प्लास्टिक पूरी तरह से छोड़ने में कुछ अधूरी रह गई COP14 की बैठक

पीएम मोदी ने ग्रेटर नोएडा में आज संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज में बोलते हुए सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को लेकर कहा कि दुनिया को भी इसे गुडबॉय कह देना चाहिए.

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नई दिल्ली: धरती पर बढ़ता सूखा सबका सिरदर्द बन रहा है. लिहाज़ा यूएन की अगुवाई में एक कोशिश हो रही है कि मृदा क्षरण पर न्यूट्रलिटी यानी संतुलन का ऐसा फार्मूला बनाने की जिसमें, जितनी ज़मीन बंजर हो उतनी को उपजाऊ भी बनाया जा सके. इस मुद्दे पर मंथन के लिए दुनिया के मुल्क COP14 की बैठक की खातिर भारत में जमा हुए है. सोमवार को इस बैठक को संबोधित करने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के सिंगल यूज प्लासिटक पर प्रतिबंध के लिए आगे आने को कहा जो धरती को खतरनाक तरीके से बंजर बना रहा है. मोदी ने कहा कि प्लास्टिक धरती को इस तरह बंजर कर रहा है जिसमें उसे वापस उपजाऊ बनाना भी लगभग नामुमकिन हो जाता है. लिहाज़ा इससे निपटने के लिए समेकित और ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है.

हालांकि इस बैठक की विडंबना देखिए की भारत के पर्यावरण मंत्रालय की मेजबानी में हो रहे इस अजोजन के लिए प्रतिभागियों को जो पहचान के कार्ड बांटे गए वो भी सिंगल यूज़ प्लास्टिक के थे. इस मसले पर एबीपी न्यूज़ रिपोर्टर प्रणय उपाध्याय ने यूएन पर्यावरण मंत्रालय व UNCCD को टैग कर ट्वीट किया तो जवाब रोचक आया. संयुक्त राष्ट्र संस्था का तर्क था कि प्लास्टिक के पहचान पत्र को आप अपने साथ स्मृति प्रतीक की तरह घर ले जा सकते हैं जो इस इस आयोजन में शिरकत की याद दिलाएगा. ज़ाहिर है यह जवाब प्लास्टिक के पाश से छूटने की कोशिशों में कहीं भी मददगार नज़र नहीं आता.

दरअसल, धरती पर कैंसर की तरह फैल रहा प्लास्टिक ज़मीन से लेकर समंदर तके को लील रहा है. खुद यूएन की संस्था यूएनईपी की बीते साल आई रिपोर्ट कहती है कि हर साल 500 अरब प्लास्टिक की थैलियां इस्तेमाल होती हैं. हर मिनट करीब 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जा रही हैं. कचरे का पहाड़ केवल ज़मीन पर ही नहीं बन रहा बल्कि सागर को भी लील रहा है. यूएन के अपने आकलनों के मुताबिक समंदर में जा रहा प्लास्टिक का कचरा मैरीन इकोसिस्टम को 13 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचा रहा है. इतना ही नहीं हमारे घरों में पहुंच रहे ८३ फीसद पानी में भी प्लास्टिक के कण घुले हुए हैं जो सीधे शरीर में पहुंच रहे हैं. चिंता उसी सिंगल यूज़ प्लास्टिक को लेकर है जिसका इस्तेमाल पानी की बोतलों और cop14 की बैठक के लिए बनाए गए पहचान पत्र को छापने के लिए होता है. दुनिया में इस्तेमाल हो रहे कुल जमा प्लास्टिक में से आधी हिस्सेदारी सिंगल यूज प्लास्टिक की है.

 

भारत में यूएन आईडीओ के कंट्री रिसेंटेटिव रेने वेन बर्केल कहते हैं कि विकल्पों की कमी नहीं बल्कि इसके लिए पुरजोर शुरुआत करने की ज़रूरत है. उद्योगों को अपने करोबार के साथ-साथ पर्यावरण की तरफ भी देखना होगा जो हमारा साझा है. UNIDO प्रतिनिधि उद्योगों की तरफ से आने वाली इन दलीलों को भी खारिज करते हैं कि प्लास्टिक विकल्पों का इस्तेमाल सामानों को महंगा बना देगा. उनके मुताबिक बड़े निर्यात ऑर्डर की पैकेजिंग में तो प्लास्टिक की सहूलियत को समझ जा सकता है. लेकिन खुदरा बिक्री में इसका बहुतायत प्रयोद कतई किफायती नहीं है.

कार्यक्रम के भोजन क्षेत्र में प्लास्टिक प्रयोग कम करने के लिए कागज़ से बनी डिस्पोज़ेबल प्लेटें व लकड़ी के चम्मच इस्तेमाल होते नज़र आए. वहीं पानी के लिए कांच के ग्लास भी रखे गए थे. यह बात और है कि आदत में शुमार हो गया प्लास्टिक भोजन की मेज पर किसी न किसी शक्ल में आ धमकता है. लेकिन प्लास्टिक का इस्तेमाल घटने के मलाल किसी को नहीं. आयोजन में वोलेंटियर की तरह जुड़े बुलंदशहर निवासी ज़ुबैर और जयंत जैसे युवा इसपर खुशी भी जताते है. जयंत तो कहते हैं कि प्लास्टिक ही नहीं कागज़ के इस्तेमाल कम करने पर भी हमने सुझाव दिए थे क्योंकि COP14 की बैठक मरूस्थलीकरण को लेकर है जिसकी बड़ी वजह पेड़ों की कटाई है और कागज़ बनाने में इनका इस्तेमाल होता है. मगर, तमाम कोशिशों के बावजूद ग्रेटर नोयडा के एक्सपो मार्ट में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दरवाजे से लेकर दरो-दीवार पर पलास्टिक लगभग हर कदम पर नज़र आ जाता है.

 

इस प्लास्टिक को लेकर भारत की भी चिंताएं बढ़ी हैं. तेजी से बढ़ता प्लास्टिक का कचरा भारत के शहरों से लेकर गांवों तक सैनिटेशन सिस्टम को चोक कर रहा है. इस दानव के बढ़ते आकर पर नकेल की एक मुहिम जल्द मोदी सरका भी शुरू करने जा रही है. पीएम मोदी २ अक्टूबर यानी गांधी जयंति से सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ व्यापक अभियान छेड़ने की तैयारी में है. इस सिलसिले में एक बैठक उपभोक्ता मामले मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने भी ली. सरकार जल्द ही इसके लिए नए दिशा निर्देश जारी करेगा.

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