उत्तर प्रदेश स्थित अयोध्या में राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) के निर्माण का शुभारंभ बुधवार को हुआ, जब भव्य स्तर पर शिलान्यास समारोह (Foundation Ceremony) में प्रधानमंत्री (PM Modi) ने भूमिपूजन किया. इस सिलसिले में आपको पल पल के अपडेट के साथ राम और राम मंदिर से जुड़े तमाम फैक्ट्स बताने में न्यूज़18 अग्रणी रहा. अब आपको बताते हैं कि सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि थाईलैंड में भी एक अयोध्या (Ayodhya of Thailand) है. और अयोध्या ही नहीं बल्कि एक राजवंश है, जिसके हर राजा को राम का ही अवतार माना जाता है!
जी हां, बात चौंकाने वाली है, लेकिन यह सच है कि थाईलैंड का मौजूदा चक्री राजवंश खुद को राम कहता रहा है, वही राम जो विष्णु के अवतार भगवान राम के रूप में हिंदुओं के आराध्य हैं. आइए आपको बताते हैं कि यह पूरा माजरा क्या है. साथ ही यह भी कि यह राजवंश अपने नाम में राम का उपयोग क्यों करता है और इसका हिंदुओं के भगवान राम से कोई रिश्ता है भी या नहीं.
शुरू से नहीं थी इस नाम की परंपरा
चक्री वंश के वर्तमान राजा को राम ‘दशम’ कहा जाता है. इससे पहले इस वंश में राम की उपाधि राजा अपने नाम के साथ लगाते रहे हैं, लेकिन दस पीढ़ी पहले ऐसा नहीं था. राम के साथ एक अंक जोड़ने के पीछे यूरोपीय प्रभाव रहा है. यानी इस वंश के छठवें राजा वजिरावुध ने इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान वहां के शासकों के नाम जॉर्ज पंचम, लुइस द्वितीय जैसे पढ़े, सुने तब उन्हें यह आइडिया सूझा. वजिरावुध ने सबसे पहले खुद को राम ‘सिक्स्थ’ कहा. इसके बाद इस वंश के राजाओं को राम के साथ एक अंक दिए जाने की प्रथा शुरू हुई. नाम के साथ राम की उपाधि लगाने से पहले भी कुछ प्रयोग किए गए थे.
थाईलैंड स्थित अयोध्या के लिए यह प्रतीकात्मक तस्वीर चर्चित रही.
लोग राजा को नाम से नहीं पुकारते थे
थाई परंपरा के अनुसार जनता राजा का नाम नहीं लिया करती थी इसलिए राजा के लिए अलग संबोधनों की ज़रूरत होती थी. चक्री वंश के पहले राजा कहे जाने वाले पुत्थयोत्फा चालुलोक ने अपने नाम के साथ उपाधि के तौर पर थाई शब्द फान दिन तोन जोड़ा जिसका मतलब था ‘आदि शासक’. लेकिन इस उपाधि को जारी रखने में बाधा तब पैदा हुई जब दूसरे राजा को ‘मध्यम शासक’ और तीसरे को ‘अंतिम शासक’ कहने की मजबूरी खड़ी हुई.
नाम पद्धति में और भी प्रयोग हुए
उपाधि के संबंध में इस तरह का मसला खड़ा होने के बाद बुद्ध प्रतिमाओं के आधार पर उपाधि का चयन किया गया. फिर राजसी नामावली को व्यवस्थित करने के लिए और भी प्रयोगों पर विचार हुआ. बाद में, इतिहासकारों ने राजा नांग क्लाओ को रत्चकन थी सैम यानी ‘शासक तृतीय’ कहा. यह प्रयोग चल पड़ा और राजाओं की उपाधियों में संख्या के ज़िक्र का चलन काफी तार्किक मालूम हुआ.
जब राजा वजिरावुध ने खुद को अंग्रेज़ी भाषा के मुताबिक ‘राम VI’ कहा, तब इसकी परंपरा को रत्चकन के प्रयोग से जोड़ा गया लेकिन यह ‘हिंदी अंग्रेज़ी’ मिश्रित शब्दावली की उपाधि थाई राजाओं के लिए परंपरा बन गई. इस वक्त थाईलैंड के राजा की उपाधि ‘राम दशम’ यानी ‘राम X’ है. आइए पहले इस राम X के बारे में जानें, फिर आपको थाईलैंड की अयोध्या की यात्रा पर ले चलेंगे.
कौन हैं थाई राजा ‘राम X’?
‘फुटबॉल प्रिंस’ के नाम से थाईलैंड में मशहूर राम X बाद में साइकिलिंग से जुड़े मेगा इवेंट के लिए जाने गए. अपने पिता राम IX यानी भूमिबोल अदुल्यादेज के निधन के बाद 2016 से राम X के रूप में महा वजिरालोंगकोर्न थाईलैंड के राजा हैं, जिनका राज्याभिषेक विशाल समारोह के साथ 2019 में हुआ था. साल 2020 में उनकी संपत्ति 43 अरब डॉलर आंकी गई, जिससे वो दुनिया के सबसे अमीर शासक के रूप में पहचाने गए. अब बात थाईलैंड की अयोध्या की.
