इसरो ने कहा- लैंडर से संपर्क टूटने के कारणों का विश्लेषण कर रही है समिति

चंद्रयान-2 के रोवर प्रज्ञान से लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी लेकिन अंतिम चरण में चंद्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर ऊपर इसका इसरो से संपर्क टूट गया था.

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बेंगलुरूः भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बृहस्पतिवार को कहा कि कुछ विद्वानों और एजेंसी के विशेषज्ञों की एक राष्ट्रीय स्तर की समिति चंद्रयान-2 मिशन में लैंडर के चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने से पहले उससे संपर्क टूट जाने के कारणों का अध्ययन कर रही है. इसरो ने यह भी कहा कि भारत के दूसरे चंद्र मिशन का ऑर्बिटर निर्धारित वैज्ञानिक प्रयोगों को संतोषजनक तरीके से अंजाम दे रहा है और इसके सभी पेलोड का कामकाज संतोषप्रद है.

एजेंसी ने अपनी वेबसाइट पर लिखा, ”ऑर्बिटर के सभी पेलोड चल रहे हैं। इसके शुरूआती परीक्षण पूरी तरह सफल रहे हैं। सभी पेलोड का प्रदर्शन संतोषजनक है.” इसरो ने कहा, ”शिक्षाविदों और इसरो विशेषज्ञों की राष्ट्रीय स्तर की समिति लैंडर से संपर्क टूटने के कारणों का अध्ययन कर रही है.”

सात सितंबर को चंद्रयान-2 के रोवर प्रज्ञान से लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी लेकिन अंतिम चरण में चंद्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर ऊपर इसका इसरो से संपर्क टूट गया था. तभी से लैंडर से संपर्क साधने के प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन कोई सफलता मिलती नहीं दिख रही.

इसरो ने आठ सितंबर को कहा था कि चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर में लगे कैमरे से चंद्रमा की सतह पर लैंडर देखा गया है. इसरो ने बताया कि विक्रम की हार्ड लैंडिंग हुई थी.

नासा ने ली चंद्रयान-2 के लैंडिंग साइट की तस्वीर, जल्द मिलेगी बड़ी खबर

चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर से संपर्क साधने की समय सीमा समाप्त हो रही है. इसी बीच खबर आई है कि नासा के मून आर्बिटर ने चांद के उस क्षेत्र की तस्वीरें ली हैं जहां पहुंच चंद्रयान-2 से भारत का संपर्क टूट गया था.

नासा के मून आर्बिटर ने ली चंद्रयान-2 के लैंडिंग साइट की तस्वीर (फाइल फोटो)

नासा के एक वैज्ञानिक के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नासा (NASA) ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपने लूनर रिकॉनसेंस ऑर्बिटर (LRO) की मदद से 17 सितंबर को कई तस्वीरें ली हैं. नासा फिलहाल इन तस्वीरों का विश्लेषण कर रहा है. इसी क्षेत्र में मिशन चंद्रयान-2 के तहत विक्रम लैंडर की साफ्ट लैंडिंग कराने की कोशिश की गई थी, लेकिन विक्रम के लैंड होने से दो किलोमीटर पहले ही इसरो का संपर्क टूट गया था.

विक्रम लैंडर से संपर्क साधने की संभावना 21 सितंबर तक ही है. इसके बाद चांद के उस क्षेत्र में अंधेरा हो जाएगा. लूनर रिकॉनसेंस ऑर्बिटर (LRO) के डिप्टी प्रोजेक्ट साइंटिस्ट जॉन केलर ने एक बयान के जरिये यह कन्फर्म किया कि ऑर्बिटर के कैमरे ने तस्वीरें ली हैं.

लैंडर विक्रम को 14 दिनों तक करना था काम

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का कहना है कि लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को चांद की सतह पर पहुंचने के बाद सिर्फ 14 दिनों तक काम करना था. इनकी उम्र चांद के एक दिन के बराबर थी, जो कि धरती पर 14 दिनों के बराबर है.

जहां पर बिक्रम लैंडर गिरा था, चांद के उस हिस्से में फिलहाल शाम है. 21 सितंबर के बाद वहां सूरज की रोशनी नहीं पड़ेगी और रात हो जाएगी. चांद पर रातें बहुत ठंडी होती हैं. रात के दौरान इस हिस्से का तापमान घटकर माइनस 200 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है. विक्रम लैंडर के इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे इस हिसाब से डिजाइन नहीं हैं कि इस तापमान में खुद को जीवित रख पाएं. इसलिए अब अगर अगले दिन में विक्रम से संपर्क स्थापित नहीं हो पाया तो इसकी संभावना हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी.

इसरो ने 7 सितंबर को तड़के 1.50 बजे के आसपास विक्रम लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कराने की कोशिश की थी, लेकिन यह लैंडिंग उम्मीद के मुताबिक नहीं हो सकी और विक्रम से संपर्क टूट गया था. इसरो जल्दी ही चांद से ली गईं कुछ तस्वीरें जारी कर सकता है.

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