कांग्रेस में घमासान : जनार्दन द्विवेदी का आजाद, वासनिक, अहमद पटेल पर निशाना

कांग्रेस पार्टी के पांच अध्यक्ष और चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके जनार्दन द्विवेदी ने पार्टी की मौजूदा दशा पर दुख जताते हुए पांच अहम बातें कहीं. उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी के नेता कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं हैं.

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नई दिल्ली.राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए 6 हफ्ते से ज़्यादा हो गए हैं, पर पार्टी बन्द कमरे की बैठकों से आगे बढ़ नहीं पा रही है. पार्टी में मौजूद असमंजस की स्थिति को लेकर कई वरिष्ठ नेता अब खुल कर सामने आ गए हैं. कर्ण सिंह के बाद एक वक्त में गांधी परिवार के बेहद करीबी रहे जनार्दन द्विवेदी ने समन्वय और सहमति बनाने की मौजूदा प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं.

कांग्रेस पार्टी के पांच अध्यक्ष और चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके जनार्दन द्विवेदी ने पार्टी की मौजूदा दशा पर दुख जताते हुए पांच अहम बातें कहीं. उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी के नेता कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं हैं.

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पार्टी के नेता कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं

जनार्दन द्विवेदी ने राहुल गांधी के इस्तीफे को एक आदर्श स्थापित करने वाला कदम बताया और इसकी तुलना सोनिया गांधी के लाभ के पद के चलते दिए गए त्यागपत्र से की. वे यहीं नहीं रुके. कांग्रेस के पदाधिकारियों पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि बाकी नेताओं को भी उनकी बात का आदर करना चाहिए था. मगर ऐसा नहीं हुआ. तमाम पार्टी महासचिव और पदाधिकारियों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी के नेता अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं हैं.

आप छोड़ने के लिए नहीं तैयार हैं, तब तक आप पाने के भी हकदार नहीं

उन्होंने कहा, ‘पार्टी का अध्यक्ष त्यागपत्र देता है और पूरी पार्टी वैसे ही चलती रहती है. जब तक आप छोड़ने के लिए नहीं तैयार हैं, तब तक आप पाने के भी हकदार नहीं. इस देश में त्याग को माना जाता है. राहुल का इस्तीफा आदर्श स्थापित करता है. मगर पार्टी में जो जहां बैठा है वो छोड़ना चाहता नहीं.’

एक वक्त था जब 24 अकबर रोड में जनार्दन द्विवेदी की तूती बोलती थी. उनकी गिनती कांग्रेस में सबसे प्रभावशाली नेताओं में होती थी. 10 जनपथ के वह करीबी माने जाते थे. जाहिर है उनका इस तरह सार्वजनिक तौर पर बोलना सीधे तौर पर पार्टी में मचे अंदरूनी घमासान और खेमेबंदी की ओर इशारा है.

समन्वय समिति हुई भांग तो फिर  बैठक का क्या आधार?

पार्टी के नीति और नियमों के जानकार माने जाने वाले जनार्दन द्विवेदी के मुताबिक कुछ गिने-चुने नेताओं का अध्यक्ष चुनने को लेकर इस तरह बैठक करना सही नहीं है. द्विवेदी ने कहा कि ऐसी कौन सी कमेटी है जिसमें पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी  जैसे वरिष्ठ नेता को नहीं बुलाया गया.

‘कांग्रेस अध्यक्ष का चयन कौन कर रहा है?

कांग्रेस के संविधान के अनुसार अभी भी अध्यक्ष राहुल गांधी ही हैं. फिर ये बताया जा रहा कॉर्डिनेशन कमेटी की बैठक हो रही है. जब चुनाव खत्म हो गए हैं ऐसे में समन्वय कमेटी तभी खत्म हो जाती है. जो नेता हिस्सा ले रहे हैं, मेरा सबके प्रति आत्मीयता का भाव है मगर इस मामले में उनकी दृष्टि उचित नहीं है.

गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से 15 गुरुद्वारा रकाबगंज, कांग्रेस के पुराने वार रूम में बैठकों का दौर चल रहा है जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हिस्सा ले रहे हैं. उनका मानना है कि इस प्रक्रिया में प्रांतों से लेकर केंद्र के अनुभवी नेताओं की रायशुमारी होनी चाहिए थी.