थाईलैंड की अयोध्या और थाई रामायण
थाईलैंड में एक प्रसिद्ध नगर को अयुत्थया के नाम से जाना जाता रहा है, जहां के राजाओं को ‘रामातिबोधि’ (“अधिपति राम”) की उपाधि हासिल रही. रामायण में भगवान राम की राजधानी के तौर पर जिस अयोध्या का जिक्र मिलता है, उसी संदर्भ से इस अयुत्थया को जोड़ा जाता रहा. 1351 ईस्वी से स्याम राजवंश के शासकों की राजधानी रही यह अयुत्थया को बर्मा की फौजों ने 1767 में लूट खसोट कर लगभग पूरी तरह नष्ट कर दिया था.
‘राम X’ के रूप में महा वजिरालोंगकोर्न थाईलैंड के वर्तमान राजा हैं.
थाई धार्मिक ग्रंथ का नाम है रामकीन, जिसे थाई रामायण के बराबर का दर्जा हासिल है. ‘300 रामायण’ ग्रंथ लिखने वाले रामानुजन ने इस ग्रंथ की तुलना वाल्मीकि रामायण से की है. 18वीं सदी में इसे राजा राम प्रथम द्वारा नए सिरे से कंपोज़ किया जाने की मान्यता है और इस ग्रंथ में मुख्य खलनायक थोत्सकान हिंदू ग्रंथ के रावण जैसा है राम के आदर्श का चित्रण इस ग्रंथ के नायक फ्रा राम में मिलते हैं. बहरहाल, अब थाई अयोध्या के अवशेष बड़े इलाके में हैं और ये यूनेस्को की विश्व धरोहर हैं.
18वीं सदी के अंत में तहस नहस की जा चुकी थाईलैंड की अयोध्या यानी अयुत्थया नगरी को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया जा चुका है. इसके अलावा साल 2018 में भारत के राम जन्मभूमि निर्माण न्यास ने यहां एक राम मंदिर का निर्माण शुरू किया था. ये हैरानी की बात भी नहीं है क्योंकि थाईलैंड के इस स्थान के साथ ही, रामकीन की लोकप्रियता, चक्री राजवंश का इतिहास और जनमानस के बीच राम की प्रसिद्धि भारत से काफी पर्यटकों को आकर्षित करती है.
क्या गुमनाम ही रहेंगे थाई राजा?
चक्री राजवंश की मौजूदगी की बात अलग है, लेकिन थाईलैंड के जो पुराने राजवंश रहे हैं, यानी अयुत्थया और उससे भी पहले के समय के, वो इतिहासकारों द्वारा दी गई उपाधियों से ही जाने जाते हैं. परंपरा थी कि राजा के जीते जी उसके नाम से उसे नहीं पुकारा जाए, इसलिए ज़्यादातर राजाओं के असली नाम अब पता ही नहीं हैं. उपाधियां भी शक के दायरे में हैं क्योंकि मौलिक सबूतों के तौर पर उपाधियां लिखे जो स्वर्ण पत्र थे, उन्हें बर्मावासी 18वीं सदी में लूट ले गए.
18वीं सदी के अंत में तहस नहस की जा चुकी थाईलैंड की अयोध्या यानी अयुत्थया नगरी को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया जा चुका है. इसके अलावा साल 2018 में भारत के राम जन्मभूमि निर्माण न्यास ने यहां एक राम मंदिर का निर्माण शुरू किया था. ये हैरानी की बात भी नहीं है क्योंकि थाईलैंड के इस स्थान के साथ ही, रामकीन की लोकप्रियता, चक्री राजवंश का इतिहास और जनमानस के बीच राम की प्रसिद्धि भारत से काफी पर्यटकों को आकर्षित करती है.
क्या गुमनाम ही रहेंगे थाई राजा?
चक्री राजवंश की मौजूदगी की बात अलग है, लेकिन थाईलैंड के जो पुराने राजवंश रहे हैं, यानी अयुत्थया और उससे भी पहले के समय के, वो इतिहासकारों द्वारा दी गई उपाधियों से ही जाने जाते हैं. परंपरा थी कि राजा के जीते जी उसके नाम से उसे नहीं पुकारा जाए, इसलिए ज़्यादातर राजाओं के असली नाम अब पता ही नहीं हैं. उपाधियां भी शक के दायरे में हैं क्योंकि मौलिक सबूतों के तौर पर उपाधियां लिखे जो स्वर्ण पत्र थे, उन्हें बर्मावासी 18वीं सदी में लूट ले गए.