गांधीमुक्त नहीं हो पाएगी कांग्रेस, अगले साल की शुरुआत में राहुल ही बन सकते हैं अध्यक्ष; चिट्‌ठी लिखने वाले नेता किसी गैर-गांधी की ताजपोशी चाहते थे

वैसे तो इन वरिष्ठ नेताओं का पत्र सुझावों और सिफारिशों से भरा पड़ा है, लेकिन सोनिया गांधी से जुड़े कुछ नेता इसे बगावत से कम नहीं समझ रहे। तभी तो राहुल गांधी ने कथित तौर पर पत्र लिखने वालों की तुलना भाजपाइयों से कर दी। यह अपनी तरह की पहली बगावत है जब कोई गांधी पार्टी का नेतृत्व कर रहा है और बाकी नेता साथ नहीं दे रहे। अब तक इसका उल्टा ही होता आया है।

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नई दिल्ली। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की सोमवार को हुई वर्चुअल बैठक में पार्टी की अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई। राहुल गांधी के एक कथित बयान का गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल ने तुरंत विरोध कर दिया, तो साढ़े चार घंटे के अंदर पार्टी ने डैमेज कंट्रोल भी कर लिया। लेकिन इस कलह के पीछे की कहानी थोड़ी अलग है। आगे क्या होने वाला है, यह भी लगभग तय है। इस घटनाक्रम से कुछ सवाल भी उठ रहे हैं।

1. चिट्‌ठी किस तरफ इशारा करती है?
चिट्‌ठी परोक्ष तौर पर इशारा करती है कि पार्टी का एक गुट किसी गैर-गांधी की ताजपोशी चाहता था। उसकी मंशा राहुल का रास्ता रोकने की थी। इसकी कहानी करीब 15 दिन पहले शुरू हुई। दरअसल, सोनिया गांधी का अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर एक साल का कार्यकाल 9 अगस्त को खत्म हो रहा था। इससे दो दिन पहले यानी 7 अगस्त को कांग्रेस के 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्‌ठी लिख दी। यह चिट्‌ठी ऐसे समय लिखी गई, जब सोनिया गंगाराम अस्पताल में भर्ती थीं।

इस चिट्‌ठी में नेताओं ने सोनिया से ऐसी ‘फुल टाइम लीडरशिप’ की मांग की थी, जो ‘फील्ड में एक्टिव रहे और उसका असर भी दिखे’। कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि फुलटाइम लीडरशिप और फील्ड में असर दिखाने वाली एक्टिवनेस जैसे शब्दों का इस्तेमाल इस तरफ इशारा करता है कि कांग्रेस का एक गुट दोबारा राहुल गांधी की ताजपोशी नहीं चाहता।

2. सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में हुआ क्या?
23 नेताओं की चिट्‌ठी के बावजूद सोनिया गांधी ने 12 अगस्त को संगठन के नाम एक चिट्ठी लिखी और अगला अध्यक्ष चुनने की कार्रवाई शुरू करने को कहा। दूसरे गुट के नेताओं को इस बात का एहसास हो गया कि सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में सोनिया पद छोड़ेंगी और लोकसभा चुनाव में हार के बाद अध्यक्ष पद छोड़ चुके राहुल के नाम पर दोबारा मुहर लगेगी। वे नहीं चाहते थे कि इस बैठक में किसी भी सूरत में राहुल की ताजपोशी हो। इसमें वे फिलहाल कामयाब भी हो गए और मामला छह महीने के लिए टल गया।

सीडब्ल्यूसी की सोमवार को मीटिंग थी और दो दिन पहले यानी शनिवार को 23 नेताओं की चिट्‌ठी लीक हो गई। जब सोमवार को मीटिंग शुरू हुई, तो राहुल ने सीधे इस चिट्‌ठी की टाइमिंग पर सवाल उठा दिए। उन्होंने कहा कि जब सोनिया गांधी अस्पताल में भर्ती थीं, तब यह चिट्‌ठी क्यों लिखी गई? राहुल ने हकीकत में ये कहा था कि इस तरह के पत्र लिखने से भाजपा को फायदा हो सकता है। जबकि मीडिया में यह बात लीक की गई कि राहुल कह रहे हैं कि पार्टी नेताओं ने भाजपा की मिलीभगत से ऐसा किया।

