श्रीलंका के राष्ट्रपति ने कहा- मुस्लिम प्रभाकरन को पैदा होने का मौका ना दें, वरना एक और जंग शुरू हो जाएगी
राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने कहा- देश में धार्मिक नेता और राजनीतिज्ञ आज बंट गए हैं 21 अप्रैल को श्रीलंका में हुए धमाकों के बाद कई शहरों में मुस्लिम समुदाय पर हमले की घटनाएं सामने आईं
कोलंबो. श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने रविवार को चेतावनी दी कि आज के समय में देश बंट रहा है। उन्होंने कहा कि राजनेता और धार्मिक नेता बंट गए हैं। हमें किसी “मुस्लिम प्रभाकरन’ को पैदा होने का मौका नहीं देना चाहिए, वरना एक और जंग शुरू हो जाएगी। 21 अप्रैल को ईस्टर के मौके पर सिलसिलेवार धमाकों में 258 लोग मारे गए थे।
ज्यादातर नेताओं का ध्यान चुनाव पर, अगर हम बंट गए तो पूरा देश बिखर जाएगा
सिरिसेना मुल्लैटिवू में बोल रहे थे। यह इलाका कभी उग्रवादी संगठन लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) का गढ़ माना जाता था। उन्होंने कहा- अगर हम बंट गए तो पूरा देश बिखर जाएगा। एक और युद्ध शुरू हो जाएगा। ज्यादातर राजनेता इस साल के अंत में होने वाले चुनाव पर ध्यान दे रहे हैं, वे देश पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। यह विभाजन देश को आगे बढ़ने से रोक रहा है।
अतीत को दरकिनार कर “चरमपंथ को पनपने की जगह ना दें”
श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने कहा- हम तमिलों की समस्या को समझते हैं और उन पर ध्यान दिया जाएगा। लेकिन, हमें अतीत को दरकिनार कर देना चाहिए और देश को आगे बढ़ाना चाहिए। हमें किसी भी हाल में देश के माहौल में चरमपंथ को पनपने के लिए स्थान नहीं देना चाहिए।
कई शहरों में मुस्लिम समुदाय पर हमले हुए
ईस्टर के मौके पर श्रीलंका में हुए धमाकों के पीछ स्थानीय मुस्लिम आतंकी संगठनों का हाथ माना जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि इन संगठनों का इस्लामिक स्टेट (आईएस) से संबंध हो सकता है। इन धमाकों के बाद श्रीलंका के कई शहरों में मुस्लिमों पर हमले की घटनाएं सामने आईं। इन घटनाओं के बाद 9 मुस्लिम मंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफा देने का फैसला किया। मंत्रियों का कहना है कि हिंसा में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है और सरकार रक्षा करने में नाकाम रही है।
25 साल तक चला था लिट्टे और श्रीलंकाई सरकार में संघर्ष
1976 में लिट्टे की स्थापना वेलुपिल्लई प्रभाकरन ने की थी। श्रीलंका में स्वतंत्र तमिल राज्य की स्थापना के लिए करीब 25 साल तक लिट्टे और सरकार के बीच संघर्ष हुआ। इस दौरान हजारों लोगों की जान गई। 2009 में श्रीलंकाई सेना ने प्रभाकरन का खात्मा किया था।