Economic Survey: 7% रहेगी GDP-कम वित्तीय घाटा, आर्थिक सर्वे में ऐसी दिखी अर्थव्यवस्था की तस्वीर
मोदी सरकार 2.0 का पहला बजट शुक्रवार को पेश होना है. बजट से पहले गुरुवार को सरकार ने संसद में आर्थिक सर्वे पेश किया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने चुनौतियां हैं कि वह आम आदमी की उम्मीदों पर खरा उतर सके.
नई दिल्ली. देश की अर्थव्यवस्था का आईना कहा जाने वाला इकोनॉमिक सर्वे संसद में पेश हो गया है। इस सर्वे में अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को रेखांकित किया जाएगा। इकोनॉमिक सर्वे 2018-19 को मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने पेश किया। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ये पहला आर्थिक सर्वे है। इससे पहले इस साल पेश किए गए अंतरिम बजट के दौरान आर्थिक समीक्षा पेश नहीं की गई थी। इकोनॉमिक सर्वे 2018-19 पेश करने से पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यन ने कहा, ‘हमारी टीम में मेहनत और लगन से काम किया है। उम्मीद करता हूं कि परीणाम भी अच्छा आए और हम अर्थव्सवस्था में सहयोग कर सकें। उम्मीद करता हूं कि ईश्वर हम पर कृपा बनाए रखेंगे।’
#WATCH Krishnamurthy Subramanian, Chief Economic Adviser (CEA) on Economic Survey: Our team has put in a lot of effort with a lot of dedication, I hope results are good and we are able to contribute to the ideas for the economy. I hope the almighty blesses us. pic.twitter.com/On3HsEf0o2
— ANI (@ANI) July 4, 2019
मोदी सरकार 2.0 का पहला बजट शुक्रवार को पेश होना है. बजट से पहले गुरुवार को सरकार ने संसद में आर्थिक सर्वे पेश किया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने चुनौतियां हैं कि वह आम आदमी की उम्मीदों पर खरा उतर सकें. राज्यसभा और लोकसभा में आर्थिक सर्वे पेश कर दिया गया है. सर्वे के अनुसार, 2019-20 में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 7 फीसदी तक रह सकती है. इससे आगामी वित्त वर्ष के लिए नीतिगत फैसलों के संकेत भी मिले हैं. आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2018-19 में वित्तीय घाटे में कमी आई है और यह जीडीपी के सिर्फ 3.4 फीसदी रहा, जबक लक्ष्य 3.3 फीसदी तक लाने का था. आर्थिक सर्वे के अनुसार अगर भारत को 2025 तक 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाना है तो लगातार जीडीपी में 8 फीसदी की ग्रोथ रफ्तार हासिल करनी होगी.
आर्थिक सर्वे 2019 की बड़ी बातें
- देश की विकास दर वित्त वर्ष 2020 में 7 फीसदी रहने की उम्मीद है।
- वित्त वर्ष 2020 में विकास दर बढ़ने की उम्मीद है।
- इन्वेस्टमेंट रेट अपने निचले स्तर पर पहुंचे।
- एनबीएफसी संकट के कारण विकास दर में कमी आई।
- एनपीए में गिरावट से कैपेक्स सायकल बढ़ने की उम्मीद।
- वित्त वर्ष 2020 में तेल की कीमतें कम होने का अनुमान।
- जनवरी से मार्च के बीच चुनाव की अनिश्चितता के कारण मंदी
- वित्त वर्ष 2019 में फिस्कल डेफिसिट 5.8 फीसदी रहने का अनुमान, वित्त वर्ष 2018 में 6.4 फीसदी था।
- वित्तवर्ष 2020 में इन्वेस्टमेंट रेट बढ़ने की उम्मीद है।
- पिछले 5 साल में GDP की दर औसत तौर पर 7.5 फीसदी रही।
