मॉब लिंचिंग पर PM को लिखे लेटर के विरोध में कंगना से लेकर प्रसून जोशी तक, 61 दिग्गजों ने लिखा खुला खत
देशभर में धर्म और जाति के नाम बढ़ रही हिंसा की घटनाओं के बीच 49 हस्तियों ने पीएम मोदी के नाम चिट्ठी लिखी थी.अब देश की 61 अन्य हस्तियों ने उस चिट्ठी के विरोध में खुला खत लिखा है.
नई दिल्ली: हाल ही में 49 बड़ी हस्तियों द्वारा देश के प्रधानमंत्री को भीड़ की हिंसा को रोकने को लेकर खत लिखा था. अब ‘चुनिंदा मामलों में ही आलोचना और विरोध’ करने का आरोप लगाते हुए 61 अन्य हस्तियों ने खुला खत लिखा है. खत का शीर्षक है- ‘Against Selective Outrage and False Narratives’. इस खत को लिखने वाली हस्तियों में बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत, गीतकार प्रसून जोशी, क्लासिकल डांसर और सांसद सोनल मानसिंह, वादक पंडित विश्व मोहन भट्ट, फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर और विवेक अग्निहोत्री शामिल हैं. इस खत में पूछा गया है कि जब आदिवासियों को माओवादी निशाना बनाते हैं तब ये लोग क्यों चुप रहते हैं.
61 personalities including actor Kangana Ranaut, lyricist Prasoon Joshi, Classical Dancer and MP Sonal Mansingh,Instrumentalist Pandit Vishwa Mohan Bhatt, Filmmakers Madhur Bhandarkar& Vivek Agnihotri write an open letter against 'selective outrage and false narratives'. pic.twitter.com/RGYIxXeJzS
— ANI (@ANI) July 26, 2019
बता दें कि इससे पहले भारत में साल 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता पर काबिज़ होने के बाद से अल्पसंख्यक और दलित समुदायों के खिलाफ बढ़ी मॉब लिंचिंग की घटनाओं के मद्देनज़र देश की कई नामचीन हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था. इस पत्र को कला, फिल्म, शिक्षा और सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत कई क्षेत्रों के 49 लोगों ने मिलकर पीएम मोदी को भेजा था. पत्र लिखने वालों में फिल्ममेकर मणि रत्नम, अनुराग कश्यप, अपर्णा सेन, श्याम बेनेगल, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा, गायक शुभा मुदगल और इफ्तेखार एहसान जैसे लोग शामिल थे.
क्या लिखा था पीएम को भेजे गए चिट्ठी में ?
प्यारे प्रधानमंत्री, हम शांति के पक्षधर और देश पर गर्व महसूस करने वाले लोग हाल के दिनों में हमारे प्यारे मुल्क में घटी दुखद घटनाओं को लेकर फिक्रमंद हैं.
हमारे संविधान में भारत को धर्म निरपेक्ष सामाजिक लोकतंत्रिक और गणतांत्रिक बताया गया है, जहां हर नागरिक, फिर वो चाहे किसी भी धर्म, नस्ल, लिंग या जाति का हो वो बराबर है. इसलिए हर नागरिक को मिले संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
1 जनवरी 2009 से लेकर 26 अक्टूबर 2018 के (फैक्ट चेकर इनडाटाबेस. 30 अक्टूबर, 2018) दरमियान धार्मिक पहचान के आधार पर हेट क्राईम (नफरत आधारित अपराध) के 254 रिपोर्ट्स आईं, जिसमें 91 लोगों को मार दिया गया और 579 लोग घायल हुए. द सिटिज़ंस रिलीजियस हेट क्राईम वॉच ने ये रिकॉर्ड किया है कि 62 फीसदी मामलों में पीड़ित मुस्लिम हैं (भारत की आबादी में 14 फीसदी मुस्लिम आबादी है) और ईसाईयों के खिलाफ इस तरह के अपराध के 14 फीसदी ( भारत की आबादी में 2 फीसदी ईसाई आबादी है) मामले सामने आए हैं. लगभग 90 फीसदी हमलों के मामले मई 2014 के बाद के हैं. जब आपकी सरकार देश की सत्ता पर काबिज़ हुई.
प्रधानमंत्री जी आपने संसद में कुछ लिंचिंग की घटनाओं की आलोचना की है, लेकिन ये काफी नहीं है. अपराधियों के खिलाफ हकीकत में किस तरह का एक्शन लिया गया है? हम ये दृढ़ता से महसूस करते हैं कि इस तरह के अपराध को गैर-ज़मानती घोषित कर देना चाहिए और ये कड़ी सज़ा जल्द और निश्चित तौर पर मिलनी चाहिए. अगर हत्या के मामलों में बिना पेरोल के उम्रकैद की सज़ा दी जा सकती है, तो लिंचिंग के मामलों में क्यों नहीं ? जोकि और भी जघन्य है. अपने ही देश में किसी भी नागरिक को डर के साए में नहीं जीना चाहिए.
खेद जताते हुए कहना पड़ रहा है कि आज “जय श्री राम” एक उकसाने वाला ‘नारा’ बन गया है, जिससे कानून व्यवस्था के लिए दिक्कतें पैदा हो रही हैं. कई लिंचिंग इसी के नाम पर हुई हैं. ये हैरान करने वाली बात है कि हिंसा की इतनी घटनाएं धर्म के नाम पर हो रही हैं. ये मध्य युग नहीं है. भारत के बहुसंख्यक समुदाय के ज्यादातर लोगों के लिए राम का नाम पहुत पवित्र है. इस देश के सर्वोच्च कार्यकारी होने के नाते आपको राम के नाम को इस तरह से बदनाम होने से रोकना चाहिए.
2. असहमति के बिना कोई लोकतंत्र नहीं होता. क्योंकि लोग सरकार से असहमति रखते हैं, इसके लिए उन्हें एंटी नैशनल या अर्बन नक्सल कहकर कैद नहीं किया जा सकता है. भारत के संविधान का आर्टिकल 19 बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हिफाज़त करता है, असहमति इसका अभिन्न अंग है.
सत्तारूढ़ पार्टी की आलोचना करने का मतलब देश की आलोचना नहीं है. सत्ता पर काबिज़ कोई भी पार्टी उस देश का पर्याय नहीं हो सकती, जहां वो पावर में है. वो सिर्फ उस देश की कई राजनैतिक पार्टियों में से एक होगी. इसलिए सरकार के खिलाफ कोई खड़ा होता है, तो उसे देश के खिलाफ खड़े होने के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. एक खुला माहौल, जहां असहमति को दबाया नहीं जाता हो, सिर्फ उसी से देश मज़बूत होता है. हम उम्मीद करते हैं कि हमारे सुझावों को उसी जज़्बे के साथ लिया जाए, जैसे की ये हैं, एक भारतीय के तौर पर जो कि हकीकत में इन चीज़ों को लेकर फिक्रमंद है और इसको लेकर बेचैन है, हमारे मुल्क की किस्मत.