चंद्रयान-2 / दुनियाभर में इसरो की तारीफ, क्योंकि विमान से 10 गुना तेज यान की सॉफ्ट लैंडिंग कभी आसान नहीं रही

वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा, कम लागत वाला यह स्पेस प्रोग्राम भारत के लिए अपने आप में बड़ी सफलता है. चंद्रयान-2 का खर्च 141 मिलियन डॉलर है जो कि अमेरिका के ऐतिहासिक अपोलो मून मिशन से कई गुना कम है.

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  • नासा के पूर्व एस्ट्रोनॉट ने कहा- चंद्रयान-2 की कोशिशें भविष्य के मिशन में काम आएंगी
  • फ्रांस के अखबार ‘ली मोन्ड’ ने लिखा- बिना किसी मानवीय दखल के सॉफ्ट लैंडिंग बहुत मुश्किल
  • न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा- इसरो की इंजीनियरिंग कमाल की है, भारत में अंतरिक्ष अब एक पॉपुलर टॉपिक बना
  • वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा- भारत ने वहां जाने की हिम्मत दिखाई, जहां भविष्य में इंसान बसना चाहेंगे

नई दिल्ली. चंद्रयान-2 मिशन के इसरो केंद्र से संपर्क टूट जाने के बाद भी दुनियाभर में भारतीय स्पेस एजेंसी के वैज्ञानिकों की जमकर तारीफ हो रही है, क्योंकि विमान से 10 गुना तेज यान की सॉफ्ट लैंडिंग कभी आसान नहीं रही। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर वॉशिंगटन पोस्ट और ब्रिटिश अखबार बीबीसी से लेकर द गार्जियन तक सभी ने चंद्रयान-2 को प्रमुखता से स्थान दिया और इसे अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी मिशन बताया।

तकनीकी कौशल की मिसाल

न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत के तकनीकी कौशल और दशकों के अंतरिक्ष विकास की जमकर तारीफ की है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा, ‘चंद्रयान पहली कोशिश में चांद पर भले न उतर पाया हो, लेकिन इससे तकनीकी कौशल और दशकों के अंतरिक्ष विकास का पता जरूर चलता है.’ रिपोर्ट में आगे लिखा गया है, ‘चंद्रयान-2 मिशन के आंशिक तौर पर असफल होने से भारत उस एलिट क्लब में शामिल होने से चूक गया जो पहले प्रयास में चांद की सतह पर उतर चुके हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स ने हालांकि इसका जिक्र भी किया कि चंद्रयान का ऑर्बिटर अब भी ऑपरेशन में है और चांद का चक्कर लगा रहा है.’

ब्रिटिश अखबार द गार्डियन ने चंद्रयान मिशन पर प्रमुखता से एक आर्टिकल प्रकाशित किया है जिसका शीर्षक है, ‘इंडियाज मून लैंडिंग सफर्स लास्ट मिनट कम्युनिकेशंस लॉस’. अखबार ने अपने आर्टिकल में फ्रांसीसी स्पेस एजेंसी सीएनईएस के वैज्ञानिक मैथ्यू वीज के हवाले से लिखा है, ‘भारत आज वहां जा रहा है जहां भविष्य में 20, 50 या 100 साल बाद इंसानों के बसेरे बनेंगे.’

  • न्यूयॉर्क टाइम्स ने शनिवार को भारतीय मिशन की तारीफ करते हुए कहा, “भारत पहली बार में चांद पर लैंडिंग में सफल नहीं हो सका। लेकिन उसके इंजीनियरिंग कौशल और दशकों से जारी अंतरिक्ष विकास कार्यक्रम ने उसकी वैश्विक महत्वाकांक्षा को पेश किया है। चंद्रयान-2 की आंशिक असफलता से उसकी चांद पर लैंड करने वाले देशों की लिस्ट में शामिल होने की कोशिशों में कुछ देरी हो सकती है।
  • वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा, “भारत के लिए यह मिशन राष्ट्रीय गौरव का विषय रहा।” ब्रिटिश अखबार द गार्जियन ने फ्रांस की स्पेस एजेंसी सीएनईएस के हवाले से लिखा, “भारत वहां जा रहा है जहां आज से 20, 50, या 100 साल बाद मानव जाति बसेगी।
  • फ्रेंच अखबार ली मोन्ड ने स्पेस एजेन्सी सीएनईएस के हवाले से लिखा, “वैज्ञानिकों के मुताबिक, चांद पर भेजे गए सिर्फ 45% मिशन ही सफल हुए हैं। बिना किसी मानवीय दखल के सॉफ्ट लैंडिंग बहुत मुश्किल होती है।” अखबार ने भारतीय मीडिया की तारीफ करते हुए कहा कि वेबसाइट्स जानकारी पेश करने में काफी तेज थीं और इसरो द्वारा बताए गए सभी नजरियों को ठीक ढंग से बता रही थीं।

चंद्रयान-2 से तीन गुना था अवेंजर्स फिल्म का बजट: बीबीसी
ब्रिटिश अखबार बीबीसी ने कहा, “हॉलीवुड फिल्म अवेंजर्स एंडगेम का बजट करीब 2550 करोड़ रुपए (35.6 करोड़ डॉलर) था, जो कि चंद्रयान-2 मिशन से लगभग तीन गुना था। लेकिन यह पहली बार नहीं था जब इसरो की उसकी किफायत के लिए तारीफ की गई। उसके 2014 के मंगल मिशन की लागत अमेरिका के मार्स ऑर्बिटर मेवन के कुल खर्च का 10वां हिस्सा थी।

इसरो की कोशिश से आने वाले अभियानों में मदद मिलेगी: नासा एस्ट्रोनॉट
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पूर्व अंतरिक्ष यात्री जैरी लिनेंजर ने चांद की सतह पर चंद्रयान-2 के विक्रम मॉड्यूल की सॉफ्ट लैंडिंग कराने को भारत का ‘साहसिक प्रयास’ बताया है, साथ ही कहा है कि इससे मिले सबक भविष्य के अभियानों के दौरान देश के लिए बेहद मददगार साबित होंगे। ये बात उन्होंने शनिवार को भारत के चंद्रयान-2 अभियान पर प्रतिक्रिया देते हुए कही।

पीटीआई को दिए इंटरव्यू में लिनेंजर ने कहा, “हमें बहुत ज्यादा निराश नहीं होना चाहिए। भारत कुछ बहुत… बहुत ही कठिन करने की कोशिश कर रहा था। वास्तव में लैंडर के नीचे आने तक सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था।” लिनेंगर के मुताबिक दुर्भाग्य से लैंडर होवर प्वाइंट तक भी नहीं पहुंच सका, जो कि चांद की सतह से करीब 400 मीटर की ऊंचाई पर है। उन्होंने कहा, अगर वो उस प्वाइंट पर भी पहुंच जाता और उसके बाद अगर सफल नहीं भी होता तो भी ये काफी मददगार होता। क्योंकि तब रडार के एल्टिमीटर (ऊंचाई मापने का एक यंत्र) और लेजरों का परीक्षण किया जा सकता था।

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