क्या नासा का LRO लगा पाएगा विक्रम लैंडर का पता? अगले कुछ घंटे हैं अहम

क्या अमेरिका के LRO की 10 साल पुरानी टेक्नोलॉजी इस लायक है कि वह चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर की गुणवत्ता को टक्कर दे पाएगा. चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर का ऑप्टिकल हाई-रिजोल्यूशन कैमरा (OHRC) आज के जमाने की तकनीक से बना है.

0 998,740
  • चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से पुरानी तकनीक है LRO की
  • 3 मीटर ऊंचे विक्रम की साफ तस्वीर मिल पाएगी क्या

बेंगलुरु। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organisation – ISRO) के वैज्ञानिक अब भी अपने दूसरे मून मिशन चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के विक्रम लैंडर से संपर्क साधने में लगे हैं. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) भी अपने डीप स्पेस नेटवर्क के तीन सेंटर्स से लगातार चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और लैंडर से संपर्क बनाए हुए है. ये तीन सेंटर्स हैं – स्पेन के मैड्रिड, अमेरिका के कैलिफोर्निया का गोल्डस्टोन और ऑस्ट्रेलिया का कैनबरा. इस तीन जगहों पर लगे ताकतवर एंटीना चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से तो संपर्क साध पा रहे हैं, लेकिन विक्रम लैंडर को भेजे जा रहे संदेशों का कोई जवाब नहीं आ रहा है.

इसरो की मदद के लिए आज यानी मंगलवार (17 सितंबर) को नासा (NASA) अपने लूनर रिकॉनसेंस ऑर्बिटर (LRO) से विक्रम लैंडर की तस्वीर लेगा. लेकिन, क्या अमेरिका की यह 10 साल पुरानी टेक्नोलॉजी इस लायक है कि वह चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर की गुणवत्ता को टक्कर दे पाएगा. चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर का ऑप्टिकल हाई-रिजोल्यूशन कैमरा (OHRC) आज के जमाने की तकनीक से बना है. लेकिन, इसरो अभी विक्रम लैंडर की तस्वीर जारी नहीं कर रहा है.

LRO से ताकतवर अपना ऑर्बिटर, फिर भी लेनी पड़ रही है मदद

वैसे भी इस समय चांद पर शाम के करीब 5 बज रहे होंगे. अगले 3 से 4 दिनों में चांद पर हो जाएगी रात. यानी 20 से 21 सितंबर को चांद के उस जगह पर अंधेरा हो जाएगा, जहां विक्रम लैंडर गिरा पड़ा है. LRO विक्रम लैंडर की तस्वीर 75 किमी की ऊंचाई से तस्वीर लेगा. यह चांद की सतह पर मौजूद करीब 50 सेंटीमीटर तक की ऊंचाई वाले वस्तु की तस्वीर ले सकता है. वहीं, चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर इससे बेहतर और स्पष्ट तस्वीर ले सकता है. क्योंकि, चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर का ऑप्टिकल हाई-रिजोल्यूशन कैमरा (OHRC) जमीन से 30 सेंटीमीटर तक की ऊंचाई वाले वस्तु की हाई-रिजोल्यूशन तस्वीर ले सकता है.

खगोलविदों का कहना है कि इसरो के ऑर्बिटर के कैमरे की ताकत ज्यादा है लेकिन उसके वैज्ञानिक OHRC से मिले डेटा से सॉफ्ट लैंडिंग वाली घटना का विश्लेषण नहीं कर सकते. इसके लिए उन्हें LRO की मदद लेनी होगी. LRO के पास पुराना डेटा भी है. वह यह बता सकता है कि विक्रम लैंडिंग से पहले और बाद में लैंडिंग वाली जगह पर क्या बदलाव हुए. इसलिए LRO की मदद ली जा रही है.

NASA वैज्ञानिक ने कहा था – हो सकता है कि तस्वीरें स्पष्ट न हों

Aajtak.in से बात करते हुए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लूनर रिकॉनसेंस ऑर्बिटर (LRO) के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट नोआ.ई.पेत्रो ने बताया था कि चांद पर शाम होने लगी है. हमारा LRO विक्रम लैंडर की तस्वीरें तो लेगा, लेकिन इसकी गारंटी नहीं है कि तस्वीरें स्पष्ट होंगी. क्योंकि, शाम को सूरज की रोशनी कम होती है और ऐसे में चांद की सतह पर मौजूद किसी भी वस्तु की स्पष्ट तस्वीरें लेना चुनौतीपूर्ण काम होगा. हो सकता है कि ये तस्वीरें धुंधली हों. लेकिन जो भी तस्वीरें आएंगी, उन्हें हम भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो से साझा करेंगे.


