देहरादून। उत्तराखंड सरकार एक ऐसा कदम उठाने जा रही है जो ऐसे सरकारी कर्मचारियों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले लंबित हैं या जिन पर लापरवाह या अकर्मण्य होने के आरोप लगते रहे हैं. केंद्र सरकार के नक्शे कदम पर चलते हुए अब उत्तराखंड में भी 50 साल की आयु पूरी कर चुके लापरवाह और भ्रष्ट कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृति पर भेजने की तैयारी शुरू हो गई है.
अधिकारियों की कामचोरी बर्दाश्त नहीं होगी, कामचोर अफसरों को कंपल्सरी रिटायरमेंट देकर घर भेजा जाएगा। pic.twitter.com/Cg1aBzffaV
— Trivendra Singh Rawat (@tsrawatbjp) July 23, 2019
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कई मौकों पर इस बात को कह चुके हैं कि नॉन परफार्मर और भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा. इसी माह कार्मिक विभाग की ओर से विभिन्न विभागों को निर्देश जारी कर ऐसे कर्मचारियों का ब्योरा मांगा गया है.
स्क्रीनिंग से हड़कंप
विभागों में स्क्रीनिंग शुरू होने के बाद हड़कंप की स्थिति है. इस छंटनी की जद में सबसे पहले वे विभाग आएंगे जहां कर्मचारियों की संख्या अधिक है. इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पीडब्लूडी, सिंचाई, ऊर्जा निगम, शहरी विकास जैसे विभाग शामिल हैं. उत्तराखंड के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह का कहना है कि एक पारदर्शी और चुस्त प्रशासनिक व्यवस्था, बेहतर सुविधाएं पाना हर नागरिक का अधिकार है. और इसके लिए जरूरी है कि अनुपयोगी कर्मियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाए.
आशंकित हैं कर्मचारी
सरकार के इस फैसले से कर्मचारी आशंकित हैं. अधिकारी-कर्मचारी समन्वय मंच के अध्यक्ष पंचम बिष्ट का कहना है कि इस पूरी प्रक्रिया में ट्रांसपेरेंसी जरूरी है. स्क्रीनिंग के लिए जो कमेटियां बनाई जाएं उसमें कर्मचारी यूनियनों को भी प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए.
पुराना है अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश
उत्तराखंड में अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश कोई नया नहीं है. 2002 में कार्मिक विभाग ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश जारी कर अनुपयोगी कार्मिकों की स्क्रीनिंग के आदेश दिए थे. ये आदेश उसके बाद प्रतिवर्ष जारी होते रहे. हालांकि इन पर कभी अमल नहीं हो पाया. इस बार मुख्यमंत्री द्वारा खुद इसमें रूचि दिखाए जाने से कर्मचारियों में हड़कंप है.
क्या है अनिवार्य सेवानिवृत्ति
अनिवार्य सेवानिवृति के तहत 50 वर्ष की आयु प्राप्त किसी सरकारी सेवक को अनिवार्य रूप से रिटायर किए जाने की व्यवस्था दी गई है. इसके तहत गुजरात बनाम उमेद भाई ए पटेल के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य सेवानिवृत्ति के बारे में दिए गए दिशा निर्देशों को आधार बनाया गया है. इसमें कहा गया है कि जब किसी लोक सेवक की सेवा सामान्य प्रशासन के लिए उपयोगी नहीं रह गई हो तो उसे लोकहित में अनिवार्य सेवानिवृत्त किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने ताकीद की है कि छंटनी का आदेश कर्मचारी की सेवा के संपूर्ण रिकार्ड को ध्यान में रखकर ही किया जाए. इसमें गोपनीय रिकॉर्ड में प्रतिकूल प्रविष्टि को प्राथमिकता भी दी जाएगी.