Chandrayaan-2 का नहीं पड़ेगा ISRO के फ्यूचर प्लान पर असर, ये हैं अगले मिशन

भले ही चंद्रयान-2 मिशन में इसरो को एक झटका लगा हो, लेकिन इसरो के भविष्य के मिशन अपने समय पर ही होंगे. एकतरफ तो वो विक्रम लैंडर से संपर्क साधने में लगे हैं तो दूसरी तरफ वहां भविष्य के अभियानों की भी तैयारी चल रही है.

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  • अक्टूबर में होने वाली लॉन्चिंग टल सकती है
  • भविष्य के बड़े मिशन तय समय पर ही होंगे

नई दिल्ली। भले ही चंद्रयान-2 मिशन में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organisation) को एक झटका लगा हो, लेकिन इसरो के भविष्य के मिशन अपने समय पर ही होंगे. इसरो के वैज्ञानिक शांत नहीं बैठने वाले. एकतरफ तो वो विक्रम लैंडर से संपर्क साधने में लगे हैं तो दूसरी तरफ भविष्य के अभियानों की भी तैयारी चल रही है.

अगले 5 से 7 सालों के अंदर इसरो ऐसे कई मिशन को अंजाम देने जा रही है जो भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया का सबसे अग्रणी देश बना देगा. इससे दुनियाभर में इसरो और भारत के स्पेस प्रोग्राम को लेकर मौजूद भरोसा और मजबूत हो जाएगा. साथ ही भारत की स्पेस टेक्नोलॉजी संबंधी क्षमताओं में कई गुना इजाफा होगा.

आइए, जानते हैं इसरो के भविष्य के उन अंतरिक्ष अभियानों के बारे में जो देश का नाम बढ़ाने वाले हैं…

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कार्टोसैट-3: टल सकती है लॉन्चिंग

इसरो चीफ डॉ. के. सिवन ने हाल ही में कहा था कि चंद्रयान-2 मिशन के बाद इसरो और उसके वैज्ञानिक आराम नहीं करेंगे. वे और बड़े मिशन करेंगे. डॉ. सिवन ने एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा कि वे इस साल एक और बड़ा मिशन लॉन्च करने वाले हैं. आपको बता दें कि जब यह मिशन (कार्टोसैट-3) लॉन्च होगा तब इससे देश के दुश्मनों के होश उड़ जाएंगे.

कार्टोसैट-3 की लॉन्चिंग अक्टूबर में होने वाली थी, जो हो सकता है कि एक महीने बाद हो. क्योंकि, अभी सारे वैज्ञानिक विक्रम लैंडर से संपर्क साधने में लगे हैं. साथ ही चंद्रयान-2 मिशन का डेटा एनालिसिस कर रहे हैं. पाकिस्तान और उसके आतंकी कैंपों पर नजर रखने के लिए यह मिशन देश की सबसे ताकतवर आंख होगी.

आदित्य-L1: सूर्य की ताकत का पता करेगा इसरो

ISRO पहली बार 2020 के अंत तक सूर्य के विभिन्न आयामों की जांच करने के लिए सोलर प्रोब मिशन आदित्य-L1 छोड़ेगा. 400 किलोग्राम वजनी आदित्य धरती से 15 लाख किमी ऊपर स्थित हैलो ऑर्बिट में लग्रांज-1 बिंदु के पास स्थापित किया जाएगा. इसमें सिर्फ एक पेलोड होगा जो सूर्य के कोरोना, सौर लपटों, तापमान, चुबंकीय क्षेत्र समेत अन्य आयामों और उनसे पृथ्वी पर होने वाले प्रभावों की जांच करेगा. इस मिशन को 2012-13 में ही लॉन्च करने की योजना थी पर तकनीकी कारणों से इसमें देरी हो रही है.

NISAR: दुनिया का सबसे महंगा अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट

इस प्रोजेक्ट के सफल होने पर पूरी दुनिया इसरो और भारत पर निसार हो जाएगी. इस शानदार प्रोजेक्ट का पूरा नाम है – Nasa-Isro Synthetic Aperture Radar (Nisar). इसे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी नासा मिलकर पूरा करेंगे. इसकी संभावित लागत करीब 10 हजार करोड़ रुपए होगी.

उम्मीद जताई जा रही है कि यह मिशन 2021 तक लॉन्च कर दिया जाएगा. माना जा रहा है कि यह दुनिया का सबसे महंगा अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट होगा. इसे जीएसएलवी-एमके 2 रॉकेट से छोड़ा जा सकता है.

अवतारः अंतरिक्ष में बढ़ेंगी यात्राएं, रॉकेट का खर्च बचेगा

AVATAR – अवतार यानी Aerobic Vehicle for Transatmospheric Hypersonic Aerospace Transportation जो इसरो की सबसे महत्त्वकांक्षी योजना है. इसरो इसके एक हिस्से रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV) यानी कलामयान का सफल परीक्षण कर चुकी है. इस योजना में भारत की संस्था DRDO भी मदद कर रही है. इस मिशन में कलामयान से ही इंसानों को अंतरिक्ष की यात्रा कराई जाएगी.

