विपक्ष से डरती है मोदी सरकार इसलिए नहीं दी महत्वपूर्ण संसदीय समितियों की अध्यक्षता- अधीर रंजन चौधरी

संसदीय समितियों में महत्वपूर्ण माने जाने वाले वित्त और विदेश मामलों की समिति सरकार के खाते में दे दी गई है जिनकी अध्यक्षता पिछली लोकसभा में कांग्रेस सांसद कर रहे थे.

नई दिल्लीः संसदीय समितियों के गठन के ऐलान के बाद कांग्रेस पार्टी ने सरकार पर विपक्ष से डरने का आरोप लगाया है. लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि विपक्ष को कमजोर इसलिए किया जा रहा है क्योंकि सरकार विपक्ष के सवालों का सामना नही करना चाहती है. चौधरी ने सवाल उठाया है कि कांग्रेस की संख्या पिछली बार से ज्यादा है फिर भी ऐसा क्यों किया गया है?

 

अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि “हमेशा से वित्त और विदेश मामलों की ये दोनों कमेटियां विपक्ष के पास रही हैं ताकि प्रभावी रूप से इनसे जुड़े मामलों पर विपक्ष भी अपनी बात रख सके. लेकिन इस सरकार को सवालों से असहजता होती है और वो उनका सामना नहीं करना चाहिए चाहती.”

 

चौधरी ने कहा कि “पिछली लोकसभा की कमेटियों में विपक्षी सांसदों ने जो सवाल खड़े किए थे उनका जवाब सरकार को देते नहीं बन रहा था. वित्त समिति ने नोटबन्दी पर सवाल उठाए थे और आरबीआई के गवर्नर तक को तलब कर लिया था. वहीं विदेश मामलों की समिति ने डोकलाम मुद्दे पर सरकार से जवाब तलब किया था. यही वजह है कि सरकार ने इस बार विपक्ष से ये दोनों महत्वपूर्ण समितियां छीन ली हैं.”

 

लोकसभा अध्यक्ष को लिखा था पत्र

 

दरसअल, संसदीय समितियों में महत्वपूर्ण माने जाने वाले वित्त और विदेश मामलों की समिति सरकार के खाते में दे दी गई है जिनकी अध्यक्षता पिछली लोकसभा में कांग्रेस सांसद कर रहे थे.

 

वित्तीय मामलों की समिति की अध्यक्षता वीरप्पा मोइली कर रहे थे तो विदेश मामलों की समिति की अध्यक्षता शशि थरूर के पास थी. लेकिन इस बार थरूर को इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी की संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाया गया है. इस कार्यकाल में कांग्रेस नेताओं को 4 कमेटियों का अध्यक्ष बनाया गया है.

 

कांग्रेस सांसद ने कहा कि इस संबंध में उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र भी लिखा था और संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी से बात भी की थी. अधीर रंजन के मुताबिक उन्होंने ये कह दिया कि सरकार के पास संख्या ज्यादा है इसलिए समितियां सरकार को दी गयी है.

 

उन्होंने कहा कि इस सवाल का जवाब सरकार के पास नहीं है और इस तरह के कदम लोकतंत्र को और संसदीय परंपराओं को कमजोर करते हैं.

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