- खाने के सामानों की कीमत कम होने के कारण किसानों ने कम उत्पादन किया।
- भारत को 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना आर्थिक सर्वे का मूल है
- विदेशी मुद्रा भंडार 2018-19 में 412.9 अरब डालर रहने का अनुमान
- वित्त वर्ष 2018-19 में आयात 15.4 प्रतिशत जबकि निर्यात में 12.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान
- आर्थिक समीक्षा में 2018-19 में खाद्यान्न उत्पादन 28.34 करोड़ टन रहने का अनुमान। कृषि, वानिकी और मत्स्यन में 2.9 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान
- 2018-19 में राजकोषीय घाटा 3.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। अंतरिम बजट में भी राजकोषीय घाटा 3.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था।
- डाटा को सार्वजनिक वस्तु के रूप प्रस्तुत करना।
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ‘से बदलाव (बेटी आपकी धनलक्ष्मी और विजयलक्ष्मी)’
- एलपीजी सब्सिडी के लिए ‘गिव इट अप’ से ‘थिंक अबाउट द सब्सिडी’
- समीक्षा में एमएसएमई को अधिक लाभ अर्जित करने, रोजगार जुटाने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए विकास योग बनाने पर ध्यान दिया गया है।दस साल पुरानी होने के बावजूद सौ कामगारों से कम कार्य बल वाली बौनी यानी छोटी फर्मो की संख्या विनिर्माण में लगी सभी संगठित फर्मों में पचास प्रतिशत से अधिक है।
- छोटी फर्मो का रोजगार में केवल 14 प्रतिशत और उत्पादकता में आठ प्रतिशत योगदान है।
- सौ से अधिक कर्मचारियों वाली बड़ी फर्मो का संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी 15 प्रतिशत होने के बावजूद रोजगार में 75 प्रतिशत और उत्पादकता में 90 प्रतिशत योगदान है।
- जैसा कि राजस्थान में हुआ है अधिक रोजगार सृजन के लिये इन इकाईयों के लिए श्रम कानून प्रतिबंधों को विनियमित करना।
- अधिक रोजगार सृजन क्षेत्रों में युवा फर्मो के लिए सीधे क्रेडिट प्रवाह हेतु। प्राथमिकता क्षेत्र ऋण दिशा-निर्देशों को पुन तैयार करना।
- समीक्षा में होटल, खानपान, परिवहन, रीयल इस्टेट, मनोरंजन तथा रोजगार सृजन के लिए अधिक ध्यान देते हुए पर्यटन जैसे सेवा क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
- समाज की अधिकतम डाटा को एकत्र करने में समाज की डाटा खपत पहले दी गई प्रौद्योगिकी अग्रिमता से कई अधिक है।
- लगभग 87.5 प्रतिशत मामले जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित हैं।
- शत-प्रतिशत निपटान दर निचली अदालतों में 2279 तथा उच्च न्यायालयों में 93 खाली पदों को भरने से ही प्राप्त की जा सकती हैं।
- उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में विशेष ध्यान दिये जाने की जरूरत है।
- निचली अदालतों में 25 प्रतिशत उच्च न्यायालयों में चार प्रतिशत और उच्च न्यायालय में 18 प्रतिशत उत्पादकता सुधार से बैकलॉग समाप्त किया जा सकता है।
- पिछले एक दशक में भारत में आर्थिक नीति अनिश्चितता में महत्वपूर्ण कमी आई है। यह कमी तब भी आई है जब विशेष रूप से अमेरिका जैसे प्रमुख देशों में आर्थिक नीति अनिश्चितता बढ़ी थी।
- पिछले पांच तिमाहियों के लिये भारत में अनिश्चितता ने निवेश बढ़ोतरी पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
- कम आर्थिक नीति अनिश्चितता निवेश के माहौल को बढ़ावा दे सकती है।
