राम जन्मभूमि विवाद / अब अयोध्या वार्ता कमेटी मध्यस्थता करेगी, इसमें हिंदू-मुस्लिम नेता शामिल होंगे

कोर्ट के बाहर सुलझ सकता है अयोध्या मामला, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा मध्यस्थता को तैयार

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  • जमात उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष ने कहा- विवाद सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के प्रभावशाली लोगों को शामिल कर बातचीत होगी
  • ‘विवाद सुलझाने के लिए कई प्रयास हुए, पहले हुई मध्यस्थता प्रक्रिया में कमजोर नेताओं को शामिल किया गया’
  • सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को विवाद को बातचीत से सुलझाने के लिए मध्यस्थता पैनल बनाया था, यह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका
  • अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की अगुआई वाली 5 जजों की बेंच 6 अगस्त से रोज सुनवाई कर रही

नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बीच अयोध्या मामले ने रोचक मोड़ ले लिया है। कोर्ट में लगभग 3 हफ्ते की सुनवाई के बाद अब हिन्दू और मुस्लिम पक्ष ( सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा) एक फिर से कोर्ट के बाहर इस मुद्दे को सुलझाना चाहते हैं। इसके लिए दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखा है।

पांच महीने चली  मध्यस्थता की कोशिश
बता दें कि सु्प्रीम कोर्ट ने रोजाना सुनवाई शुरू करने से पहले आपसी सहमति से सुलझाने के लिए मध्यस्थता पैनल गठित किया था। इस पैनल में सेवानिवृत न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्य थे। इस पैनल की अगुआई में पांच महीने तक कई दौर की मध्यस्थता कार्यवाही चली, लेकिन मामले का हल नहीं निकला। इसके बाद कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधानपीठ ने मामले की रोजाना सुनवाई शुरू की।

मुस्लिम पक्ष रख रहा दलील
पिछले महीने छह अगस्त से इस केस की रोजाना सुनवाई जारी है। 23 दिन की सुनवाई में हिन्दू पक्ष की दलील पूरी हो गई है। इस समय मुस्लिम पक्ष अपना दलील रख रहा है। पांच जजों की संविधानपीठ में रंजन गोगोई के अलावा एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट में 2010 से लंबित है मामला
सुप्रीम कोर्ट में कुल 14 अपीलें, तीन रिट पिटीशन और एक अन्य याचिका लंबित है। सुनवाई की शुरुआत मूल वाद संख्या 3 और 5 से हुई। मूल वाद संख्या 3 निर्मोही अखाड़ा और मूल वाद संख्या पांच भगवान रामलला विराजमान का मुकदमा है। गौरतलब है कि साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। कोर्ट ने इस दौरान एक हिस्सा भगवान रामलला विराजमान, दूसरा निर्मोही अखाड़ा व तीसरा हिस्सा सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को देने का आदेश था। इस फैसले को  हिन्दू मुस्लिम सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट में ये अपीलें 2010 से लंबित हैं और कोर्ट के आदेश से फिलहाल अयोध्या में यथास्थिति कायम है।

जमात उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सुहैब कासमी ने रविवार को बताया- 2016 में अयोध्या वार्ता कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी एक बार फिर भूमि विवाद को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के प्रभावशाली लोगों को शामिल कर बातचीत करेगी। मध्यस्थता प्रक्रिया संभवत: अक्टूबर से शुरू होगी।

‘पहले कमजोर नेता मध्यस्थता में शामिल हुए’
कासमी ने कहा, ‘‘अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए कई प्रयास हुए। पहले हुई मध्यस्थता प्रक्रिया में कमजोर नेताओं को शामिल किया गया। इसके चलते कोई नतीजा नहीं निकल सका। कई मुस्लिम चाहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बने। वे यह भी चाहते हैं कि मंदिर के पास ही मस्जिद का निर्माण हो। इससे धार्मिक सौहार्द का संदेश जाएगा।’’

‘‘अगर अदालत अयोध्या विवाद को सुलझाना चाहती तो यह बीते 70 साल में हो गया होता। मुझे नहीं लगता कि कोर्ट इसका कोई असरदार हल दे पाएगा।’’

कोर्ट के आदेश से मार्च में बनाया था मध्यस्थता पैनल
सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को इस मामले को बातचीत से सुलझाने के लिए मध्यस्थता पैनल बनाया था। इसमें पूर्व जस्टिस एफएम कलीफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर, सीनियर वकील श्रीराम पंचू शामिल थे। हालांकि, पैनल मामले को सुलझाने के लिए किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका।

हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटने के लिए कहा था
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान बांट दिया जाए। पहला-सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा- निर्मोही अखाड़ा और तीसरा- रामलला विराजमान।

 

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