अपने हर शब्द को तोलमोल कर बोलने वाले जनार्द द्विवेदी का इशारा कहीं ना कहीं अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद और मुकुल वासनिक जैसे सरीखे नेताओं की ओर है जो इन बैठकों की अगुवाई कर रहे हैं .

व्यवस्था बनाकर जाते राहुल तो बढ़ती विश्वसनीयता

जनार्दन द्विवेदी का मानना है कि राहुल गांधी ने जब इस्तीफा दिया तो उनको ऐसी कोई व्यवस्था बनाकर जानी थी जिससे नए अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया आसान हो जाती. सोनिया गांधी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब वह अपने इलाज के लिए विदेश गई थीं तो चार लोगों की कमेटी बनाकर गई थीं, जो पार्टी के रोजमर्रा के कामकाज की जिम्मेदारी निभाएं. राहुल गांधी  अगर व्यवस्था तय करते तो उनकी विश्वसनीयता और बढ़ती. अध्यक्ष पद को लेकर चल रही कयासबाजी और नामों को लेकर भी उन्होंने चिंता जताई.

कांग्रेस कार्यसमिति में ही राहुल गांधी को यह प्रस्ताव दिया जाना चाहिए था.  बतौर अध्यक्ष अगर राहुल एक कमेटी बना देते तो वह फिर अधिकृत थी कि सलाह-मशवरा करके कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से बात करके आगे की कार्यवाही पूरी की जाती. वह कार्यसमिति की बैठक में नाम प्रस्तावित करती, इससे आगे का रास्ता आसान रहता.

जल्द बुलाई जाए कार्यसमिति की बैठक

जनार्दन द्विवेदी के मुताबिक कार्यसमिति की बैठक जल्द बुलाई जाए और वह कोई नाम प्रस्तावित करें.  उसके बाद एसईसीसी की बैठक बुलाकर फैसले को मंजूर कराया जाए.

उनका मानना है की नेतृत्व की स्वीकार्यता पार्टी के कार्यकर्ताओं से होती है. जब कार्यकर्ता नेतृत्व को स्वीकार करते हैं तो देश भी उसको मानता है. क्योंकि कार्यकर्ता ही पार्टी के विचार जनता के बीच ले जाता है. ऐसे में कार्यकर्ताओं की भावना का आदर करना जरूरी.

सोनिया गांधी ने भी इसी तरह पार्टी की कमान संभाली थी जब  1998 में 17 मार्च को कांग्रेस कार्यकारी समिति ने उनका नाम प्रस्तावित किया और फिर बाद में 6 अप्रैल को सिरी फोर्ट में उनके नाम को मंजूरी मिल गई थी .

2014 में दिया इस्तीफा सोनिया गांधी ने रोका

जनार्दन द्विवेदी ने पार्टी में चल रहे घमासान पर बोलने की वजह पर भी अपनी सफाई पेश करते हुए कहा कि उनके मन में सिर्फ पार्टी का हित है. वह जो बात कह रहे हैं उसका उन्होंने भी अनुसरण किया. इस्तीफे की कॉपी दिखाते हुए उन्होंने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद उन्होंने संगठन महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया था.

उस दौरान पार्टी के भीतर युवा पीढ़ी को आगे बढ़ाने का मुद्दा जोरों से उठा था. जनार्दन द्विवेदी ने अपने इस्तीफे को सार्वजनिक करते हुए कहा कि 15 सितंबर ,2014 को अपना इस्तीफा सोनिया गांधी को दिया था जिसमें उन्होंने युवा पीढ़ी को सक्रिय पदों पर जिम्मेदारी देने की बात की थी. मगर सोनिया गांधी ने उनका इस्तीफा नामंजूर कर दिया था.

एक के बाद एक जिस तरह वरिष्ठ नेता खुलकर पार्टी की मौजूदा हालातों पर टिप्पणी कर रहे हैं, उससे यह साफ है कि मामला उलझता जा रहा है और ऐसा लगता नहीं कि कांग्रेस जल्दी ही इससे उबर पाएगी.

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