- अगले दो दशकों में जनसंख्या की वृद्धि दर में तेजी से कमी आने की संभावनाएं है। अधिकांश भारत जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाएगा, जबकि 2030 तक कुछ राज्यों में ज्यादा तादाद बुजुर्गों की होगी।
- 2021 तक राष्ट्रीय कुल गर्भधारण दर, प्रतिस्थापन दर से कम रहने की संभावना है।
- 2021-31 के दौरान कामकाजी आयु वाली आबादी में मोटे तौर पर 9.7 मिलियन प्रति वर्ष और 2031-41 के दौरान 4.2 मिलियन प्रति वर्ष वृद्धि होगी।
- अगले दो दशकों में प्रारंभिक स्कूल में जाने वाले बच्चों (5 से 14 साल आयु वर्ग) में काफी कमी आएगी।
- राज्यों को नये विद्यालयों का निर्माण करने के स्थान पर स्कूलों का एकीकरण/विलय करके उन्हें व्यवहार्य बनाने की आवश्यकता है।
- नीति निर्माताओं को स्वास्थ्यहुए सेवाओं में निवेश करते हुए और चरणबद्ध रूप से सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि करते हुए वृद्धावस्था के लिए तैयार रहने की जरूरत है।
- 93.1 प्रतिशत परिवारों की शौचालयों तक पहुंच।
- जिन लोगों की शौचालयों तक पहुंच है, उनमें से 96.6 प्रतिशत ग्रामीण भारत में उनका उपयोग कर रहे है।
- 30 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में 100 प्रतिशत व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएल) की कवरेज।
- परिवारों के लिए घरेलू शौचालय से वित्तीय बचत, वित्तीय लागत से औसतन 1.7 गुना और गरीब परिवारों के लिए 2.4 गुना बढ़ गई है
- दीर्घकालिक सतत सुधारों के लिए पर्यावरणीय और जल प्रबंधन संबंधी मामलों को एसबीएम में शामिल किये जाने की जरूरत है।
- भारत को 2010 के मूल्यों पर अपने वास्तविक प्रति व्यक्ति जीडीपी में 5,000 डॉलर तक की वृद्धि करने और उच्च मध्य आय वर्ग में दाखिल होने के लिए अपनी प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत में 2.5 गुना वृद्धि किये जाने की जरूरत है।
- 0.8 मानव विकास सूचकांक अंक प्राप्त करने के लिए भारत को प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत में चार गुना वृद्धि किये जाने की जरूरत है।
- पवन ऊर्जा के क्षेत्र में अब भारत चौथे, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में पांचवें और नवीकरणीय ऊर्जा संस्थापित क्षमता के क्षेत्र में पांचवें स्थान पर है।
- भारत में ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों की बदौलत 50,000 करोड़ रुपये की बचत हुई और कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में 108.28 मिलियन टन की कमी हुई।
- देश में कुल विद्युत उत्पादन में नवीकरणीय विद्युत का अंश (पनबिजली के 25 मेगावाट से अधिक को छोड़कर) 2014-15 के 6 प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में 10 प्रतिशत हो गया।
- 60 प्रतिशत अंश के साथ तापीय विद्युत अभी भी प्रमुख भूमिका निभाती है।
- भारत में इलेक्ट्रिक कारों की बाजार हिस्सेदारी मात्र 0.06 प्रतिशत है, जबकि चीन में यह 2 प्रतिशत और नॉर्वे में 39 प्रतिशत है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों की बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए तेजी से बैटरी चार्ज करने की सुविधाओं में वृद्धि किये जाने की जरूरत है।
