कर्नाटक के नाटक को लेकर शिवसेना ने केंद्र पर उठाए सवाल, सामना में लिखा- चुपचाप तमाशा क्यों देख रही सरकार
कर्नाटक में करीब दो हफ्ते से राजनीतिक संकट चल रहा है, कांग्रेस के तेरह और जेडीएस के तीन विधायकों के इस्तीफे के बाद कुमारस्वामी की सरकार खतरे में है. कर्नाटक के संकट पर आज फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई संभव है. जेडीएस और कांग्रेस ने बहुमत परीक्षण के लिए राज्यपाल की ओर से सीमा तय करने को चुनौती दी है.
नई दिल्ली: कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार रहेगी या जाएगी, इसका फैसला आज हो जाएगा. विधानसभा में कुमारस्वामी सरकार का बहुमत परीक्षण होगा. 19 जुलाई को बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल की ओर से दी गई दो डेडलाइन फेल हो गई. सरकार पर सदन में वोटिंग को टालने के आरोप भी लग रहे हैं. इस सब के बीच अब शिवसेना ने कर्नाटक की राजनीति में केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है कि कर्नाटक में सभी लोग लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा रहे हैं. दोनों तरफ का यह तमाशा केंद्र सरकार शांतिपूर्वक क्यों देख रही है? या तो वहां राष्ट्रपति शासन लागू करो या कर्नाटक विधानसभा को बर्खास्त करो. कर्नाटक की जनता को ही निर्णय लेने दिया जाए. कुछ भी करो लेकिन कर्नाटक का यह नाटक एक बार खत्म करो.
अखबार में लिखा है, ”कर्नाटक में फिलहाल जो राजनीतिक तमाशा शुरू है वो आज भी समाप्त होगा, ये कहना कठिन है. बहुमत का निर्णय संसद या विधानसभा के सभागृह में होना चाहिए. लेकिन बहुमत गंवाकर बैठे कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी विधानसभा में चर्चा कर समय गंवा रहे हैं. उन्हें सीधे मतदान करके लोकतंत्र का पक्ष रखना चाहिए था लेकिन उनकी सांस मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर ऐसी अटकी है कि वो छूटते नहीं छूट रही.”
कुमारस्वामी पर सवाल उठाते हुए लिखा है, ”राज्यपाल, विधानसभा अध्यक्ष और कुमारस्वामी ये तीन मुख्य पात्र इस खेल में अपने-अपने पत्ते फेंक रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने भी उसमें हस्तक्षेप किया है और 15 बागी विधायकों की पांचों उंगलियां घी में हैं. इस प्रकार वे मजा कर रहे हैं. 15 बागी विधायकों का विधानसभा में उपस्थित रहना अनिवार्य नहीं है और व्हिप का उल्लंघन कर दलबदल कानून के अंतर्गत उन पर कार्रवाई नहीं की जा सकती, सर्वोच्च न्यायालय ने 17 जुलाई को ऐसा आदेश दिया था.”
आगे लिखा है, ”कुमारस्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करके इस निर्णय की बृहद व्याख्या जानने की मांग की है. उस पर सोमवार को सुनवाई होगी. इसका मतलब ये हुआ कि सोमवार तक कुमारस्वामी को जीवनदान मिल गया. लेकिन सोमवार के बाद क्या? इसका उत्तर कुमारस्वामी के पास नहीं है. सोमवार नहीं तो मंगलवार या फिर कभी. कुमारस्वामी को विश्वास प्रस्ताव के समक्ष जाना ही पड़ेगा. लोकतंत्र और संसदीय परंपरा की विरासत का पालन करते हुए कुमारस्वामी को सत्ता का त्याग कर देना चाहिए था.”