ऑपरेशन ब्लू स्टार की 35वीं बरसी आज, अमृतसर में पांच हजार जवान सुरक्षा में तैनात
अमृतसर के गांव हर्षा छीना-कुकड़वाला में नाके के पास मिले दो हैंड ग्रेनेड के बाद जिला पुलिस प्रशासन ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की 35वीं बरसी में किसी भी संभावित घटना को रोकने के लिए गुरु नगरी को छावनी में तब्दील कर दिया है।
अमृतसर। गुरु नगरी के चप्पे-चप्पे में पुलिस व अर्धसैनिक बलों के जवान आधुनिक हथियारों के साथ चौक के अलावा शहर के भीतरी व तंग बाजारों में तैनात कर दिए गए है।
ऑपरेशन ब्लू स्टार के 35 साल: सेना ने ऐसे दिया था कार्रवाई को अंजाम
ऑपरेशन ब्लू स्टार की 35वीं बरसी 6 जून को है. इसके मद्देनजर स्वर्ण मंदिर के आसपास सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. ऑपरेशन ब्लू स्टार अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से अलगाववादियों को खाली कराने का अभियान था, जो बीते 3 वर्षों से वहां डेरा जमाए बैठै थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर सेना का यह ऑपरेशन मुख्य तौर पर 3 से 8 जून 1984 तक चला. हालांकि, इस अभियान की रणनीति पर काफी पहले से काम शुरू हो चुका था.
ऑपरेशन ब्लू स्टार श्री स्वर्ण मंदिर साहिब से अलगाववादियों को खदेडने का अभियान था
ऑपरेशन ब्लू स्टार अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से अलगाववादियों को खाली कराने का अभियान था, जो बीते 3 वर्षों से वहां डेरा जमाए बैठै थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर सेना का यह ऑपरेशन मुख्य तौर पर 3 से 8 जून 1984 तक चला. हालांकि, इस अभियान की रणनीति पर काफी पहले से काम शुरू हो चुका था।
तारीख-दर-तारीख जानिए ऑपरेशन ब्लू स्टार
1981: अमृतसर में सिखों के सबसे पवित्र गुरुद्वारे स्वर्ण मंदिर के पास अपने हथियारबंद साथियों के घेरे में भिंडरावाले छिपा बैठा था.
1981: पंजाब और असम में आतंकवादियों का मुकाबला करने की गुप्त गतिविधियों के लिए स्पेशल ग्रुप या एसजी नाम से एक और यूनिट तैयार की गई.
1982: डायरेक्टरेट जनरल सिक्योरिटी ने प्रोजेक्ट सनरे शुरू किया. उसने सेना की 10वीं पैरा/स्पेशल फोर्सेज के एक कर्नल को 50 अधिकारियों और सैनिकों की एक टुकड़ी गठित करने का काम सौंपा, जिसमें सभी भारतीय थे. इस तरह कमांडो कंपनी 55, 56 और 57 तैयार हुई. इस यूनिट को स्पेशल ग्रुप नाम दिया गया और यह रॉ के प्रमुख के मातहत काम करने लगी. स्पेशल ग्रुप को ऑपरेशन सनडाउन के लिए तैयार किया गया.
1983: भिंडरावाले ने हरमंदिर साहब को पूरी तरह अपना अड्डा बना लिया. इस साल के शुरू के दिनों में स्पेशल ग्रुप यानी एसजी नाम की एक गुप्त यूनिट से सेना के छह अधिकारियों को इजरायली कमांडो फोर्स सायरत मतकल के गुप्त अड्डे पर पहुंचाया गया. तेलअवीव के पास स्थित इस अड्डे पर इन सैनिक अधिकारियों को सड़कों, इमारतों और गाडिय़ों के बड़ी सावधानी से बनाए गए मॉडलों के बीच आतंक से लड़ने की 22 दिन तक ट्रेनिंग दी गई.
