बिना जिम्मेदारी के ही सबसे ताकतवर भूमिका में रहना चाहते हैं राहुल गांधी?
2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया है। यहां तक कि राहुल गांधी कोई जिम्मेदारी लेने से बचते नजर आ रहे हैं।
नई दिल्लीः लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद कांग्रेस के सामने संसदीय दल का नेता चुने जाने तक का संकट खड़ा हो गया था। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के चुनाव हार जाने के कारण कांग्रेस के सामने इस तरह का संकट आया। हालांकि, पश्चिम बंगाल से आने वाले अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में दल का नेता बनाकर उस संकट से उबरने की कोशिश जरूर की गई है।
अधीर रंजन चौधरी के संसदीय दल का नेता बनाये जाने के बाद एक बार फिर राहुल गांधी आलोचकों के निशाने पर हैं। अब यह कहा जा रहा है कि राहुल गांधी जिम्मेदारी लेने से बच रहे हैं, क्योंकि लोकसभा में दल के नेता की एक बड़ी भूमिका होती है। सरकार से कई मु्द्दों पर बहस करनी पड़ती है। विपक्षी दलों के नेताओं के साथ और पार्टी के सांसदों को एक साथ लेकर चलना पड़ता है। सोशल मीडिया पर यह पोस्ट आ रही हैं कि राहुल गांधी ने लोकसभा में नेता का पद इसलिए नहीं लिया क्योंकि उसके लिए समय से सोकर उठना पड़ता है और पार्टी के सांसदों के साथ सत्र के दौरान मीटिंग्स करनी पड़ती हैं।
अब राहुल गांधी के सामने यह समस्या है कि अगर वो लोकसभा में नेता का पद ले लेते, तो उन पर यह कहकर निशाना साधा जाता कि गांधी परिवार के सदस्य बिना किसी पद के नहीं रह पाते हैं। यहां तक कि पार्टी की करारी हार के बाद भी दल के नेता का पद नहीं छोड़ पाये। अब पद नहीं लिया तो उनकी तमाम कमियां गिनाई जा रही हैं कि वो जिम्मेदारी लेने से बच रहे हैं, वो आलसी हैं या उनमें नेतृत्व क्षमता नहीं है। आदि-आदि।
आलोचकों का कहना है कि राहुल गांधी ने चुनावों के दौरान बहुत अधिक आक्रामकता दिखाई और भाजपा को हराने के लिए अथक प्रयास भी किया। लेकिन संसद के अंदर जब गरमा-गरम बहस करने की बारी आई तो इसके लिए वो तैयार नहीं हुए।
राहुल गांधी ने 2004 में लोकसभा चुनाव जीतकर राजनीति में प्रवेश किये। लेकिन राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य पर उनका उदय 2007 में हुआ, जब उन्होंने कांग्रेस पार्टी के महासचिव के रूप में पूर्ण सत्र को संबोधित किया। 2013 में जब वो पार्टी के उपाध्यक्ष थे, तो जयपुर के सेशन में कहा था कि सत्ता जहर के समान है। उस समय भी उनकी अनिच्छा जाहिर हुई थी। लेकिन राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कैबिनेट द्वारा पास किए गए अध्यादेश को फाड़करके अपनी ताकत का एससास करा दिया था। उस समय भी यह महसूस किया गया था कि राहुल गांधी बिना जिम्मेदारी निभाये सत्ता के शीर्ष पर बने रहना चाहते हैं।
अब 2019 के चुनाव में मिली हार के बाद वो पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को हार के लिए जिम्मेदार ठहराकर खुद पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना चाहते हैं। लेकिन पार्टी के नेताओं का मानना है कि वो अध्यक्ष नहीं भी रहेंगे, तब भी उनकी ताकत सबसे अधिक रहेगी और गांधी परिवार के अलावा कांग्रेस को दूसरा कोई एकजुट नहीं रख सकता है। इसलिए उन्हें अध्यक्ष बने रहना चाहिए।
अब सवाल यह है कि ऐसा कब तक होता रहेगा कि राहुल गांधी जिम्मेदारी नहीं निभायेंगे? देश से लेकर विदेश तक राहुल गांधी के बहुत सारे फैंस हैं। वो चाहते हैं कि राहुल गांधी फ्रंटफुट पर आकर बैटिंग करें। इससे राहुल गांधी बहुत कुछ सीख जाएंगे। जीत-हार कोई शाश्वत नहीं होती हैं।
जीत के लिए लड़ाई लड़नी पडती है। विपक्ष में रहकर ज्यादा सीखने को मिलता है। विपक्ष में रहते हुए कोई भी जीत के लिए अपनी बेहतर रणनीति तैयार कर सकता है। लेकिन जब वो मेनस्ट्रीम में रहेगा तब। नहीं तो कुछ नहीं हो पायेगा। न तो लड़ना सीख पाएगा और न ही लड़ाना।