साथ ही, उपग्रहों की लॉन्चिंग के लिए एक ही यान का उपयोग कई बार किया जा सकेगा. यह यान अंतरिक्ष में जाकर उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षा में स्थापित कर वापस आ जाएगा. इससे बार-बार रॉकेट बनाने का खर्च बचेगा. इस प्रोजेक्ट के 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है. इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर भारत, अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा देश बन जाएगा, जिसके पास ये महारत हासिल होगी.

शुक्रयानः 5वां देश होगा भारत, जो शुक्र पर भेजेगा मिशन

Indian Venusian orbiter MISION यानी शुक्रयान. इसरो इस मिशन को 2023 तक पूरा करने की कोशिश करेगी. इस मिsशन के जरिए ISRO शुक्र के वातावरण का अध्ययन करेगा. आज तक सिर्फ चार देश अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपियन यूनियन ही शुक्र पर सफलतापूर्वक मिशन भेज पाए हैं. पहली सफलता अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को 1962 में मिली थी. शुक्रयान में 100 किलोग्राम का पेलोड हो सकता है. यह शुक्र ग्रह के चारों तरफ अंडाकार चक्कर लगाएगा. शुक्रयान शुक्र ग्रह के चारों तरफ नजदीकी 500 किमी और दूर 60 हजार किमी की कक्षा में चक्कर लगाएगा. इसमें करीब 12 यंत्र हो सकते हैं जो शुक्र ग्रह का अध्ययन करेंगे.

मंगलयान-2: 2022-23 में इसरो मंगल पर उतारेगा लैंडर-रोवर

2014 में इसरो के मंगलयान मिशन ने पहली बार में ही सफलता हासिल कर ली थी. इसके बाद अब इसरो मंगलयान-2 (मार्स ऑर्बिटर मिशन-2, मॉम-2) भेजेगा. इस बार मंगलयान सिर्फ मंगल ग्रह का चक्कर ही नहीं लगाएगा, बल्कि लैंडर और रोवर मंगल की सतह पर उतर कर एक्सपेरीमेंट भी करेंगे. वहां के सतह, वातावरण, रेडिएशन, तूफान, तापमान आदि का अध्ययन करेंगे. संभवतः इसे 2021-22 में लॉन्च किया जा सकता है. इस मिशन में फ्रांस भी इसरो की मदद कर सकता है.

गगनयानः इसरो अंतरिक्ष में कराएगा इंसानों को साइंटिफिक यात्रा

इसरो का बेहद महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट है गगनयान. इसके जरिए इसरो 3 यात्रियों को अंतरिक्ष में सात दिनों के लिए भेजेगा. उम्मीद है कि यह मिशन 2022 तक पूरा हो जाएगा. इसके पहले दिसंबर 2020 और जुलाई 2021 में बिना इंसान के गगनयान का प्रक्षेपण किया जाएगा ताकि मिशन की सुरक्षा और सटीकता की जांच की जा सके.

इसके लिए इसरो ने भारतीय वायुसेना से समझौता किया है ताकि 3 अंतरिक्ष यात्रियों की खोज की जा सके. अब तक रूस, अमेरिका और चीन ही ये सफलता हासिल कर पाए हैं. इसरो भारत को ये महारत हासिल करने वाला चौथा देश बनाना चाहता है. इस मिशन के लिए रूस की स्पेस एजेंसी भारतीय वायुसेना के पायलटों को एस्ट्रोनॉट की ट्रेनिंग देगी.

स्पेडेक्सः जब दो स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में जोड़ा जाएगा

इसरो ने खुद का स्पेस स्टेशन बनाने की घोषणा की है. अभी इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए 10 करोड़ रुपए सरकार से मिले हैं. स्पेस स्टेशन बनाने से पहले जरूरी है अंतरिक्ष में दो उपग्रहों के आपस में जोड़ने की क्षमता हासिल की जाए. इसे कहते हैं – स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पेडेक्स). यह बेहद जटिल प्रयोग होगा.

इससे इसरो वैज्ञानिकों को यह पता चलेगा कि वे अपने स्पेस स्टेशन में ईंधन पहुंचा पाएंगे, अंतरिक्ष यात्रियों और अन्य जरूरी वस्तुएं पहुंचा पाएंगे या नहीं. स्पेडेक्स के तहत दो स्पेसक्राफ्ट 2025 तक पीएसएलवी रॉकेट से छोड़े जाएंगे. इस प्रयोग में रोबोटिक आर्म एक्सपेरीमेंट भी शामिल होगा.

एक्सपोसैट की लॉन्चिंग 2021 तक

इसरो पीएसएलवी रॉकेट से एक्स-रे पोलेरीमेट्री सैटेलाइट (एक्सपोसैट) की लॉन्चिंग 2021 तक करेगा. यह उपग्रह अंतरिक्ष में एक्स-रे का अध्ययन करेगा. इसमें एक्स-रे की ताकत, चुंबकीय क्षेत्र और रेडिएशन आदि की पड़ताल की जाएगी. एक्सपोसैट के पोलेरीमेट्री इंस्ट्रूमेंट को रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने बनाया है. इसे लो-अर्थ ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा.

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