फरवरी 1984: स्पेशल ग्रुप के सदस्य श्रद्धालुओं और पत्रकारों के वेश में स्वर्ण मंदिर में घुसकर आसपास का सारा नक्शा देख आए.
अप्रैल 1984: डायरेक्टर जनरल सिक्योरिटी ने पीएम इंदिरा गांधी को स्वर्ण मंदिर को खाली कराने के लिए एक गुप्त मिशन के बारे में बताया, जो सैनिक हमले से कुछ ही कम था. उनका कहना था कि ऑपरेशन सनडाउन असल में झपट्टा मारकर दबोचने की कार्रवाई है. हेलिकॉप्टर में सवार कमांडो स्वर्ण मंदिर के पास गुरु नानक निवास गेस्ट हाउस में उतरेंगे और भिंडरावाले को उठा लेंगे. ऑपरेशन को यह नाम इसलिए दिया गया कि सारी कार्रवाई आधी रात के बाद होनी थी, जब भिंडरावाले और उसके साथियों को इसकी उम्मीद सबसे कम होगी. लेकिन आम लोगों की मौत की आशंका से इंदिरा गांधी ने इस अभियान को हरी झंडी नहीं दी. ऑपरेशन सनडाउन के रद्द होने के बाद ब्लूस्टार की तैयारी हुई.
1 जून, 1984: सीआरपीएफ और बीएसएफ ने गुरु रामदास लंगर परिसर पर फायरिंग शुरू कर दी. सेना के आदेश के तहत हो रही इस फायरिंग में कम से कम 8 लोग मारे गए.
2 जून, 1984: भारतीय सेना ने अंतरराष्ट्रीय सीमा सील कर दी. पंजाब के गांवों में आर्मी की 7 डिविजन तैनात कर दी गई. रात होते होते मीडिया और प्रेस को कवरेज करने से रोक दिया गया. पंजाब में रेल, रोड और हवाई सेवाएं सस्पेंड कर दी गईं. पानी और बिजली की सप्लाई रोक दी गई. विदेशियों और एनआरआई की एंट्री पर भी पाबंदी लगा दी गई.
3 जून, 1984: पूरे पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया था. सेना और पैरामिलिट्री फोर्सेज की गश्त बढ़ गई. मंदिर परिसर से लगे आने जाने के सभी रास्ते सील कर दिए गए.
4 जून, 1984: सेना ने भिंडरावाले के सैन्य सलाहकार शाबेग सिंह की किलेबंदी को खत्म करने की कार्रवाई शुरू कर दी. एतिहासिक रामगढिया बंगा पर बमबारी शुरू की गई. इस दौरान करीब 100 लोग मारे गए. एसजीपीसी के पूर्व प्रमुख गुरुचरण सिंह टोहड़ा को भिंडरवाले से बातचीत के लिए भेजा गया. इस दौरान गोलीबारी रोक दी गई. हालांकि, टोहड़ा की बातचीत नाकाम रही जिसके बाद फायरिंग फिर से शुरू हो गई.
5 जून, 1984: सुबह होते ही हरमंदिर साहिब परिसर के भीतर गोलीबारी शुरू हुई. सेना की 9वीं डिविजन ने अकाल तख्त पर सामने से हमला किया. रात में साढ़े दस बजे के बाद काली कमांडो पोशाक में 20 कमांडो चुपचाप स्वर्ण मंदिर में घुसे. उन्होंने नाइट विजन चश्मे, एम-1 स्टील हेल्मेट और बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखी थीं. उनके पास कुछ एमपी-5 सबमशीनगन और एके-47 राइफल थीं.
उस समय एसजी की 56वीं कमांडो कंपनी भारत में अकेला ऐसा दस्ता था, जिसे तंग जगह में लड़ने का अभ्यास कराया गया था. हर कमांडो शार्पशूटर, गोताखोर और पैराशूट के जरिए विमान से छलांग लगाने में माहिर था और 40 किलोमीटर की रफ्तार से मार्च कर सकता था. उनमें से कुछ ने गैस मास्क पहन रखे थे और ज्यादा असरदार आंसू गैस, सीएक्स गैस के गोले छोड़ने के लिए गैस गन ले रखी थीं.
