए कश्मीर पर बयानों से भारतीय समुदाय इतना खुश नहीं है. एक और बात यह कि अमेरिका में रहने वाले भारतीय अपने ही समुदाय के उम्मीदवारों को वोट नहीं देते और न ही भारतीय-अमेरिकी उमीदवार भारतीय वोटरों को लुभाने के लिए कोई जोर लगाते हैं.”

देशमुख का यह भी मानना है कि मोदी और ट्रंप की यह मुलाकात भारतीय वोटरों का रुख बदल सकती है, ठीक वैसे ही जैसे ब्रिटेन में हुआ था.

उन्होंने कहा, “कैमरून 2015 का चुनाव जीते हुए थे लेकिन उनको यह मालूम था कि लेबर पार्टी को भारतीय खासतौर पर गुजराती एनआरआई वोटरों का समर्थन प्राप्त था, जिसकी मदद से लेबर पार्टी के लीडरों ने काफी समय तक फायदा उठाया. वेम्ब्ले में मोदी के साथ हाथ मिलाकर कैमरून ने हवा बदल दी. यह भारतीय ब्रिटिश वोट बैंक को टोरी पार्टी के पाले में खींच लाने के लिए एक बड़ा कदम था जिससे आज भी टोरी पार्टी को फायदा पहुंचता है.”

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