असम: हिंदुओं के इस गांव की 80 फीसदी आबादी NRC लिस्ट से बाहर
असम में मलयाबाड़ी एक ऐसा गांव है जहां की 80 फीसदी आबादी को एनआरसी लिस्ट में जगह नहीं मिली. इस कारण लोगों में बड़ी नाराजगी है और ग्रामीण इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं.
- असम के मलयाबाड़ी गांव के 80 फीसदी लोग लिस्ट से बाहर
- गांव में रहने वाले 2 हजार लोगों की नागरिकता पर संकट
गोवाहाटी। असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची 31 अगस्त को जारी कर दी गई. करीब 19 लाख लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हैं. एनआरसी की अंतिम सूची से 19,06,677 लोग निकाले गए हैं, जबकि इसी सूची में 3,11,21,004 लोगों को भारतीय नागरिक बताया गया है.
एनआरसी की फाइनल लिस्ट आने के बाद कई लोगों को राहत मिली है तो कई लोगों के सामने संकट आ गया है. राज्य के कामरूप जिले का मलयाबाड़ी ऐसा ही एक गांव है जहां की 80 फीसदी आबादी को एनआरसी लिस्ट में जगह नहीं मिली है. इस कारण लोगों में बड़ी नाराजगी है और इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए जा रहे हैं. गांव में रहने वाले 2 हजार लोगों की नागरिकता पर संकट आ गया है और यहां रहने वाले बंगाली हिंदू भी इस फैसले से बेहद नाराज हैं. नाराज ग्रामीणों ने क्या प्रतिक्रिया दी, जानते हैं.
8 लोगों की फैमिली, सिर्फ एक सदस्य का नाम
इस फैसले से मलयाबाड़ी गांव के कई लोगों की रोजाना की जिंदगी पर खासा असर पड़ गया है. इसी गांव की 59 वर्षीय ममता अन्य ग्रामीणों की तरह बेहद दुखी हैं क्योंकि गांव के 80 फीसदी लोगों को एनआरसी लिस्ट में जगह ही नहीं मिली है. ममता बताती हैं कि फैसला आने के बाद पूरा गांव उदास है.
उनका कहना है कि अब ऊपरवाले से प्रार्थना करने के अलावा ग्रामीणों के पास और कोई विकल्प नहीं रह गया है. उन्हें प्रशासन की ओर से पर्याप्त जवाब नहीं मिला है. लोग समझ नहीं पा रहे कि समस्या कहां से आ रही है. लोग उदास और बीमार हो गए हैं. उनकी 8 लोगों की फैमिली में से सिर्फ 1 का ही नाम एनआरसी लिस्ट में आया है.
घर चलाऊं या नाम के लिए वकील को पैसे दूं
स्थानीय ग्राम पंचायत के तहत यहां दो वॉर्ड आते हैं, जो गुवाहाटी से 100 किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थित है. ज्यादातर ग्रामीण रोज काम के लिए सोनपुर या गुवाहाटी जाते हैं. 30 वर्षीय बिपुल कर नाराज हैं और असहाय हैं.
अपना दर्द बयां करते हुए बिपुल ने कहा, ‘मेरा नाम सूची में नहीं आया था. मैं यहीं पैदा हुआ और सारे दस्तावेज मेरे पास हैं. मैं एक दैनिक श्रमिक हूं और रोज 300 से 400 कमा लेता हूं. लिस्ट से नाम गायब होने के बाद क्या अब मैं एक भारतीय के रूप में अपनी पहचान साबित करने के लिए काम पर जाऊंगा या कोर्ट जाऊंगा? मैं अपना और परिवार का पेट भरने के लिए कमाता हूं. क्या मुझे न्याय के लिए अपनी कमाई वकील पर खर्च कर देनी चाहिए.’
असम सरकार में रहा, लेकिन लिस्ट में नहीं हूं
पंचायत कर्मचारी प्रमोद चंद्र कर लगभग एक दशक तक असम सरकार में रहे. उन्होंने कहा, ‘1964 में जब पूर्वी पाकिस्तान में समस्या थी तब मेरे पूर्वज यहां शरण लेने आए थे. हम असम की संस्कृति और सभ्यता से वाकिब हैं. हम मतदाता हैं और हमारा जन्म भी यहीं हुआ है. मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं, फिर भी मेरा नाम नहीं है. पंचायत सदस्यों के परिवार के कई लोगों को लिस्ट से बाहर रखा गया है.’
वहीं, पंचायत सदस्य शम्पा ने कहा, ‘मेरी विरासत का किसी और ने दुरुपयोग किया था. उन्होंने हमारे पूर्वजों के नाम और दस्तावेज का इस्तेमाल किया और हमें छोड़ दिया. उन्होंने बाद में माफी मांगी कि वे गलती किए थे, लेकिन इस सारी प्रक्रिया के बाद भी हमारे नामों को एनआरसी सूची में खारिज कर दिया गया है.’
दस्तावेज दिए, लेकिन नाम शामिल नहीं हुआ
परेशान शीला ने कहा, ‘मेरा नाम एनआरसी में है, लेकिन मेरे तीन बेटों के नाम और मेरे पति का नाम नहीं है. ये कैसे संभव है? अब उनकी समस्याओं के लिए कौन जिम्मेदार है.’ मीना बिस्वा ने कहा, ‘हमारे पास 1965 के आंकड़े हैं और हमारे पास 1952 से जमीन के दस्तावेज हैं, लेकिन अभी भी हम छह बहनों और एक भाई का नाम सूची में नहीं है. मैं नहीं जानती कारण क्या है?
श्रीचंद रानी दत्ता ने पूछा, ‘मेरे गांव में 3000 हिंदू निवासी हैं, जिनमें से 2000 से अधिक का नाम नहीं है. ये कैसे संभव है? पास के गांव में काफी मुस्लिम हैं और उनका नाम लिस्ट में है. मैं भी इसी गांव की हूं, लेकिन हमारा नाम नहीं है.’
परिवार के 10 लोगों में सिर्फ एक का नाम
प्रमिला दत्ता ने सवाल करते हुए कहा, ‘हमारे पास सभी दस्तावेज हैं, लेकिन नाम नहीं है.’ संजय चक्रवर्ती ने कहा, ‘हम एक बंगाली बहुल गांव से हैं, लेकिन हमारा नाम नहीं है, जबकि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में लोगों का नाम है.’ चंचल बोस ने कहा, ‘हमने कम से कम 5 बार दस्तावेज जमा किए थे, लेकिन परिवार के 10 सदस्यों में से केवल एक स्वीकार किया गया है. मैं काफी परेशान हूं और मेरे पास कोई विकल्प नहीं है. अगर यह मसला जल्द खत्म नहीं हुआ तो हम आत्महत्या करने की सोच रहे हैं.’