पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो राज्य के गृहमंत्री भी हैं, बुधवार को आरएसएस नेताओं के सम्बंध में जानकारी जुटाने के अपने गृह विभाग के एक आदेश का मीडिया के सामने बचाव नहीं कर पाए. बिहार पुलिस की विशेष शाखा के तत्कालीन एसपी राजीव रंजन ने लोकसभा चुनाव के कुछ दिन बाद अपने विभाग के डीएसपी से आरएसएस के 19 संगठनों के नेताओं और पदाधिकारियों के बारे में रिपोर्ट मांगी थी. इस रिपोर्ट की कॉपी जब मीडिया के हाथ लग गई तो नीतीश कुमार की सरकार कुछ घंटे भी इसका बचाव नहीं कर पाई.
बुधवार की सुबह हालांकि राज्य के सूचना मंत्री नीरज कुमार ने इसे एक रुटीन रिपोर्ट कहकर पूरे मामले पर पानी डाल दिया था, लेकिन जैसे ही बिहार विधान परिषद के अंदर भाजपा के विधान पार्षद संजय मयुख ने उठाया और मीडिया में लीक होने की जांच की मांग की उसके बाद सरकार डैमेज कंट्रोल में लग गई. लेकिन इस विवाद के बाद जहां तय माना जा रहा है कि इससे नीतीश और RSS के बीच अविश्वास का भाव और अधिक बढ़ेगा. वहीं स्पेशल ब्रांच के ADG जितेंद्र सिंह गंगवार ने जिस प्रकार से संवाददाता सम्मेलन किया उससे डैमेज कंट्रोल तो दूर सरकार और ख़ासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि के बारे में लोग दबी ज़ुबान से कहने लगे कि दबाव में उन्होंने एसपी से स्पष्टीकरण पूछकर अपने ही अधिकारियों का मनोबल गिरा दिया है.
संवाददाता सम्मेलन में गंगवार ने इस एसपी द्वारा जारी सर्कुलर का औचित्य यह बताया कि कुछ खुफिया जानकारी थी कि RSS के नेताओं पर कुछ ख़तरा है इसलिए सारी जानकारी जुटाई जा रही थी. वहीं एसपी से स्पष्टीकरण पूछने पर उनके पास कोई साफ़ जवाब नहीं था. गंगवार भी साफ़ साफ़ दबाव में दिख रहे थे. वह अपने जवाबों से पत्रकारों को संतुष्ट कर पाने में पूरी तरह से असफल दिखे.
संवाददाता सम्मेलन के बाद अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया, और साफ़ है कि इस मुद्दे पर नीतीश कुमार बचाव की मुद्रा में हैं. भाजपा का कोई दवाब हो या न हो लेकिन उनका दबाव अपने ही मातहत पुलिस अधिकारियों पर अधिक था और यह लग रहा था अपनी सरकार बचाने की जुगाड़ में उन्होंने एक बार फिर इस बात की परवाह नहीं की कि एक रुटीन काम के लिए अपने अधिकारी से स्पष्टीकरण पूछकर वे एक ग़लत परंपरा को जन्म दे रहे हैं.
हालांकि हाल के दिनों में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिससे नीतीश कुमार के समर्थक भी मानते हैं कि राजनीति या अपने आसपास के लोगों के दबाव में उन्होंने पुलिस अधिकारियों के मनोबल को तोड़ने वाले क़दम उठाए हैं. सबसे ताज़ा उदाहरण लखीसराय के एसपी और पटना के ग्रामीण एसपी का तबादला चुनाव के तुरंत बाद इसलिए कर दिया गया कि नीतीश कुमार के क़रीबी ललन सिंह जब मुंगेर से लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी थे तब उनके मनमुताबिक़ इन अधिकारियों ने काम करने से इनकार कर दिया था. उसी तरह चुनाव के बीचों-बीच नीतीश कुमार ने दो IPS अधिकारियों, जिसमें मुज़फ़्फ़रपुर के पूर्व SP विवेक कुमार शामिल हैं, का निलंबन वापस करके उन्हें फिर से पदस्थापित कर दिया. जबकि विवेक पर मुजफ्फरपुर में अपने कार्यकाल के दौरान शराब माफिया के साथ सांठ गांठ और आय से अधिक संपत्ति रखने का मामला ख़ुद बिहार सरकार के विशेष निगरानी विभाग ने दर्ज किया था.
लेकिन बिहार पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि धीरे-धीरे नीतीश कुमार अपने निर्णय और आदेश से राजनीतिक मजबूरी के कारण पुलिस अधिकारियों का मनोबल ऊंचा रखने में अपने से फेल हो रहे हैं.