चांद पर हो रही है ‘शाम’, ISRO की विक्रम लैंडर से संपर्क की उम्मीद अब लगभग खत्म

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organisation – ISRO) के वैज्ञानिक अब भी अपने दूसरे मून मिशन चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के विक्रम लैंडर से संपर्क साधने में लगे हैं. इसरो की मदद के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) भी अपने डीप स्पेस नेटवर्क के तीन सेंटर्स से लगातार चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और लैंडर से संपर्क बनाए हुए है. ये तीन सेंटर्स हैं – स्पेन के मैड्रिड, अमेरिका के कैलिफोर्निया का गोल्डस्टोन और ऑस्ट्रेलिया का कैनबरा. इस तीन जगहों पर लगे ताकतवर एंटीना चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से तो संपर्क साध पा रहे हैं, लेकिन विक्रम लैंडर को भेजे जा रहे संदेशों का कोई जवाब नहीं आ रहा है.

7 सितंबर को तड़के 1.50 बजे के आसपास विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर गिरा था. जिस समय चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चांद पर गिरा, उस समय वहां सुबह थी. यानी सूरज की रोशनी चांद पर पड़नी शुरू हुई थी. चांद का पूरा दिन यानी सूरज की रोशनी वाला पूरा समय पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. यानी 20 या 21 सितंबर को चांद पर रात हो जाएगी. 14 दिन काम करने का मिशन लेकर गए विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के मिशन का टाइम पूरा हो जाएगा. आज 16 सितंबर है, यानी चांद पर 20-21 सितंबर को होने वाली रात से कुछ घंटे पहले का वक्त. यानी, चांद पर शाम का वक्त शुरू हो चुका है.

NASA ने कहा – हमारा मिशन तस्वीरें तो लेगा, लेकिन तस्वीरें धुंधली आ सकती हैं

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लूनर रिकॉनसेंस ऑर्बिटर (LRO) के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट नोआ.ई.पेत्रो ने बताया कि चांद पर शाम होने लगी है. हमारा LRO विक्रम लैंडर की तस्वीरें तो लेगा, लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि तस्वीरें स्पष्ट आएंगी. क्योंकि, शाम को सूरज की रोशनी कम होती है और ऐसे में चांद की सतह पर मौजूद किसी भी वस्तु की स्पष्ट तस्वीरें लेना एक चुनौतीपूर्ण काम होगा. हो सकता है कि ये तस्वीरें धुंधली हों. लेकिन जो भी तस्वीरें आएंगी, उन्हें हम भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो से साझा करेंगे.

शाम होने का मतलब, विक्रम लैंडर से संपर्क की उम्मीद बेहद कम

अगर 20-21 सितंबर तक किसी तरह भी इसरो और दुनिया भर की अन्य एजेंसियों के वैज्ञानिक विक्रम लैंडर से संपर्क स्थापित करने में सफल हो गए तो ठीक, नहीं तो यह माना जा सकता है कि दोबारा विक्रम से संपर्क करना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा. क्योंकि, चांद पर शुरू हो जाएगी रात, जो पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होगी. चांद के उस हिस्से में सूरज की रोशनी नहीं पड़ेगी, जहां विक्रम लैंडर है. तापमान घटकर माइनस 183 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है. इस तापमान में विक्रम लैंडर के इलेक्ट्रॉनिक हिस्से खुद को जीवित रख पाएंगे, ये कह पाना मुश्किल है. इसलिए विक्रम लैंडर से संपर्क नहीं हो पाएगा.

विक्रम से संपर्क हो या न हो, इसरो के नाम 6 उपलब्धियां दर्ज हो चुकी हैं

कहते हैं कि विज्ञान में सफलता और असफलता नहीं होती. सिर्फ प्रयोग होता है. और हर प्रयोग से कुछ नया सीखने को मिलता है. ताकि, अगला प्रयोग और बेहतर हो सके. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organisation – ISRO) का Chandrayaan-2 मून मिशन भी इसरो वैज्ञानिकों के लिए बहुत कुछ सीखाने वाला प्रयोग साबित हुआ है. कई चीजें पहली बार हुई. कई टेक्नोलॉजी पहली बार विकसित की गई. अंतरिक्ष में कक्षा बदलने के दौरान तय गति और तय दूरी में ज्यादा आगे बढ़े. यानी बेहतर ऑर्बिट मैन्यूवरिंग की गई. इससे चंद्रयान-2 के ईंधन को बचाने में मदद मिली. इसरो के नाम 6 उपलब्धियां दर्ज हो चुकी हैं. ये हैं- इसरो ने पहली बार बनाया लैंडर और रोवर, पहली बार किसी प्राकृतिक उपग्रह पर लैंडर-रोवर भेजा, चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार भेजा मिशन, पहली बार किसी सेलेस्टियल बॉडी पर लैंड करने की तकनीक विकसित की, पहली बार लैंडर-रोवर-ऑर्बिटर को एकसाथ लॉन्च किया और विशेष प्रकार के कैमरे और सेंसर्स बनाए गए.

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.