नई दिल्लीः सीटों के बंटवारे को लेकर फिर एक बार महाराष्ट्र में शिवसेना- बीजेपी के बीच ठन गई है. दोनों पार्टियों की ओर से आये ताज़ा बयानों के बाद गठबंधन को लेकर सवाल खड़े हुए हैं. सूत्रों के हवाले से मिली ख़बर के मुताबिक लोकसभा चुनाव से पहले तय हुए 50-50 के फ़ॉर्मूले पर रज़ामंदी नहीं होगी. बीजेपी ने 180-108 यानि शिवसेना को 108 सीटें देने का प्रस्ताव रखा जिसे शिवसेना ने नामंज़ूर किया है. मौजूदा स्थिति में अक्टूबर में होनेवाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियाां अलग अलग चुनाव लड़ सकती हैं.
दरअसल इस तनातनी की शुरुआत हुई बीजेपी की तरफ़ से जब लोकसभा चुनाव के ठीक बाद बीजेपी ने ये कहना शुरु कर दिया कि चुनाव शिवसेना के साथ लड़ेंगे लेकिन मुख्यमंत्री तो बीजेपी का ही होगा. इस बात पर शिवसेना की तरफ़ से आपत्ति जताई गई मगर धीरे धीरे महाराष्ट्र बीजेपी के बड़े नेता ही ये संकेत देने लगे कि गठबंधन होगा तो उनकी शर्तों पर. शिवसेना ने इसे वादाखिलाफी करार देते हुए अकेले लड़ने की तैयारी शुरु की.
महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने तो बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को यहां तक कह दिया कि हमें 135 सीटों से ज़्यादा सीटें जीतनी हैं जिससे साफ़ संकेत मिला कि तय 144-144 का फार्मूला बीजेपी को मान्य नहीं होगा. बीजेपी के आला नेताओं को ऐसा लगता है कि पिछले विधान सभा चुनाव में उन्हें 122 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. 35 सीटें वो 2000 से कम मतों से हारे थे और 40 सीटें 5000 से कम. बीजेपी ये मानती है कि अगर पुरी ताक़त से चुनाव लड़ेंगे तो वो इन 75 सीटों में से कम से कम 50 सीटें जीत सकते हैं. ऐसे में अगर शिवसेना मानती है तो ठीक वरना अकेले चुनाव लड़ने के लिए वो तैयार है.
बीजेपी के इस तेवर को देखते हुए शिवसेना ने अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी शुरु की और ताबड़तोड़ दूसरे पार्टी के नेताओं की इनकमिंग भी शुरु की है. वहीं बीजेपी ने भी गठबंधन नहीं होने पर सभी 288 सीटों के लिए उम्मीदवार जुटाना शुरू कर दिया है. अब सूत्र बताते हैं कि बीजेपी ने शिवसेना पर दबाव बनाना शुरु कर दिया है और उनके सामने 180-108 का फार्मूला रखा दिया जिसे शिवसेना ने अफ़वाह क़रार दिया है.
तय फार्मूले के मुताबिक मुख्यमंत्री पद ढाई ढाई साल दोनों पार्टियों को मिलना था लेकिन अब उसपर खुद मुख्यमंत्री ने पूर्णविराम लगा दिया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि वो आदित्य ठाकरे को उप मुख्यमंत्री बनाकर उनके साथ काम करना पसंद करेंगे. ऐसे में शिवसेना ये समझती है कि अकेले चुनाव लड़ना ही सही होगा जिसके लिए तैयारियां ज़ोरों पर हैं. यानि 2014 की तरह ही बीजेपी शिवसेना एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ सकती हैं.