राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर आज सुनवाई कर सकता है सुप्रीम कोर्ट
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में सुनवाई करने वाली बेंच में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई, जस्टिस एस एस बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर भी शामिल हैं.
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में मध्यस्थता की प्रगति पर गुरुवार को एक रिपोर्ट का अध्ययन कर सकता है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान बेंच ने 11 जुलाई को इस मुद्दे पर रिपोर्ट मांगी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर अदालत मध्यस्थता कार्यवाही पूरी करने का फैसला करती है तो 25 जुलाई से रोजाना आधार पर सुनवाई शुरू हो सकती है.
बेंच ने तीन सदस्यों वाली मध्यस्थता समिति के अध्यक्ष और शीर्ष अदालत के पूर्व रिटायर्ड जज एफ एम आई कलीफुल्ला से अब तक हुई प्रगति और मौजूदा स्थिति के बारे में 18 जुलाई तक उसे जानकारी देने के लिए कहा था. बेंच ने 11 जुलाई को कहा था, ‘कथित रिपोर्ट 18 जुलाई को प्राप्त करना आसान होगा जिस दिन यह अदालत आगे के आदेश जारी करेगी.’
बेंच में जस्टिस एस एस बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर भी शामिल हैं. बेंच ने मूल वादियों में शामिल गोपाल सिंह विशारद के एक कानूनी उत्तराधिकारी द्वारा दाखिल आवेदन पर सुनवाई करते हुए आदेश जारी किया.
आवेदन में विवाद पर न्यायिक फैसले की और मध्यस्थता प्रक्रिया समाप्त करने की मांग की गयी थी. आरोप लगाया गया था कि इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं हो रहा. बेंच ने कहा था कि अदालत मध्यस्थता समिति द्वारा दाखिल रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद 18 जुलाई को उचित आदेश जारी करेगी. समिति में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू भी शामिल हैं.
शीर्ष अदालत ने अयोध्या से लगभग 7 किमी दूर उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में मध्यस्थता प्रक्रिया के लिए जगह तय की थी, और कहा था कि मध्यस्थता स्थल से संबंधित, मध्यस्थों के ठहरने के स्थान, उनकी सुरक्षा और यात्रा सहित पर्याप्त व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा शीघ्र व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि कार्यवाही तुरंत शुरू हो सके.
इन्हें नहीं थी मध्यस्थता कमेटी स्वीकार
निर्मोही अखाड़ा और उत्तर प्रदेश सरकार को छोड़कर अन्य हिंदू संस्थाओं ने बेंच से कहा था कि वे मध्यस्थता के लिए अदालत के सुझाव के पक्ष में नहीं थे. मुस्लिम संस्थाओं ने प्रस्ताव का समर्थन किया था.
साल 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में चौदह अपील दायर की गई हैं, चार सिविल सूट में कहा गया है कि अयोध्या में 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों के बीच समान रूप से विभाजित किया जाना चाहिए जिसमें सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला शामिल हैं.