असम में कल आएगी NRC की फाइनल लिस्ट, 41 लाख लोगों की किस्मत का होगा फैसला, जानिए सबकुछ

31 अगस्त को असम में NRC का फाइनल लिस्ट जारी होगा. इस लिस्ट में जिनका नाम नहीं आएगा उनके पास क्या विकल्प हैं और उनके साथ सरकार क्या कर सकती है इन सभी सवालों के जवाब जानिए..

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नई दिल्ली: असम और देश के लिए कल यानी 31 अगस्त का दिन काफी महत्वपूर्ण है. कल नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़ंस यानी एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी होने वाली है. ऐसे में कई सवाल जहन में फिर आने लगे होंगे कि अगर एनआरसी में किसी का नाम नहीं हुआ तो उसके साथ क्या होगा ?

उनके पास क्या विकल्प है जिससे वो अभी भी खुद को देश का नागरिक साबित कर सकते हैं. साथ ही सवाल यह भी है कि अवैध तरीक़े से घुस आए लोगों के साथ क्या  होगा ?  नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन्स यानी एनआरसी में जिन लोगों के नाम नहीं जुड़ पाएंगे क्या वे विदेशी घोषित कर दिए जाएंगे ?. अगर ऐसा हुआ तो उसके बाद उनका क्या होगा ? सवाल बहुत से हैं, ऐसे में आइए जानते हैं एक-एक कर के सभी सवालों के जवाब..

 

क्या है NRC

नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़ंस एक दस्तावेज है जो इस बात की शिनाख्त करता है कि कौन देश का वास्तविक नागरिक है और कौन देश में अवैध रूप से रह रहा हैं. यह शिनाख्त पहली बार साल 1951 में पंडित नेहरू की सरकार द्वारा असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बारदोलोई को शांत करने के लिए की गई थी. बारदोलाई विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर आए बंगाली हिंदू शरणार्थियों को असम में बसाए जाने के खिलाफ थे.

 

साल 1980 के दशक में वहां के कट्टर क्षेत्रीय समूहों द्वारा एनआरसी को अपडेट करने की लगातार मांग की जाती रही थी. असम आंदोलन को समाप्त करने के लिए राजीव गांधी सरकार ने 1985 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें 1971 के बाद आने वाले लोगों को एनआरसी में शामिल न करने पर सहमति व्यक्त की गई थी.

 

अवैध प्रवासियों को राज्य से हटाने के लिए कांग्रेस की सरकार ने साल 2010 में एनआरसी को अपडेट करने की शुरुआत असम के दो जिलों से की. यह बारपेटा और कामरूप जिला था. हालांकि बारपेटा में हिंसक झड़प हुआ और यह प्रक्रिया ठप हो गई. पहली बार सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया में 2009 में शामिल हुआ और फिर 2014 में असम सरकार को एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया. इसके बाद साल 2015 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एनआरसी का काम फिर से शुरू किया.

 

सिटिज़नशिप ऐक्ट

NRC को समझने के लिए सिटिजनशिप एक्ट को समझना भी जरूरी है. सिटिज़नशिप ऐक्ट के धारा 6ए के तहत अगर आप एक जनवरी 1966 से पहले से असम में रहते आए हैं तो आप भारतीय नागरिक हैं. वहीं सिटिज़नशिप ऐक्ट यह भी कहता है कि अगर आप जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच असम में रहने आए हैं तो आपके आने के तारीख़ के कुल 10 साल बाद आपको भारतीय नागरिक के तौर पर रजिस्टर किया जाएगा.

 

सिटिज़नशिप ऐक्ट का पेंच यहीं से शुरू होता है. इसके मुताबिक अगर आप 25 मार्च 1971 के बाद भारत में दाखिल हुए हैं तो आपको भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा और फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल द्वारा आपको अवैध प्रवासी करार दिया जाएगा. इसके बाद आपकी पहचान कर आपको वापस भेज दिया जाएगा. यही पहचान करने के लिए NRC तैयार किया जा रहा है.

 

पहला ड्राफ्ट 30 जुलाई 2018 को हुआ था प्रकाशित

 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने NRC का पहला ड्राफ्ट साल 2018 में 30 जुलाई को प्रकाशित किया था. इस पहले ड्राफ्ट में 40 लाख लोगों के नाम NRC लिस्ट में शामिल नहीं थे. अब सवाल उठा कि इन लोगों का भविष्य क्या होगा. इसके बाद फिर एक लिस्ट 2018 में ही 26 जून को प्रकाशित हुई. इस नए लिस्ट में तक़रीबन एक लाख नए नामों को सूची से बाहर किया गया. अब सूची से बाहर होने वाले लोगों की संख्या 41 लाख हो गई. अब कल यानी 31 अगस्त को जब NRC की फाइनल लिस्ट जारी होगी तो इन 41 लाख लोगों को अपनी नागरिकता के भविष्य पता चलेगा.

 

उनका क्या होगा जिनका नाम NRC में नहीं होगा

 

जिनका नाम NRC लिस्ट में कल के बाद भी नहीं आएगा उनका क्या होगा ? यह सवाल अपने आप में बड़ा है. इसका जवाब यह है कि उन लोगों को घबराने की जरूरत नहीं. अगर कल जारी होने वाली NRC की लिस्ट में उनका नाम नहीं आता तो उन्हें इसके बाद फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल या एफटी के सामने काग़ज़ों के साथ पेश होना होगा, जिसके लिए उन्हें 120 दिन का समय दिया गया है. NRC की फाइनल लिस्ट जारी हो जाने के बाद किसी की भी नागरिकता वैध है या अवैध इसका निर्णय फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल करेगी.

 

फ़ॉरनर्स ट्राइब्यूनल यानी एफ़टी एक अर्द्ध सरकारी निकाय है जो इसकी जांच करता है कि कोई आदमी विदेशी अधिनियम, 1946, के तहत विदेशी तो नहीं है. फ़ॉरनर्स ट्राइब्यूनल उन लोगों को नोटिस भेजता है जो डी-वोटर्स हैं या असम पुलिस की बोर्डर विंग ने जिनके ख़िलाफ़ शिकायत की है. 1977 में असम में डी वोटर्स कैटेगरी शुरू की गई जिसमें उन लोगों के लिए वोटिंग राइट हैं जो पड़ताल के दौरान अपनी नागरिकता साबित करने में नाकाम रहे.

 

अगर फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल के फैसले से भी संतुष्ट नहीं हैं तो क्या कर सकते हैं ?

 

यदि आवेदक एफटी के फैसले से असंतुष्ट है तो उसके पास हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के पास जाने का भी अधिकार है.

 

क्या होगा देश में अवैध रूप से रह रहे लोगों के साथ

 

एनआरसी की अंतिम सूची में जो जरूरतमंद लोग शामिल नहीं हो पाएंगे उनके साथ क्या किया जाएगा इसको लेकर तस्वीर अभी पूरी तरह साफ नहीं है. हालांकि उन्हें सरकार मुफ्त में कानूनी सहायता मुहैया कराने के लिए जरूरी प्रबंध करेगी. असम के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह एवं राजनीतिक विभाग) कुमार संजय कृष्णा ने एक बयान में कहा कि एनआरसी सूची में जो लोग शामिल नहीं हो पाएंगे उन्हें तब तक किसी भी हालत में हिरासत में नहीं लिया जाएगा जब तक विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) उन्हें विदेशी नागरिक घोषित न कर दे. हालांकि कानूनन नजरिए से बात करें तो अवैध रूप से रह रहे लोगों को डिटेन करके निर्वासित करने प्रावधान है.

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