57 देशों वाला OIC तीन महीने में ही कश्मीर पर पलटा, कश्मीर में एक विशेष दूत नियुक्त किया

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नई दिल्ली। 57 सदस्य देशों वाले इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने जम्मू-कश्मीर में एक विशेष दूत नियुक्त किया है. मुस्लिम बहुल देशों के संगठन ने “जम्मू-कश्मीर के लोगों के वैध अधिकारों” का भी समर्थन किया. सोमवार को भारत ने ओआईसी के बयान को खारिज करते हुए कहा कि संगठन को देश के अभिन्न हिस्से से जुड़े मामले में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है.

31 मई को मक्का में हुई ओआईसी की बैठक के दौरान सऊदी अरब के युसूफ अल्डोबे को जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष दूत नियुक्त किया गया.

14वीं ओआईसी शिखर वार्ता में “जम्मू-कश्मीर के लोगों के  वैध अधिकारों” का समर्थन करते हुए “इलाके में हिंसा” की निंदा की गई. इसके अलावा पिछले साल कश्मीर पर आई संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के सुझावों का स्वागत किया गया.
मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए संयुक्त राष्ट्र कमीशन की स्थापना करने की मांग भी उठाई
बैठक में कश्मीर में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए संयुक्त राष्ट्र कमीशन की स्थापना करने की मांग भी उठाई गई. इस आधिकारिक बयान पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, हम 14वीं इस्लामिक सहयोग संगठन की मक्का में हुई शिखर वार्ता में भारत के आंतरिक मामलों से जुड़े अस्वीकार्य संदर्भों को एक बार फिर खारिज करते हैं. उन्होंने कहा, “ओआईसी को इस तरह के अवांछनीय संदर्भ देने से बचने की कोशिश करनी चाहिए.”
ओआईसी का यह कदम भारत के लिए एक झटके की तरह है. तीन महीने पहले ही भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को ओआईसी की बैठक में पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए आमंत्रित किया गया था. मार्च में अबूधाबी में हुई संगठन की बैठक में सुषमा स्वराज की मौजूदगी को भारतीय अधिकारियों ने पश्चिम एशियाई देशों के साथ मजबूत रिश्तों की दिशा में मजबूत कदम बताया था.
विश्लेषकों का कहना है कि पश्चिम एशिया की जटिल राजनीतिक स्थिति, खासकर सऊदी अरब और ईरान के बीच तनाव की वजह से मध्य-पूर्व के देश पाकिस्तान की मदद पर निर्भर हो गए हैं.
ईरान के खिलाफ लड़ाई में सऊदी अरब पाकिस्तानी आर्मी की मदद की तरफ देख रहे
हूती विद्रोहियों और ईरान के खिलाफ लड़ाई में सऊदी अरब पाकिस्तानी आर्मी की मदद की तरफ देख रहे हैं इसीलिए सऊदी अरब के प्रभुत्व वाले इस्लामिक संगठन को कश्मीर में विशेष दूत नियुक्त करने जैसा कदम उठाना पड़ा.
पाकिस्तान ‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ की हर बैठक में भारत को बदनाम करने की कोशिश करता रहा है लेकिन संयुक्त घोषणा पत्र में कश्मीर के मुद्दे का जिक्र कराने में नाकामयाब रहा. मेजबान सऊदी अरब नहीं चाहता था कि मेहमान भारत अपमानित महसूस करे.
विशेष दूत की नियुक्ति का फैसला ओआईसी के कुछ देशों द्वारा ही किया गया
कश्मीर मुद्दे पर विशेष दूत की नियुक्ति का फैसला ओआईसी के कुछ देशों द्वारा ही किया गया है. सूत्रों के मुताबिक, संगठन के कई सदस्य इस फैसले के पक्ष में नहीं थे और मुद्दे पर उदासीन रुख अपनाए रखा. रिपोर्ट्स के मुताबिक, संगठन की बैठक में कोई भी प्रस्ताव बिना किसी ज्यादा बहस के ही पास हो जाता है क्योंकि किसी भी देश की तरफ से आपत्ति नहीं आती है. पाकिस्तान ने कश्मीर पर प्रस्ताव पास कराने के लिए इसी स्थिति का फायदा उठाया।
खाड़ी देशों को पाकिस्तानी सेना के समर्थन की जरूरत ने भी कश्मीर मुद्दे पर ओआसी का रुख
हालांकि, ईरान से तनाव के बीच खाड़ी देशों को पाकिस्तानी सेना के समर्थन की जरूरत ने भी कश्मीर मुद्दे पर ओआसी का रुख तय करने में भूमिका निभाई होगी. जब भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पहली बार ओआईसी बैठक में ‘गेस्ट ऑफ ऑनर के तौर पर आमंत्रित किया गया था तो इसके सदस्य देश पाकिस्तान ने मेजबान अबू धाबी पर न्योता वापस लेने के लिए काफी दबाव बनाया था. हालांकि, यूएई ने पाक की मांग को खारिज कर दिया था.
यूएई ने पाकिस्तान को साफ संदेश देते हुए कहा था कि वह भारत के साथ
भारत की बालाकोट स्ट्राइक के बाद यूएई ने पाकिस्तान को साफ संदेश देते हुए कहा था कि वह भारत के साथ मजबूती से खड़ा है.
भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा को बुलाए जाने के विरोध में पाकिस्तान के विदेश मंत्री के बजाय उनका एक विशेष प्रतिनिधिमंडल पहुंचा था. उस सत्र के दौरान भी पाक ने भारत को बदनाम करने की तमाम कोशिशें कीं. हालांकि, पाकिस्तान जैसा सोच रहा था, वैसा नहीं हुआ. मार्च महीने में इस्लामिक सहयोग संगठन ने कश्मीर पर अलग प्रस्ताव को अपनाया और इसे भारत-पाकिस्तान के बीच का विवाद करार दिया।
यूएई और सऊदी अरब भारत के पक्षधर
यूएई और सऊदी अरब ने बैठक के दौरान यह सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई कि भारत किसी भी कदम से आहत ना होने पाए.
एक अधिकारी ने कहा, ओआईसी में कुछ पाकिस्तान समर्थक सदस्य देश हैं जो हमेशा कश्मीर मुद्दे को उठाते रहेंगे और इसमें कुछ भी नया नहीं है. पिछले पांच वर्षों में पश्चिम एशिया के साथ रिश्ते प्रगाढ़ करने की कोशिशों को पीएम मोदी की विदेश नीति की सफलता के तौर पर देखा जाता है.
क्यों अहम है OIC?

 यह संगठन खुद की पहचान मुस्लिम दुनिया की सामूहिक आवाज के तौर पर करता है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है लेकिन इसके बावजूद भारत  ना तो OIC का सदस्य है और ना ही इसे पर्यवेक्षक का दर्जा मिला है. पाकिस्तान लगातार भारत को इस मंच से दूर रखने की कोशिश करता रहा है.

OIC में कई गैर-मुस्लिम देशों को भी पर्यवेक्षकों का दर्जा मिल चुका है. 2005 में रूस को संगठन में पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल कर लिया गया था जबकि यहां केवल 2.5 करोड़ की ही मुस्लिम आबादी है. बौद्धबहुल देश थाईलैंड को भी ये दर्जा 1998 में मिल चुका है.

 

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