नई दिल्ली. जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने शनिवार को हिंदी दिवस पर एक लेख लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि हिंदी आम आदमी की भाषा नहीं है। अंग्रेजों ने इसे लोगों को बांटने के लिए बनाया था। इस हिंदी विरोधी लेख को काटजू ने ट्विटर पर कवि कुमार विश्वास और पाक मंत्री फवाद चौधरी समेत कई लोगों को टैग करते हुए शेयर भी किया। इस पर जवाब देते हुए विश्वास ने शुद्ध हिंदी में ट्वीट किया, हे चिर मुख अतिसार व्याधि पीड़ित!
हे चिर मुख अतिसार व्याधि पीड़ित ! अपनी अज्ञानोत्पादित अंखड अहमन्यताओं के इस अविरल मलप्रवाह में मेरे ट्वीटर को अकारण टैग करने की इस नव्य निकृष्टता हेतु मैं श्राद्ध के प्रथम दिन आपके इस जन्म में असफल पदार्पण का विधानपूर्वक तर्पण करता हूँ 🙏 स्वीकार करें https://t.co/aenO1pro1M
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) September 14, 2019
हिंदी बेल्ट के लोग हिंदुस्तानी या खड़ी बोली बोलते हैं: काटजू
काटजू ने लिखा, ‘‘सच यह है कि हिंदी एक काल्पनिक तौर पर बनाई गई भाषा है। यह आम आदमी की भाषा नहीं है। यहां तक कि भारत के तथाकथित हिंदी भाषी बेल्ट में भी आम आदमी हिंदी का इस्तेमाल नहीं करते। हिंदी बेल्ट के शहरों में आम आदमी हिंदी नहीं, बल्कि हिंदुस्तानी या खड़ी बोली (अवधी, बृजभाषा, भोजपुरी, मैथिली, मेवाड़ी, मारवाड़ी आदि) बोलते हैं। हिंदुस्तानी और हिंदी भाषा में अंतर है। जैसे हिंदुस्तानी कहता है ‘उधर देखिए’, जबकि हिंदी भाषा में कहा जाता है ‘उधर अवलोकन कीजिए’। आज सामान्य व्यक्ति कभी भी अवलोकन नहीं कहेगा, वह कहता है देखिए।’’
1947 तक भारत में शिक्षित लोगों की भाषा उर्दू थी: काटजू
उन्होंने लिखा, ‘‘1947 तक भारत के बड़े क्षेत्र में हिंदू, मुस्लिम, सिख और अन्य समुदाय के शिक्षित लोगों की भाषा उर्दू ही थी। जबकि हिंदुस्तानी अशिक्षित आम आदमी की भाषा थी। ब्रिटिश सरकार ने हिंदी को काल्पनिक तौर पर बनाया और उनके भारतेंदू हरिशचंद्र जैसे एजेंटों ने इसे भारत में फैलाया। भारतेंदू जैसे लोग अंग्रेजों के फूट डालो शासन करो नीति के हिस्सा थे। उन्होंने एक दावा करते हुए यह प्रसारित किया कि हिंदी हिंदुओं की और उर्दू मुस्लिमों की भाषा है।’’