- समीक्षा में कहा गया है कि प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के जरिये मनरेगा योजना को सुचारू बनाये जाने से उसकी दक्षता में वृद्धि हुई है।
- मनरेगा योजना में एनईएफएमएस और डीबीटी को लागू किये जाने से भुगतान में होने वाले विलंब में काफी कमी आई है।
- मनरेगा योजना के अंतर्गत विशेषकर संकटग्रस्त जिलों में कार्य की मांग और आपूर्ति बढ़ी है।
- समीक्षा में कामगारों की रक्षा और गरीबी के उन्मूलन के लिए बेहतर तरीके से निर्मित न्यूनतम वेतन प्रणाली की पेशकश की है।
- भारत की मौजूदा न्यूनतम वेतन प्रणाली में सभी राज्यों में विभिन्न अनुसूचित रोजगार श्रेणियों के लिए 1,915 न्यूनतम वेतन हैं।
- भारत में प्रत्येक तीन में से एक दिहाड़ी मजदूर न्यूनतम वेतन कानून के द्वारा सुरक्षित नहीं है।
- समीक्षा न्यूनतम वेतन को तर्कसंगत बनाये जाने का समर्थन करती है, जैसा कि वेतन संबंधी संहिता विधेयक के अंतर्गत प्रस्तावित किया गया है।
- समीक्षा द्वारा सभी रोजगारों/कामगारों के लिए न्यूनतम वेतन का प्रस्ताव किया गया है।
- केन्द्र सरकार द्वारा पांच भौगोलिक क्षेत्रों में पृथक ‘नेशनल फ्लोर मिनिमम वेज’ अधिसूचित किया जाना चाहिए।
- राज्यों द्वारा न्यूनतम वेतन ‘फ्लोर वेज’ से कम स्तरों पर निर्धारित नहीं होना चाहिए।
- न्यूनतम वेतन या तो कौशलों के आधार पर या भौगोलिक क्षेत्र अथवा दोनों आधारों पर अधिसूचित किये जा सकते हैं।
- समीक्षा प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए न्यूनतम वेतन प्रणाली को सरल और कार्यान्वयन योग्य बनाने का प्रस्ताव करती है।
- समीक्षा में न्यूनतम वेतन के बारे में नियमित अधिसूचनाओं के लिए श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अंतर्गत ‘नेशनल लेवल डैशबोर्ड’ का प्रस्ताव किया गया है।
- टोल फ्री नम्बर वैधानिक न्यूनतम वेतन का भुगतान न होने पर पर शिकायत दर्ज कराने के लिए।
- ज्यादा लचीले और सतत आर्थिक विकास के लिए एक समावेशी व्यवस्था के रूप में प्रभावी न्यूनतम वेतन नीति।
- 2018-19 में मुद्रास्फीति की दर 3.4 प्रतिशत तक सीमित रही।
- सकल अग्रिम के प्रतिशत के रूप में फंसे हुए कर्ज दिसम्बर, 2018 के अंत में घटकर 10.1 प्रतिशत रह गये, जोकि मार्च 2018 में 11.5 प्रतिशत थे।
- एनपीए अनुपात में कमी आने से बैंकिंग प्रणाली बेहतर हुई।
- दिवाला और दिवालियापन संहिता से बड़ी मात्रा में फंसे कर्जों का समाधान हुआ और व्यापार संस्कृति बेहतर हुई।
- 31 मार्च, 2019 तक सीआईआरपी के तहत 1,73,359 करोड़ रुपये के दावे वाले 94 मामलों का समाधान हुआ।
- 28 फरवरी, 2019 तक 2.84 लाख करोड़ रुपये के 6079 मामले वापस ले लिये गए।
- आरबीआई की रिपोर्ट की अनुसार फंसे कर्ज वाले खातों से बैंकों ने 50,000 करोड़ रुपये प्राप्त किए।
- अतिरिक्त 50,000 करोड़ रुपयों को गैर-मानक से मानक परिसंपत्तियों में अपग्रेड किया गया।
- बैंचमार्क नीति दर पहले 50 बीपीएस बढ़ाई गई और फिर पिछले वर्ष बाद में 75 बीपीएस घटा दी गई।
- सितंबर, 2018 से तरलता स्थिति कमजोर रही और सरकारी बॉन्डों पर इसका असर दिखा।
- एनबीएफसी क्षेत्र में दबाव और पूंजी बाजार से प्राप्त किए जाने वाले इक्विटी वित्त उपलब्धता में कमी के कारण वित्तीय प्रवाह संकुचित रहा।
- 2018-19 के दौरान सार्वजनिक इक्विटी जारी करने के माध्यम से पूंजी निर्माण में 81 प्रतिशत की कमी आई।