6 जून, 1984: सुबह चार बजे के आसपास तीन विकर-विजयंत टैंक लगाए गए. उन्होंने 105 मिलिमीटर के गोले दागकर अकाल तख्त की दीवारें उड़ा दीं. उसके बाद कमांडो और पैदल सैनिकों ने उग्रवादियों की धरपकड़ शुरू की. सुबह छह बजे रक्षा राज्यमंत्री के.पी. सिंहदेव ने आर.के. धवन के निवास पर फोन किया. उन्होंने इंदिरा गांधी तक यह संदेश पहुंचाने को कहा कि ऑपरेशन कामयाब रहा, लेकिन बड़ी संख्या में सैनिक और असैनिक मारे गए हैं.
7 जून, 1984: सेना ने हरमंदिर साहिब परिसर पर प्रभावी कब्जा जमा लिया.
8 जून, 1984: तत्कालीन राष्ट्रपति जैल सिंह ने स्वर्ण मंदिर का दौरा किया. हालांकि, उनके साथ मंदिर गए एसजी दस्ते के कमांडिंग ऑफिसर, एक लेफ्टिनेंट जनरल किसी उग्रवादी निशानची की गोली से बुरी तरह घायल हो गए.
10 जून, 1984: दोपहर तक पूरा ऑपरेशन खत्म हो गया.
31 अक्टूबर, 1984: हरिमंदर साहिब में सैनिक कार्रवाई के विरोध में इंदिरा गांधी को उनके दो अंगरक्षकों ने गोली मार दी थी.
जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान सिखों की धार्मिक मामलों की सर्वोच्च संस्था अकाल तख़्त की तबाही के बाद सिखों के दुख और प्रतिशोध की भावना को हम सब जानते हैं.
घटना के बाद मिला सबक
हमने ये भी देखा कि इसके 19 साल बाद ‘ख़ालिस्तान लहर’ के नेता जरनैल सिंह भिंडरांवाले को ‘शहीद’ घोषित किया गया. लेकिन दुखी सिख समुदाय के अधिकतर सदस्यों ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.
ये भी देखा गया कि भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की जहाँ इस संदर्भ में एक समय प्रशंसा की जा रही थी, वहीं ऐसी आवाज़ें इतनी कमज़ोर पड़ीं कि वे लोग ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए ‘माफ़ी’ माँगते सुनाई दिए.
अल्पसंख्यकों के अधिकार
ऑपरेशन ब्लू स्टार इस बात का प्रतीक बन गया है कि कई संस्कृतियों के मेल-जोल से बने समाज में धार्मिक चिह्नों और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों का सम्मान होना चाहिए.
महत्वपूर्ण है कि भारत में ऑपरेशन ब्लू स्टार समाज को खंडित करने, किसी एक धर्म के प्रभुत्व और धर्म के आधार पर अलग सिख राष्ट्र का प्रतीक नहीं बना.
इस घटना का ये भी महत्व है कि सिखों की भावनाओं को पहुँची ठेस और फिर उसके बदले की जगह, इस घटना ने बहुसांस्कृतिक समाज में धार्मिक समुदायों के लोकतांत्रिक अधिकारों की राजनीतिक बहस छेड़ी.
महत्वपूर्ण है कि काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को 1998 में मानना पड़ा था कि वे सिखों के दर्द को समझती हैं और उन्होंने कहा था कि सिख विरोधी दंगों पर उनको अफ़सोस है.
इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी जैसे नेताओं के राजनीतिक जीवन में हुई घटनाओं के संबंध में ‘माफ़ी’ माँगा जाना भारतीय लोकतंत्र की अंदरूनी ताक़त को दर्शाता है.
यदि जरनैल सिंह भिंडरांवाले सिखों के सबसे बड़े नेता के रूप में नहीं उभरे तो भारत में धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र संबंधी बहस में इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी का नाम भी बहुत गर्व से नहीं लिया जा सकता.
