RBI ने खोला खजाना, इन 5 क्षेत्रों में मोदी सरकार के काम आएंगे 1.76 लाख करोड़

इस कमिटी का काम यह सलाह देना था कि आरबीआई को कितनी पूंजी अपने पास रखनी चाहिए और बाकी सरकार को देनी चाहिए. आरबीआई के पास 2017-2018 के वित्तीय वर्ष के आखिर में 9.6 लाख करोड़ रुपये की पूंजी थी.

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नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) केंद्र सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये देगी. रिजर्व बैंक के सेंट्रल बोर्ड ने बिमल जालान कमिटी की सिफारिशें मंजूर कर ली हैं. सोमवार को हुई बैठक के बाद आरबीआई ने कहा, ‘बोर्ड ने मोदी सरकार को 1,76,051 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने का फैसला किया है, जिसमें से 1,23,414 करोड़ रुपये की सरप्लस राशि 2018-19 के लिए होगी. इसके अलावा संशोधित आर्थिक पूंजी ढांचे के अनुसार अतिरिक्त प्रावधानों के तहत 52,637 करोड़ रुपये दिए जाएंगे.’

पैनल ने अपनी प्रमुख सिफारिशों को बरकरार रखा और ढांचे में सिर्फ एक बदलाव किया है. इस कमिटी में सुभाष चंद्र गर्ग की जगह वित्त सचिव राजीव कुमार ने ली. इस सरप्लस ट्रांसफर से सरकार को अपने कर राजस्व में किसी भी संभावित कमी पर आने में मदद मिलेगी. यह सरप्लस ट्रांसफर जीडीपी (2018-19) का 1.25 प्रतिशत है. रिजर्व बैंक ने मोदी सरकार की सलाह के बाद एक कमिटी का गठन किया था, जिसकी कमान पूर्व आरबीआई गवर्नर बिमल जालान के हाथों में थी, ताकि केंद्रीय बैंक के मौजूदा आर्थिक पूंजी ढांचे की समीक्षा की जा सके.

इस कमिटी का काम यह सलाह देना था कि आरबीआई को कितनी पूंजी अपने पास रखनी चाहिए और बाकी सरकार को देनी चाहिए. आरबीआई के पास 2017-2018 के वित्तीय वर्ष के आखिर में 9.6 लाख करोड़ रुपये की पूंजी थी. पिछले दिनों सरप्लस राशि का मुद्दा मोदी सरकार और आरबीआई के बीच तनातनी की वजह बन गया था. सरकार ने कहा था कि रिजर्व बैंक किसी भी अन्य सेंट्रल बैंक की तुलना में बहुत ज्यादा नकदी रिजर्व रख रहा है और उसे पूंजी की भरपूर मात्रा केंद्र सरकार को देनी चाहिए.

इस विवाद के बीच उर्जित पटेल ने निजी कारणों का हवाला देते हुए आरबीआई गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था. वित्त मंत्रालय ने तर्क दिया था कि आरबीआई के पास अपनी कुल संपत्ति के 28 फीसदी के बराबर बफर पूंजी है, जो वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंकों द्वारा रखे जाने वाली रिजर्व पूंजी की तुलना में कहीं ज्यादा है. वैश्विक नियम 14 फीसदी का ही है. हालांकि उर्जित पटेल के बाद पूर्व आर्थिक सचिव शशिकांत दास को नया आरबीआई गवर्नर नियुक्त किया गया.


अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा किए गए कई महत्वपूर्ण ऐलान के कुछ ही दिन बाद भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सरकार के लिए खजाना खोल दिया है. रिजर्व बैंक ने अपने खजाने से सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये की भारी रकम देने का निर्णय लिया है. आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रही सरकार के लिए यह बड़ा उपहार है. आइए जानते हैं कि सरकार इस बड़ी रकम को कहां खर्च कर सकती है.

1. सार्वजनिक बैंकों का पूंजीकरण

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक नकदी की तंगी से गुजर रहे हैं और उनके पास पर्याप्त पूंजी नहीं है. करीब आधा दर्जन कमजोर बैंक रिजर्व बैंक के त्वरित सुधार कार्रवाई (PCA) ढांचे के तहत लाए गए हैं. वित्त मंत्री ने पिछले हफ्ते घोषणा की थी कि सार्वजनिक बैंकों को 70,000 करोड़ रुपये की पूंजी दी जाएगी, हालांकि बैंकों को इससे भी ज्यादा पूंजी की जरूरत है. तो रिजर्व बैंक से मिले खजाने का इस्तेमाल सरकार बैंकों को और पूंजी देने के लिए कर सकती है और इससे अगले पांच साल में बैंकों पर दबाव कम होगा.

2. बुनियादी ढांचे पर खर्च

मोदी सरकार ने अगले पांच साल में बुनियादी ढांचे पर 100 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. इतनी बड़ी रकम खर्च करने करने के लिए पूंजी जुटाना एक बड़ी चुनौती है. रिजर्व बैंक से मिले खजाने का एक बड़ा हिस्सा सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए कर सकती है. अभी बैंक भी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को कर्ज देने से हिचक रहे हैं. सरकार से बड़ी पूंजी मिलने के बाद उनके लिए भी ऐसी परियोजनाओं को कर्ज देना आसान हो जाएगा.

3. सरकारी योजनाओें के लिए एजेंसियों को मदद

सरकार किसानों, गरीबों और छोटे उद्यमियों के कल्याण के लिए ऐसी कई योजनाएं चलाती है, जिसका बोझ आखिरकार बैंकों पर पड़ता है. बैंकों को सरकारी एजेंसियों से फिर कोई वित्तपोषण भी नहीं मिल पाता. उदाहरण के लिए बैंकों ने करीब 8 लाख करोड़ रुपये का मुद्रा लोन बांटा है, लेकिन उन्हें इसके बदले वित्तपोषण नहीं मिल पा रहा. रिजर्व बैंक से मिले खजाने का इस्तेमाल सरकार नेशनल हाउसिंग बैंक (एनएचबी), सिडबी और नाबार्ड जैसी एजेंसियों की पूंजी बढ़ाने में कर सकती है.

4. बाजार से कर्ज लेने में कमी

पिछले कई साल से सरकार का उधारी या कर्ज लेने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है. वित्त वर्ष 2019-20 में सरकार की योजना करीब 7 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेने की है. तो रिजर्व बैंक से मिले उपहार का इस्तेमाल सरकार अपनी उधारी कम करने में कर सकती है. इससे सरकार निजी क्षेत्र के लिए ज्यादा फंड मुहैया कर सकेगी.

5. सॉवरेन बॉन्ड की जरूरत कम

सरकार करीब 80 हजार करोड़ रुपये की भारी राशि सॉवरेन बॉन्ड के द्वारा विदेशी कर्ज से जुटाना चाहती है. इसके पीछे सोच यह है कि विदेश में सस्ती ब्याज दर पर मिल रहे कर्जों का फायदा उठाया जाए. लेकिन इस तरह के बॉन्ड जारी करने में मुद्रा यानी रुपये पर जोखिम बढ़ जाता है. अंतरराष्ट्रीय हालात ठीक न होने से रुपया पहले से ही कमजोर है, ऐसे में सॉवरेन बॉन्ड जारी करने से इस पर जोखिम और बढ़ जाएगा. इसलिए रिजर्व बैंक से मिले खजाने की मदद से सरकार को ऐसे बॉन्ड जारी करने की जरूरत कम रह जाएगी.

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