- एनबीएफसी के ऋण विकास दर में मार्च, 2018 के 30 प्रतिशत की तुलना में मार्च, 2019 में 9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
- सीपीआईसी पर आधारित महंगाई दर में लगातार 5वें वर्ष गिरावट दर्ज की गई। पिछले 2 वर्षों से यह 4 प्रतिशत से कम रही है।
- उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) आधारित खाद्य मुद्रा स्फ्रीति में भी लगातार 5वें वर्ष गिरावट दर्ज की गई और ये पिछले 2वर्षों के दौरान 2 प्रतिशत से भी कम रही है।
- सीपीआई-सी आधारित महंगाई दर (सीपीआई में खाद्यान्न और ईंधन छोड़कर) 2017-18 की तुलना में 2018-19 में हुई वृद्धि के बाद मार्च, 2019 से कम हो रही है।
- 2018-19 के दौरान सीपीआई-सी आधारित महंगाई दर के मुख्य कारक हैं आवास, ईंधन व अन्य। मुख्य महंगाई दर के निर्धारण में सेवा क्षेत्र का महत्व बढ़ा है।
- 2017-18 की तुलना में 2018-19 के दौरान सीपीआई ग्रामीण महंगाई दर में कमी आई है। हालांकि सीपीआई शहरी महंगाई दर में
- 2018-19 के दौरान थोड़ी वृद्धि दर्ज की गई है। 2018-19 के दौरान कई राज्यों में सीपीआई महंगाई दर में कमी आई है।
- 2017-18 के दौरान भारतीय रुपये का मूल्य प्रति डॉलर 65-68 रुपये था। परन्तु अवमूल्यन के साथ भारतीय रुपये का मूल्य 2018-19 के दौरान प्रति डॉलर 70-74 रुपये हो गया।
- सबसे ज्यादा निर्यात वाली वस्तुओं में पेट्रोलियम उत्पाद, कीमती पत्थर, दवाएं के नुस्खे, स्वर्ण और अन्य कीमती धातु शामिल रहीं।
- सबसे ज्यादा आयात वाली वस्तुओं में कच्चा तेल, मोती, कीमती पत्थर तथा सोना शामिल रहा।
- भारत के मुख्य व्यापार साझेदारों में अमेरिका, चीन, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात और सउदी अरब शामिल रहे।
- भारत ने 2018-19 में विभिन्न देशों/देशों के समूह के साथ 28 द्विपक्षीय, बहु-पक्षीय समझौते किए।
- इन देशों को कुल 121.7 अरब अमरीकी डॉलर मूल्य का निर्यात किया गया, जोकि भारत के कुल निर्यात का 36.9 प्रतिशत था।
- इन देशों से कुल 266.9 अरब डॉलर मूल्य का आयात हुआ, जो भारत के कुल आयात का 52.0 प्रतिशत रहा।
- कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 2005-06 के अवधि के 11.7 प्रतिशत की तुलना में 2015-16 में बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो गई।
- छोटे और सीमांत किसानों में ऐसी महिलाओं की संख्या 28 प्रतिशत रही।
- छोटे और सीमांत किसानों में भूमि स्वामित्व वाले परिचालन वाली खेती के मामलों में बदलाव देखा गया।
- 89 प्रतिशत भू-जल का इस्तेमाल सिंचाई कार्य के लिए किया गया है। ऐसे में भूमि की उत्पादकता से अधिक ध्यान सिंचाई के लिए जल की उत्पादकता पर दिया जाना चाहिए।
- उर्वरकों के प्रभाव का अनुमात लगातार घट रहा है। जीरो बजट सहित जैविक और प्राकृतिक खेती की तकनीक सिंचाई जल के तर्कसंगत इस्तेमाल और मिट्ठी की उर्वरता को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
- सेवा क्षेत्र की वृद्धि 2017-18 के 8.1 प्रतिशत से मामूली रूप से गिरकर 2018-19 में 7.5 प्रतिशत पर आ गई।
- त्वरित गति से बढ़े उप-क्षेत्र : वित्तीय सेवाएं, रियल एस्टेट और व्यावसायिक सेवाएं।
- धीमी गति से बढ़ने वाले क्षेत्र : होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण सेवाएं।