ब्लू स्टार की यादें
अलगाववाद और समाज को बाँटने की राजनीति बहुत आगे नहीं बढ़ सकी. इस विषय में एक उदाहरण ही काफ़ी है.
- कट्टरपंथी सिख संगठन दल ख़ालसा ने जब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से अपील की कि उसके 1985 के वादे के अनुसार स्वर्ण मंदिर में एक ‘शहीदी स्मारक’ बनाया जाए तो एसजीपीसी से ठंडी प्रतिक्रिया मिली.
- ये इसलिए कि आम जनता ख़ालिस्तानियों की विचारधारा और लक्ष्यों से दूर हो चुकी है, लेकिन जनता ऑपरेशन ब्लू स्टार की यादों से दूर नहीं हुई है.
चाहे कट्टरपंथी सिख संगठन इन यादों को चुनावों में या अलग सिख पहचान के संदर्भ में इस्तेमाल करते आए हैं, लेकिन इस घटना का सबसे बड़ा सबक़ यही है कि धार्मिक समुदायों के अधिकारों की रक्षा की जाए और लोकतंत्र को मज़बूत किया जाए. ऑपरेशन ब्लूस्टार और उसके बाद हुई घटनाओं का यही सबक़ है।
ऑपरेशन ब्लू स्टार से ठेस केवल सिख समुदाय और धर्मनिरपेक्ष लोगों को नहीं पहुँची बल्कि इसे पूरे क्षेत्र में सभी धर्मों और क्षेत्रों के लोगों ने महसूस किया. इसीलिए इतिहास का इस्तेमाल सबक़ सिखाने के लिए नहीं बल्कि सबक़ सीखने के लिए होना चाहिए।
हर साल बरसी मानकर जताते है कुछ संगठन विरोथ
पुलिस कमिश्नर एसएस श्रीवास्तव के अनुसार बरसी पर किसी भी घटना को रोकने के लिए पंजाब पुलिस के साथ-साथ अर्धसैनिक व बीएसएफ के पांच हजार से अधिक जवान मुस्तैद है।
श्री दरबार साहिब के आसपास के इलाकों में सीसीटीवी कैमरे स्थापित कर दिया गए हैं। पुलिस अधिकारी इन सीसीटीवी कैमरों से कंट्रोल रूम से गतिविधियों पर पैनी नजर बनाए हुए हैं।
इस दौरान सभी प्रवेश मार्गों में दोपहिया, कार, ट्रकों व अन्य भारी वाहनों की तलाशी भी ली जा रही है। पुलिस ने अमृतसर-जालंधर जीटी रोड में स्थित गोल्डन गेट के नजदीक, तरनतारन रोड, वेरका बाईपास में भारी पुलिस बल तैनात है।
खुली जीप में पेट्रोलिंग पार्टियां शहर के सभी प्रमुख गेटों के बाहर खड़ी थी। श्री दुर्गियाणा तीर्थ परिसर, गुरुद्वारा बाबा दीप सिंह जी शहीद व अन्य धार्मिक स्थान के बाहर भी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है।
एसजीपीसी की टास्क फोर्स भी मुस्तैद
ऑपरेशन ब्लू स्टार की 35वीं बरसी का मुख्य कार्यक्रम श्री अकाल तख्त साहिब में होगा। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए देश-विदेश से संगत पहुंचती है।
अलगाववादी नेता सिमरनजीत सिंह मान अपने समर्थकों के कई वर्षों से इस कार्यक्रम में हुल्लड़बाजी कर देशविरोधी नारेबाजी करते आ रहें है। बीते चार वर्षों से समांतर जत्थेदार व उनके समर्थक इस कार्यक्रम में अलग भाषण देकर माहौल को खराब कर रहे है। श्री अकाल तख्त साहिब में किसी भी घटना को रोकने व गुरु मर्यादा भंग न होने को रोकने के लिए एसजीपीसी के टास्क फोर्स के जवान तैनात रहेंगे।