‘भाजपा को फायदे’ वाले बयान को ‘भाजपा की मिलीभगत’ वाला बयान मानकर दो नेताओं ने खुलकर विरोध कर दिया। पहले थे गुलाम नबी आजाद और दूसरे थे कपिल सिब्बल। सिब्बल ने पहले ट्वीट किया, फिर राहुल से बात होने की बात लिखकर उस ट्वीट को डिलीट भी कर दिया। आजाद ने कथित रूप से पहले कहा कि राहुल के आरोप साबित हुए तो इस्तीफा दूंगा। बाद में अपना बयान वापस ले लिया।

3. नेताओं ने अचानक बयान क्यों वापस लिए?
यहां सवाल उठता है कि जब राहुल के बयान के बारे में पार्टी नेता कन्फर्म ही नहीं थे, तो उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी क्यों जाहिर की? दरअसल, सीडब्ल्यूसी की बैठक में 51 नेता शामिल हुए, लेकिन इनमें सोनिया को चिट्‌ठी लिखने वाले नेताओं की संख्या सिर्फ 4 थी। बाकी नेता सीडब्ल्यूसी की बैठक में पूरी तैयारी के साथ आए थे और उन्होंने चिट्‌ठी लिखने वाले नेताओं को बैकफुट पर कर दिया।

कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि बिखराव रोकने और डैमेज कंट्रोल के तहत इन नेताओं से बयान वापस लेने को कहा गया। अंबिका सोनी जैसे कुछ नेताओं ने सोनिया से उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग भी कर डाली। सोमवार सुबह दिल्ली स्थित पार्टी के मुख्यालय के बाहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। कहा कि गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष बना तो पार्टी टूट जाएगी।

4. आखिर सोनिया को चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को दिक्कत क्या है?
चिट्ठी लिखने वालों में शामिल नेता बड़े पदों पर रहे हैं। गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर के सीएम रहे हैं और अभी राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं। राज्यसभा का उनका कार्यकाल अगले साल पूरा होने वाला है। माना जा रहा है कि वे दोबारा राज्यसभा नहीं भेजे जाएंगे। आनंद शर्मा की हालत भी ऐसी ही है।

सोनिया काे चिट्‌ठी लिखने वालों में शामिल भूपिंदर सिंह हुड्‌डा हरियाणा, राजिंदर कौर भट्‌टल पंजाब, एम वीरप्पा मोइली कर्नाटक और पृथ्वीराज चव्हाण महाराष्ट्र के सीएम रह चुके हैं। सिब्बल यूपीए सरकार में अहम मंत्री पदों पर रहे हैं। माना जाता है कि इन वरिष्ठतम नेताओं को राहुल की दोबारा ताजपोशी होने पर पार्टी में अपनी अहमियत कम होने की चिंता है, क्योंकि राहुल नई पीढ़ी को आगे लाना चाहते हैं।

इनमें से कई नेता अभी राज्यसभा में हैं या जाना चाहते हैं। इन्हें राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने पर राज्यसभा में दोबारा जाने का मौका मिलने की संभावना नहीं दिख रही। कुछ को बेटों के सियासी करियर की चिंता भी सता रही है।

5. अध्यक्ष पद पर आगे क्या होगा?
सोनिया गांधी अभी अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी। कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि अगले साल की शुरुआत में पंजाब या छत्तीसगढ़ में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सत्र होगा। इसमें राहुल गांधी को दोबारा अध्यक्ष चुना जाना तय है।