- वर्ष 2017 में रोजगार में सेवाओं की हिस्सेदारी 34 प्रतिशत थी।
- वर्ष 2018-19 में 10.6 मिलियन विदेशी पर्यटक आए, जबकि 2017-18 में इनकी संख्या 10.4 मिलियन थी।
- पर्यटकों से विदेशी मुद्रा की आमदनी 2018-19 में 27.7 अरब अमरीकी डॉलर रही, जबकि 2017-18 में 28.7 अरब अमरीकी डॉलर थी।
- ईपीएफ के अनुसार औपचारिक क्षेत्र में मार्च 2019 में रोजगार सृजन उच्च स्तर पर 8.15 लाख था, जबकि फरवरी 2018 में यह 4.87 लाख था।
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के अंतर्गत 2014 से करीब 1,90,000 किलोमीटर ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया।
- प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के अंतर्गत करीब 1.54 करोड़ घरों का निर्माण कार्य पूरा किया गया, जबकि 31 मार्च, 2019 तक मूलभूत सुविधओं के साथ एक करोड़ पक्के मकान बनाने का लक्ष्य था।
इकोनॉमिक सर्वे 2018-19 में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के रास्ते में देश के समक्ष चुनौतियों को रेखांकित किये जाने की संभावना है।इसमें 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था का आकार दोगुने से अधिक कर 5,000 अरब डालर पर पहुंचाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्ष्य को पूरा करने के लिये सुधारों की विस्तृत रूपरेखा पेश किये जाने की उम्मीद है।
चुनाव की वजह से आई ग्रोथ में कमी
आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति उपायों से लोन के ब्याज दरों में कटौती करने में मदद मिलेगी. इसी तरह निवेश दर में जो कमी आ रही थी, वह भी अब लगता है कि रुक जाएगी. जनवरी से मार्च तिमाही में जीडीपी ग्रोथ में गिरावट पर आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि यह चुनाव संबंधी अनिश्चितता की वजह से था. इसके अलावा पिछले वित्त वर्ष में कम ग्रोथ होने की एक वजह एनबीएफसी संकट भी है. गौरतलब है कि मार्च तिमाही में जीडीपी में बढ़त महज 5.8 फीसदी थी.
सर्वे में जताई गई खेती पर चिंता
खेती के मामले में एक चिंताजनक बिंदु उठाते हुए इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि खाद् वस्तुओं के दाम कम होने की वजह से शायद किसानों ने वित्त वर्ष 2018-19 में पैदावार कम किया है. हालांकि, यह भी कहा गया है कि साल 2018 की दूसरी छमाही से ही ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था में बढ़त आनी शुरू हो गई है.
पांच साल में तेज विकास
सर्वे के अनुसार पिछले पांच साल में जीडीपी ग्रोथ औसतन 7.5 फीसदी रहा है. आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि बैंकों के गैर निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) में कमी आने की वजह से पूंजीगत व्यय चक्र को बढ़ाने में मदद मिलेगी. लगातार एनपीए में कमी आ रही है, जिसका फायदा अर्थव्यवस्था को मिलेगा. सर्वे में कहा गया कि स्थिर वृहद आर्थिक दशाओं की वजह से इस साल अर्थव्यवस्था में स्थिरता रहेगी. हालांकि यह भी कहा गया है कि अगर ग्रोथ में कमी आई तो राजस्व संग्रह पर चोट पड़ सकती है.
तेल की कीमतों में आएगी कमी
आर्थिक सर्वे में कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कमी आ रही है, जिसकी वजह से इस वित्त वर्ष में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी आ सकती है.