यूएस राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा-जापान पर हमला हुआ तो हम जी-जान से लड़ेंगे, लेकिन हम पर हुआ तो वह टीवी पर देखेगा
पिछले हफ्ते रिपोर्ट आई थी कि अमेरिका, जापान के साथ हुई युद्ध संधि को खत्म करने पर विचार कर रहा है, दरअसल, ट्रम्प नाटो समूह में शामिल देशों के सुरक्षा में दिए जाने वाले योगदान से खुश नहीं हैं ट्रम्प के मुताबिक समूह में शामिल सभी देश सुरक्षा में बराबरी से व्यय नहीं करते हैं
वॉशिंगटन. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर अपने बयान से दुनिया में सेना के असंतुलन की ओर इशारा किया। बुधवार को ट्रम्प ने कहा- यदि अमेरिका पर हमला होता है तो जापान उसकी मदद नहीं कर सकता। हां, वह यह पूरा घटनाक्रम सोनी टीवी पर देख सकता है। ट्रम्प ने यह बात जी20 समिट के पहले फॉक्स बिजनेस नेटवर्क को दिए इंटरव्यू में कही। ट्रम्प से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को लेकर सवाल किया गया था। ट्रम्प ने कहा- इस दुनिया में अधिकांश देश अमेरिका का लाभ उठाते हैं।
अमेरिका और जापान की संधि एकतरफा: ट्रम्प
ट्रम्प ने कहा- यदि जापान पर हमला हुआ तो हम पूरी जान लगाकर, अपने खजाने के साथ यह तीसरा विश्वयुद्ध लड़ेंगे। लेकिन हमला अमेरिका पर हुआ तो जापान यह घटनाक्रम टीवी पर देख सकता है। एक सप्ताह पहले ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट थी कि ट्रम्प अमेरिका और जापान के बीच हुई युद्ध संधि को खत्म करने पर विचार कर रहे हैं। ट्रम्प के मुताबिक यह एकतरफा है। इंटरव्यू में भी ट्रम्प ने इस बात के संकेत दिए हैं।
अमेरिका और जापान के बीच 1951 में सेन फ्रांसिस्को संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। यह द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति की अधिकृत घोषणा मानी जाती है। बीते 70 सालों से अमेरिका, टोक्यो के लिए सैन्य और डिप्लोमेटिक सहयोगी है। 1960 में इस संधि पर फिर से विचार किया गया था। यह संधि अमेरिका और जापान के बीच आपसी सहयोग और सुरक्षा की बात करती है। इसके मुताबिक अमेरिका को जापान में मिलिट्री बेस की अनुमति मिली है। ऐसे में यदि जापान पर हमला होता है तो अमेरिकी सैनिक उसकी सुरक्षा करेंगे।
- जापान में होने वाली जी20 समिट से पहले एक बार फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सैन्य अनुबंधों को लेकर अपनी खीझ निकाली है। ट्रम्प लंबे समय से नाटो समूह देशों की आलोचना करते आ रहे हैं।
- ट्रम्प के मुताबिक नाटो देश सुरक्षा पर पर्याप्त व्यय करने में असमर्थ हैं। यह व्यय सहयोगियों को दिए गए लक्ष्य का 2 प्रतिशत भी नहीं है। फिलहाल केवल सात सदस्य देश हैं जो यह व्यय करने में सफल हो पा रहे हैं।