महात्मा गांधी को दुनिया के इतिहास में एक ऐसा महानायक माना जाता है कि जिनकी आभा इतनी विराट थी कि उसने अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग जूनियर से लेकर अफ्रीका में नेल्सन मंडेला तक को प्रभावित किया था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गांधी जैसा महामानव जिस इंसान से सबसे ज्यादा प्रभावित था उनका नाम लियो टॉल्सटॉय था. इस वक्त लियो टॉल्सटॉय का एक ग्रंथ ‘वॉर एंड पीस’ काफी चर्चा में है.
बंबई हाई कोर्ट ने बुधवार को भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी वर्नोन गोन्जाल्विस से पूछा है कि उन्होंने अपने घर पर ‘वार एंड पीस’ समेत कई आपत्तिनजक सामग्री अपने पास क्यों रखी थी. आपको बता दें कि बंबई हाई कोर्ट ने जिस ‘वॉर एंड पीस’ को आपत्तिजनक सामग्री कहा है उसे साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता अंग्रेज लेखक जॉन गाल्सवर्दी ने अब तक का रचा गया श्रेष्ठतम उपन्यास कहा था.
फ्रांस के नोबल पुरस्कार वीजेता लेखक रोमां रोलां ने तो यहां तक कहा था कि, “इस महान कृति का जीवन की तरह न तो आरंभ है और न ही अंत. यह तो शाश्वत गतिशीलता में स्वयं जीवन है.” उन्होंने तो इस महान रचना को “19वीं शताब्दी का भव्य स्मारक, उसका मुकुट” माना है.
माना जाता है लेखक अपनी कृति में स्वयं जीता है. वो चाहे जितना भी तटस्थ रहने की कोशिश करे, लेकिन उसका व्यक्तित्व उसकी रचना में जरूर प्रकट होता है. ‘वॉर एंड पीस’ को पढ़ने पर भी आपको उसमें लियो टॉल्सटॉय का प्रभाव देखने में मिल जाता है. लियो टॉल्सटॉय वैसे तो एक अमीर घराने से ताल्लुक रखते थे, लेकिन जीवन की मध्यावधी में उन्होंने भोग विलास से दूरी बना ली थी.
लियो टॉल्सटॉय के ऊपर बौद्ध धर्म का प्रत्यक्ष प्रभाव मिलता है और यही प्रभाव उनकी रचनाओं पर भी देखने को मिलता है. ‘वॉर एंड पीस’ में टॉल्सटॉय ने दर्शाया है कि किस तरह से साधारण रूसी लोगों की देशभक्ति, साहस, वीरता के आगे यूरोप को अपने पैरों के नीचे रौदंने वाले नेपोलियन और उसकी अजेय समझी जाने वाली सेना को हार का मुंह देखना पड़ा था.
1863 से लेकर 1869 तक ये उपन्यास चार किस्तों में लिखा गया, जिसमें 1500 से ज्यादा पन्ने हैं. लियो टॉल्सटॉय ने जिस तरह से सैकड़ों पात्रों को एक साथ समेटा है वो हर किसी को हैरान कर जाता है. कुछ लोग तो ये मानते हैं कि इस तरह की रचना करना इंसानी छमताओं से परे है. आज वक्त में इसी तरह की बात जॉर्ज आर आर मार्टिन द्वारा लिखित ‘अ सॉन्ग ऑफ़ आइस एंड फायर’ के बारे में कही जाती है. मशहूर वेब सीरिज ‘गेम्स ऑफ थ्रोन’ इसी पर आधारित है.
अपनी इस महान रचना में टॉल्सटॉय ने बताया है कि युद्ध शुरू तो सत्ता पर काबिज लोग करते हैं, लेकिन उसका सारे समाज, जीवन के सभी पक्षों और सभी वर्गों पर क्या प्रभाव पड़ता है. उन्होंने इसके लेखन की शुरुआत अपनी शादी के बाद की थी, इस काम में उनकी 16 साल छोटी पत्नी सोफिया उनकी मदद करती थीं. रूसी भाषा में इसे ‘वोयना इ मीर’ नाम के प्रकाशित किया गया था, कुछ लोगों का इसे लेकर मानना है कि टॉलस्टॉय ने ‘मीर’ शब्द इस्तेमाल समाज के परिपेक्ष्य में किया है, इसलिए इस किताब का नाम ‘वॉर एंड पीस’ की जगह ‘वॉर एंड सोसाइटी’ होना चाहिए.
