“स्वस्थ लोकतंत्र में वैचारिक मतभेदों का स्वागत हिंसा का नहीं”

इस्लाम का इस देश से 1000 साल का रिश्ता है।इस देश को आजाद कराने मे सब का सामूहिक योगदान रहा है।लेकिन आज किस तरह एक दूसरे समुदाय के प्रति नफरत का माहौल बनाया जा रहा है ये गंभीर विषय है।आज जिस तरह नन्हे नन्हे बच्चों को बरगलाया जा रहा है,बुद्धिजीवियों द्वारा सार्वजनिक मंचों से देश को तोड़ने की बात हो रही है,और किस तरह से राजनीतिक बर्गलाहट से प्रदर्शनकारियों पर गोली चलने की नोबत आ गई इस पर अब कड़े कदम उठाने की जरूरत है।

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            मेरी कलम से
लेखक : अभिषेक राणा 

पिछले कुछ समय से घटित हो रही घटनाएं हम सबके समक्ष हैं। किस प्रकार देश में एक नफरत का माहौल कुछ संप्रदायों के बीच फैलाने की कोशिश की जा रही है। सबसे पहले अगर हम इस देश के पुरातन संस्कृति की बात करें तो आदिकाल से ही यह धरा अनेक मत पंथ संप्रदायों से सुसज्जित रही है। जिस धरा पर अनेक विचारों ने जन्म लिया जिस तरह पर अनेक गुरुओं ने एवं दार्शनिकों ने विभिन्न उपदेश दिए हम उस संस्कृति से आते हैं। जिस संस्कृति ने सदैव हर विचार का स्वागत किया।

भारत विविधताओं भरा देश है जिसके एक और हिमालय जिसके अपने स्वयं के रंग दक्षिण में विशाल समुद्र विभिन्न भाषा और मतों वाले लोग।लेकिन आज उन सब विविधताओं को एक किनारे रखते हुए आज हमारा देश जिस नफरत की ओर बढ़ रहा है बहुत चिंतनीय है पिछले कुछ समय से जो कुछ भी घटित हो रहा है वह हमारे सामने कुछ बड़े सवाल खड़े करती हैं।

किस प्रकार संविधान की दुहाई देकर तिरंगा हाथ में लेकर देश को तोड़ने की साजिश रची जा रही है वह हम सब ने देखा है किसी भी देश के स्वस्थ लोकतंत्र में हमेशा वैचारिक मतभेदों का स्वागत रहा है और यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता है और यही हमारे देश की सबसे बड़ी खूबी भी की सवा-सौ करोड़ की जनसंख्या के बावजूद भी हम सब में एकता का भाव हमारे देश के लोकतंत्र को सिद्ध करता है।

लेकिन विदेशों में बैठे आतंक के आकाओं,तथाकथित बुद्धिजीवी एवं जनता को मूर्ख बनाकर उन पर राज करने वाले राजनेता एक भ्रामक माहौल पूरे देश में फैला रहे हैं। हमने हाल ही में देखा कि किस तरह CAA और NRC को लेकर किस तरह की भ्रांतियां समाज में फैलाई गई।यह वही राजनेता है जो चंद वोटो की खातिर हमारे समाज को तोड़कर लोगों को बरगलाना चाहते हैं। एवं संविधान की दुहाई देकर लोगों के बीच में इस बात को डाल रहे हैं की आज देश में हमारे मुस्लिम भाइयों को खतरा है।

इस्लाम का इस देश से 1000 साल का रिश्ता है।इस देश को आजाद कराने मे सब का सामूहिक योगदान रहा है।लेकिन आज किस तरह एक दूसरे समुदाय के प्रति नफरत का माहौल बनाया जा रहा है ये गंभीर विषय है।आज जिस तरह नन्हे नन्हे बच्चों को बरगलाया जा रहा है,बुद्धिजीवियों द्वारा सार्वजनिक मंचों से देश को तोड़ने की बात हो रही है,और किस तरह से राजनीतिक बर्गलाहट से प्रदर्शनकारियों पर गोली चलने की नोबत आ गई इस पर अब कड़े कदम उठाने की जरूरत है।

विमर्श,आलोचना और विरोध प्रदर्शन,लोकतंत्र का हिस्सा है। हालांकि हम अभी उस स्तर तक नहीं पहुंचे  जहां नागरिक ऐसे विरोध करें जिसमें दूसरों को कोई परेशानी ना हो  या सामान्य कामकाज में गतिरोध ना उत्पन्न हो।वही सरकार भी ऐसे प्रदर्शनों से  निपटने के कारगर उपाय नहीं तलाश पाई है जिसमें बल प्रयोग की स्थिति ना बने।

लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था को दो बड़ी सीख है एक साध्य और साधन की पवित्रता और दूसरा विरोध प्रदर्शन को अपने मर्म से विमुख नहीं होना चाहिए।वास्तव में किसी आंदोलन की आत्मा उसके मर्म में समाई होती है।समाज को विमर्श की धारा से ही स्वयं को विकसित करना चाहिए आलोचना का प्रभाव भी मुक्त होना चाहिए।लेकिन वह सही कारणों के आधार पर की जाए।

इस बीच कुछ बातें आलोचकों प्रदर्शनकारियों विशेषकर छात्रों को भी गांठ बांध लेनी चाहिए उन्हें किसी विषय पर राय बनाने के अति उत्साह में प्रासंगिक सूचनाओं जानकारी शिक्षा बुद्धिमता परिपक्वता और अनुभव की अनदेखी नहीं करनी चाहिए याद रखें कि किसी मामले पर राय से पहले कहीं अधिक महत्वपूर्ण उसकी सही जानकारी होती है।इस देश में हमेशा से ही एक सकारात्मक विरोधाभासों का स्थान रहा है हिंसा का किसी भी सभ्य सभ्यता में कोई स्थान नहीं।

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