6. चिट्‌ठी लिखने वाले नेताओं का क्या होगा?
सीडब्ल्यूसी की 7 घंटे चली बैठक के बाद जो प्रस्ताव पारित किया गया, उसकी भाषा चेतावनी देने वाली है। सोनिया पत्र से कितनी आहत हैं, इसका संकेत प्रस्ताव की भाषा से साफ है। इसमें कहा गया है, ‘सीडब्ल्यूसी यह साफ कर देना चाहती है कि किसी को भी पार्टी या उसके नेतृत्व की अहमियत कम करने या उसे कमजोर करने की इजाजत नहीं दी जाएगी।’

राहुल को मजबूती देते हुए कहा गया, ‘सरकार के खिलाफ राहुल गांधी आगे होकर मोर्चा संभाले हुए हैं। सीडब्ल्यूसी हर तरह से सोनिया गांधी और राहुल गांधी के हाथ मजबूत करना चाहती है।’

माना जा रहा है कि राहुल के चुने जाने से पहले ही सोनिया को चिट्ठी लिखने वाले ज्यादातर नेताओं को पार्टी में किनारे करने की कोशिशें शुरू हो सकती हैं। पत्र लिखने वाले नेताओं को इसका एहसास भी है। इस कारण से पांच-छह नेता कल सीडब्ल्यूसी की बैठक के तुरंत बाद गुलाम नबी आजाद के घर भी पहुंचे थे।

कांग्रेस में पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों, कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों, मौजूदा सांसदों और पूर्व केंद्रीय मंत्रियों समेत 23 वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा है। चिट्ठी का कहना है कि पार्टी में हर स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है। यह भी स्वीकार किया है कि देश के युवा नरेंद्र मोदी के साथ लामबंद हो रहे हैं। साथ ही साथ, पार्टी का सपोर्ट बेस भी कम होता जा रहा है। पार्टी पर युवाओं का कम होता भरोसा गंभीर चिंता का विषय है।

वैसे तो इन वरिष्ठ नेताओं का पत्र सुझावों और सिफारिशों से भरा पड़ा है, लेकिन सोनिया गांधी से जुड़े कुछ नेता इसे बगावत से कम नहीं समझ रहे। तभी तो राहुल गांधी ने कथित तौर पर पत्र लिखने वालों की तुलना भाजपाइयों से कर दी। यह अपनी तरह की पहली बगावत है जब कोई गांधी पार्टी का नेतृत्व कर रहा है और बाकी नेता साथ नहीं दे रहे। अब तक इसका उल्टा ही होता आया है।

क्या पहली बार कांग्रेस में कलह हो रही है?

  • नहीं। ऐसा नहीं है। कांग्रेस में कलह, विरोध और टूट-फूट होती रही है। लेकिन इस बार पार्टी 6 साल से केंद्र की सत्ता से बाहर है। इससे पहले कांग्रेस 1996 से 2004 तक सत्ता से बाहर रही थी।
  • इससे पहले कभी भी पार्टी केंद्र की राजनीति से इतने समय तक बाहर नहीं रही है। फिर चाहे 1989 से 1991 की अवधि हो या 1977 से 1980 तक की अवधि। 1999 में बनी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार देश की ऐसी पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी जिसने पांच साल पूरे किए।
  • बात 1969 की हो या 1977 की, इंदिरा गांधी ने पार्टी में बगावत की थी। 1969 में इंदिरा ने राष्ट्रपति पद के निर्दलीय उम्मीदवार वीवी गिरी को जिताने के लिए पार्टी के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को हरवाया था। तब इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाला गया था।
  • 1977 में भी जब इमरजेंसी के बाद पार्टी हारी तब के ब्रह्मानंद रेड्डी और वायबी चव्हाण ने इंदिरा के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया था। तब भी पार्टी टूटी और वजह इंदिरा ही बनी थी।
  • 1987 में राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री और बाद में रक्षा मंत्री रहे वीपी सिंह ने ही बगावत की झंडाबरदारी की। जन मोर्चा बनाया और अन्य पार्टियों के साथ मिलकर 1989 में सरकार भी बनाई थी।
  • 1990 के दशक में एनडी तिवारी और अर्जुन सिंह ने बगावत की थी, लेकिन तब उनके निशाने पर प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव थे। उन्होंने अलग पार्टी बना ली थी।

क्या पार्टी में पहली बार सोनिया गांधी को चुनौती मिली है?

