24 साल बाद कश्मीर में परिसीमन, अमित शाह के दांव से ऐसे बदलेगी राज्य की सियासत

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जम्मू कश्मीर में परिसीमन पर विचार कर रहे हैं. परिसीमन के लिए आयोग का गठन हो सकता है. जम्मू कश्मीर में बीजेपी के नेता चाहते हैं कि जल्दी ही परिसीमन किया जाना चाहिए. लेकिन राज्य में विपक्षी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं.

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नई दिल्ली/जम्मू . गृहमंत्री बनने के बाद अमित शाह पूरे फॉर्म में हैं, कश्मीर में आर्टिकल 370 और 35 ए को खत्म करने की सुगबुगाहट तो है ही, सूत्रों से खबर है कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में परिसीमन भी करा सकती है. जिस रोज़ अमित शाह ने गृहमंत्री का काम संभाला था, उसी रोज़ उन्होंने जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के साथ बैठक की थी, और इसी बैठक ने बता दिया था कि नए नवनियुक्त गृहमंत्री की पहली चुनौती मिशन कश्मीर है.

गृहमंत्री अमित शाह जम्मू कश्मीर में परिसीमन पर विचार कर रहे हैं

अब सूत्रों से खबर है कि गृहमंत्री अमित शाह जम्मू कश्मीर में परिसीमन पर विचार कर रहे हैं. परिसीमन के लिए आयोग का गठन हो सकता है. जम्मू कश्मीर में बीजेपी के नेता चाहते हैं कि जल्दी ही परिसीमन किया जाना चाहिए. जम्मू कश्मीर बीजेपी के अध्यक्ष कवींद्र गुप्ता का कहना है वह राज्यपाल को लिख चुके हैं कि राज्य में परिसीमन कराया जाए. इससे राज्य के तीनों क्षेत्रों जम्मू, कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र के साथ न्याय होगा.

24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली छोड़ी गईं थीं

बहरहाल, अब इस परिसीमन की सियासत को सलीके से समझना होगा. जम्मू कश्मीर विधानसभा में कुल 111 सीटें हैं. मगर जम्मू कश्मीर में सिर्फ 87 सीटों पर ही चुनाव होते हैं. जम्मू कश्मीर के संविधान के सेक्शन 47 के मुताबिक 24 सीटें खाली रखी जाती हैं. खाली की गईं 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली छोड़ी गईं थीं. जानकारों की मानें तो इस गणित से बीजेपी को सीधा फायदा होगा.

बीजेपी को कैसे होगा फायदा

जम्मू क्षेत्र में 37 विधानसभा सीटें हैं. 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी यहां 25 सीटें जीती थी. जम्मू क्षेत्र में बीजेपी का दबदबा है. अगर परिसीमन हुआ तो खाली पड़ी 24 सीटें जम्मू क्षेत्र में जुड़ेंगी. बीजेपी को लगता है कि परिसीमन से उसे फायदा होगा. अब परिसीमन की सियासत का अगला अध्याय समझिए.

जम्मू कश्मीर में 1995 में परिसीमन किया गया था. राज्य के संविधान के मुताबिक जम्मू कश्मीर में हर 10 साल के बाद परिसीमन होना था. मगर तत्कालीन फारुक अब्दुल्ला सरकार ने 2002 में इस पर 2026 तक के लिए रोक लगा दी थी, और अब बीजेपी दोबारा परिसीमन चाहती है.

महबूबा मुफ्ती परिसीमन को सांप्रदायिक आधार पर राज्य को बांटने के तौर पर देख रही

लेकिन कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती परिसीमन को सांप्रदायिक आधार पर राज्य को बांटने के तौर पर देख रही हैं.  उन्होंने ट्वीट किया, ‘जम्मू-कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रों को फिर से तैयार करने की भारत सरकार की योजना के बारे में सुनकर परेशान हूं. बेवजह का परिसीमन राज्य के एक और भावनात्मक विभाजन को सांप्रदायिक आधार पर भड़काने का एक स्पष्ट प्रयास है. भारत सरकार पुराने घावों को भरने की अनुमति देने के बजाय कश्मीरियों का दर्द बढ़ा रही है.’

कश्मीर समस्या के हल के पक्ष में हूं, लेकिन अमित शाह की प्रक्रिया को कठोर बताना हास्यास्पद

महबूबा मुफ्ती पर बीजेपी की ओर से पलटवार किया गया. पूर्वी दिल्ली से बीजेपी सांसद गौतम गंभीर ने ट्वीट किया कि मैं बातचीत से कश्मीर समस्या के हल के पक्ष में हूं, लेकिन अमित शाह की प्रक्रिया को कठोर बताना हास्यास्पद है. इतिहास ने हमारा धैर्य और संयम देखा है, लेकिन अब हमारे लोगों की सुरक्षा अगर बलपूर्वक होती है तो होने दो. बहरहाल, अब देखना यह है कि अपने शपथपत्र में कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हटाने का वादा करने वाली बीजेपी कश्मीर में क्या कुछ क्रांतिकारी कदम उठाएगी.

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