कहा जाता है कि आज भी दुनिया भर में किताबों के शौकिन इसे पढ़ने के लिए हफ्तों की छुट्टी लेते हैं. इस किताब में टॉल्सटॉय ने सत्ता की भूख के उस क्रूर चेहरे को दिखाया है जिसमें सत्ता पाने के लिए किस तरह मानवता को कुचल दिया जाता है. लेकिन जब यही दबे कुचले लोगों खड़े होते हैं तो बड़े से बड़े सत्ता प्रतिष्ठानों को धूल में मिला देते हैं, फिर भले ही वो यूरोप को जीतने वाला नेपोलियन क्यों न हो.
के आसिफ की मशहूर मूवी मुगल-ए-आजम के एक सीन में संग तराश कहता है कि मेरे बनाए हुए मुजस्मे शहजादों और बदशाहों को पसंद नहीं आते क्योंकि ये सच बोलते हैं. संग तराश मैदान ए जंग के अपने एक मुजस्मे की तरफ इशार करते हुए, “ये बताता है कि जंग में लाखों लोगों की मौत और एक इसांन की जीत होती है.” टॉल्सटॉय ने के आसिफ से कई साल पहले यही बात अपनी महान कृति ‘वॉर एंड पीस’ में बताई है.
दिलचस्प बात ये है कि जज ने अपनी टिप्पणी में टॉल्सटॉय की किताब ‘वॉर एंड पीस’ का जिक्र किया, दरअसल आरोप पत्र में वो किताब थी ही नहीं. जैसे ही जज ने ‘वॉर एंड पीस’ का जिक्र किया, इस मामले में एक वकील युग चौधरी ने तब अदालत को बताया कि ‘वार एंड पीस’ जिसका बुधवार को अदालत ने जिक्र किया था, वह विश्वजीत रॉय द्वारा संपादित निबंधों का संग्रह है और उसका शीर्षक ‘वार एंड पीस इन जंगलमहल: पीपुल, स्टेट एंड माओइस्ट’ है.
आज के वक्त में जब दुनिया बारुद के ढ़ेर पर बैठकर आग से खेल रही है. भारत-पाकिस्तान, अमेरिका-ईरान, अमेरिका-नॉर्थ कोरिया, चीन- भारत, यमन-साऊदी अरब, साऊदी अरब-ईरान, इराक-कतर और आईएसआईएस तक हर तरफ जंग के बादल छाए हैं, ऐसे में शायद टॉल्सटॉय की ‘वॉर एंड पीस’ दुनिया को शांति का एक ऐसा रास्ता दिखा सकती है जहां मानवता विविधता को स्वीकार करते हुए फल फूल सकती है.
मुगल-ए-आजम मूवी का एक सीन
महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और जेम्स बेवेल के मानस पिता लियो टॉल्सटॉय अपनी इस रचना के बाद इतने थक गए थे कि उन्होंने लेखन कार्य ही छोड़ दिया था. इसके बाद वो अपने गांव जाकर वापस खेती करने लगे थे. इसी दौरान एक बार वो ट्रेन से कहीं जा रहे थे तब उन्हें पता चला कि एक औरत ने ट्रेन से कटकर आत्महत्या कर ली है. जिसके बाद उन्होंने अपनी एक और महान रचना ‘आन्ना कारेनिना’ का लेखन शुरू किया. बता दें कि गांधी के जीवन पर बुद्ध का जो प्रभाव पड़ा है, वो टॉल्सटॉय से ही होकर उन तक पहुंचा है, लियो टॉल्सटॉय के नाम पर ही उन्होंने अफ्रीका में ‘टॉल्सटॉय फार्म’ की स्थापना की थी.