  • इसे चुनौती कहना गलत होगा। लेकिन यह भी सच है कि सोनिया गांधी को इससे पहले भी पार्टी में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। पहली बार, उस समय जब उन्होंने 1997 में पार्टी के ही कुछ नेताओं के कहने पर कांग्रेस की सदस्यता ली।
  • सीताराम केसरी पार्टी अध्यक्ष थे। 1997 में माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट, नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह, ममता बनर्जी, जीके मूपनार, पी. चिदंबरम और जयंती नटराजन जैसे वरिष्ठ नेताओं ने केसरी के खिलाफ विद्रोह किया था।
  • पार्टी कई गुटों में बंट गई थी। कहा जाने लगा था कि कोई गांधी परिवार का सदस्य ही इसे एकजुट रख सकता है। इसके लिए 1998 में सीताराम केसरी को उठाकर बाहर फेंका और फिर सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया गया।
  • शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने विदेशी मूल की सोनिया को अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध किया तो पार्टी से उन्हें निकाल दिया गया। तीनों नेताओं ने राष्ट्रवादी कांग्रेस बनाई
  • वर्ष 2000 में जब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव हुए तो यूपी के दिग्गज नेता जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया को चुनौती दी। उन्हें गद्दार तक कहा गया। लेकिन उन्हें 12,000 में से एक हजार वोट भी नहीं मिल सके। इस तरह सोनिया का पार्टी पर एकछत्र राज हो गया।
  • सोनिया 1998 से 2017 तक लगातार 19 साल पार्टी की अध्यक्ष रहीं। यह पार्टी के इतिहास में अब तक का रिकॉर्ड है। 2019 में राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से ही अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर सोिनया के पास ही पार्टी की जिम्मेदारी है।

क्या गांधी परिवार के बाहर कोई बन सकता है पार्टी अध्यक्ष?

  • बन सकता है। लेकिन संभावना कम ही है। आजादी के बाद से पार्टी में 18 अध्यक्ष रहे हैं। आजादी के बाद इन 73 सालों में से 38 साल नेहरू-गांधी परिवार का सदस्य ही पार्टी का अध्यक्ष रहा है। जबकि, गैर-गांधी अध्यक्ष के कार्यकाल में ज्यादातर समय गांधी परिवार का सदस्य प्रधानमंत्री रहा है।
  • यह तो तय है कि कांग्रेस चकित नहीं करने वाली। अंतरिम अध्यक्ष पद पर सोनिया गांधी को बने रहने की अपील के साथ ही यह स्पष्ट संदेश दे दिया गया है कि अगला अध्यक्ष राहुल गांधी या प्रियंका गांधी में से ही कोई होगा।
  • यदि गांधी परिवार के बाहर जाकर अध्यक्ष तलाशने की कोशिश की भी गई तो वह ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकेगा, यह पार्टी का हालिया इतिहास बताता है। आजादी के बाद से गांधी परिवार के संरक्षण के बिना कोई अध्यक्ष टिक नहीं सका है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस यानी आईएनसी के संविधान में स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि अध्यक्ष का चुनाव कैसे किया जाए। वैसे, भाजपा की ही तरह यहां भी कोशिश होती है कि सर्वसम्मति बन जाए और चुनाव की नौबत न आए। ऐसे समय में जब पार्टी में कलह मची हुई है, तब कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया को जानना महत्वपूर्ण हो गया है। 

सौजन्य-दैनिक भास्कर

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