करोड़ों के घोटाले के आरोपी मंसूर खान ने कहा-‘बड़े नामों का कर दूंगा खुलासा, लेकिन ये लोग मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे’

प्रवर्तन निदेशालय द्वारा समन किए जाने के तीन दिनों बाद आईएमए के फरार प्रमुख मंसूर खान ने रविवार को जारी एक वीडियो क्लिप में कथित तौर पर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने की पेशकश की.

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नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय द्वारा समन किए जाने के तीन दिनों बाद आईएमए के फरार प्रमुख मंसूर खान ने रविवार को जारी एक वीडियो क्लिप में कथित तौर पर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने की पेशकश की. वीडियो क्लिप में उन्होंने ‘बड़े नामों’ का खुलासा करने की बात कही और आशंका जताई कि ये लोग उनकी हत्या करा सकते हैं. आईएमए ज्वेल्स ने अच्छे मुनाफे का वादा कर काफी संख्या में निवेशकों से कथित तौर पर ठगी की है. कंपनी ने पिछले तीन महीने से निवेशों पर कथित तौर पर ब्याज अदा नहीं किया है.

कुछ निवेशकों को एक ऑडियो क्लिप भेजकर लापता हो गया

खान इस महीने की शुरुआत में कुछ निवेशकों को एक ऑडियो क्लिप भेजकर लापता हो गया जिसमें उसने कुछ नेताओं और गुंडों पर परेशान करने के आरोप लगाए और उसने खुदकुशी करने की धमकी दी. महानगर के आयुक्त आलोक कुमार को संबोधित 18 मिनट के वीडियो में उसने कहा, ‘‘मैं लोगों का समर्थन करने और पुलिस को पूरा ब्यौरा सौंपने के लिए लौटना चाहता और मैं उनके साथ सहयोग करने के लिए तैयार हूं.”

जब मैं पुलिस और अदालत के समक्ष गवाही दूंगा तो सभी नामों का खुलासा कर दूंगा.

उसने कहा, ‘‘जब मैं पुलिस और अदालत के समक्ष गवाही दूंगा तो सभी नामों का खुलासा कर दूंगा. वे छोटे नाम नहीं हैं बल्कि बड़े नाम हैं. मुझे विश्वास है कि ये लोग मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे.” पुलिस ने कहा कि उन्होंने अभी तक वीडियो की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं की है. वीडियो में अपना मोबाइल नंबर साझा करते हुए खान ने आरोप लगाया कि आईएमए प्रबंधन के कुछ कर्मचारियों और नेताओं ने उसकी पीठ में छूरा घोंपा और परेशान किया जिस कारण उसे अपने परिवार के सदस्यों को छिपाना पड़ा. उसने कहा, ‘‘देश छोड़ना गलती थी. लेकिन मेरे अपने लोगों ने प्रबंधन के अंदर और कुछ नजदीकी नेताओं ने पीठ में छूरा घोंपा और मुझे परेशान करना शुरू कर दिया. इसलिए मुझे अपने परिवार को छिपाना पड़ा. इसके बाद जो कुछ भी हुआ वह जल्दबाजी में हुआ न कि योजनाबद्ध तरीके से.”

14 जून को लौटना चाहता था लेकिन उसे विमान में नहीं चढ़ने दिया गया

खान ने कहा कि वह 14 जून को लौटना चाहता था लेकिन उसे विमान में नहीं चढ़ने दिया गया और कहा गया कि वह नहीं जा सकता है. खान ने कहा, ‘‘मैं 14 जून को भारत लौटने के लिए हवाई अड्डे पहुंचा लेकिन मुझे विमान में नहीं चढ़ने के लिए कहा गया क्योंकि मुझे कहा गया कि मैं छोड़कर नहीं जा सकता.” उसने कहा कि 99 फीसदी लोग आईएमए के बारे में गलत सूचना फैला रहे हैं और स्पष्ट किया कि वह पोंजी योजना नहीं चला रहा है.

कांग्रेस के पूर्व विधायक रोशन बेग ने 400 करोड़ रुपये लिए हैं और वापस नहीं लौटा रहे

इस्लामिक बैंक के नाम पर करीब 30 हजार लोगों को चूना लगाकर दुबई भागे मोहम्मद मंसूर खान के बारे में हर दिन एक नई बात उजागर हो रही है। अब सामने आया है कि कर्नाटक सरकार के एक मंत्री मंसूर खान को 600 करोड़ रुपये बेलआउट पैकेज देने वाले थे, मगर एक वरिष्ठ आईएएस अफसर की सतर्कता से यह प्लान चौपट हो गया।

सूत्रों ने बताया कि मंसूर खान ने फरार होने से कुछ दिन पहले रमजान के महीने में एक मुस्लिम नेता के जरिए असेंबली में मंत्री से मुलाकात की थी। जांच में घोटाला बढ़कर 1700 करोड़ रुपये का हो चुका है। करीब 30 हजार मुस्लिम निवेशकों ने ‘हलाल रिटर्न’ और हद से ज्यादा प्रॉफिट के लालच में अपनी पूंजी मंसूर खान के हाथों में दे दी थी। 

उसने पहले आरोप लगाए थे कि कांग्रेस के पूर्व विधायक रोशन बेग ने 400 करोड़ रुपये लिए हैं और वापस नहीं लौटा रहे हैं. कर्नाटक सरकार ने कथित धोखाधड़ी की जांच के लिए 11 सदस्यीय विशेष जांच दल का गठन किया  जिसके प्रमुख डीआईजी बी आर रविकांत गौड़ा हैं. प्रवर्तन निदेशालय ने खान को 20 जून को समन जारी कर 24 जून को एजेंसी के सामने पेश होने का निर्देश दिया था.

मंसूर खान ने लोन के लिए एक बैंक का रुख किया था। बैंक को मंसूर खान के खिलाफ के जारी धोखाधड़ी के नोटिस के बारे में जब पता चला, तो उसने मंसूर ने राज्य सरकार से अनापत्ति प्रमाण-पत्र लाने को कहा। मंसूर ने अपनी ऊंची पहुंच के चलते इस एनओसी का जुगाड़ भी कर लिया था। हालांकि प्रमुख सचिव स्तर के एक आईएएस अधिकारी ने दस्तावेज पर साइन करने से साफ इनकार कर दिया। मंत्री ने अधिकारी पर काफी दबाव बनाया, मगर उसका भी कोई असर नहीं हुआ।

‘अपने पुराने अनुभव से आईएएस ने ली सीख, मंत्री ने भी मान ली हार’
सूत्र ने बताया, ‘हर तरफ से पूरी कोशिश थी कि मंसूर की कंपनी को वैध दिखाया जाए, जिससे सरकार कंपनी की मदद कर सके। मगर आईएएस अधिकारी ने अपनी सूझबूझ से ऐसा होने नहीं दिया। अधिकारी ने पूर्व में एक ऐसे ही केस के अनुभव से यह सीखा था। जब अधिकारी के आगे मंत्री की एक ना चली, तो आखिर में मंत्री ने भी हार मान ली।’

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