जम्मू . भाजपा महासचिव और जम्मू कश्मीर में पार्टी मामलों के प्रभारी राम माधव ने मंगलवार को कश्मीरी पंडितों के एक प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया कि सरकार विस्थापित समुदाय के साथ बड़े स्तर पर विचार-विमर्श किए बिना उनकी वापसी और पुनर्वास को लेकर कोई नीति नहीं बनाएगी.
एक बयान के मुताबिक, ‘‘उन्होंने प्रतिनिधिमंडल को बताया कि सरकार विस्थापित समुदाय की चिंताओं के समाधान के लिए प्रतिबद्ध है और अगर वे तीन अलग बस्तियों या किसी एक खास क्षेत्र में लौटना चाहते हैं तो उनसे चर्चा की जाएगी.’’
वापसी पर होनी है अंतिम चर्चा
कश्मीरी पंडितों को आतंकियों की हिंसा के डर से 1989 और 1990 के दौरान बड़ी संख्या में कश्मीर के इलाकों को छोड़कर देश के दूसरे हिस्सों में जाना पड़ा था. इस दौरान यहां पर कई कश्मीरी पंडितों की हत्या भी कर दी गई थी. तबसे आज तक कश्मीरी पंडित, कश्मीर में अपने घर वापस लौटने की आस में हैं लेकिन 30 साल बाद भी यह बात उनके लिए एक ख्वाब बनी हुई है.
2018 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक 1990 तक जहां कश्मीर घाटी में रहने वाले कुल पंडितों की संख्या 3,25,000 थी, वहीं अब कश्मीर घाटी में रहने वाले पंडितों की संख्या कुल 2,764 रह गई है.
हाल ही आई एक किताब में कही गई थी ये बातें
कुछ वक्त पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैफुद्दीन सोज ने कश्मीर पर एक किताब लिखी थी. जिससे कई विवाद खड़े हो गए थे. इस किताब में कश्मीरी पंडितों के पलायन का भी जिक्र किया गया था. इस किताब में एक हद तक जम्मू-कश्मीर के कद्दावर राज्यपाल जगमोहन को भी एक हद तक इस पलायन का जिम्मेदार ठहराया गया था. इस किताब के एक अंश के अनुसार जगमोहन को दो कारणों से कश्मीरी पंडितों का पलायन उचित लगा, पहला- इस तरह अकेले पड़ चुके पंडित सुरक्षित महसूस करेंगे और इससे साम्प्रदायिक हत्याएं समाप्त हो जाएंगी. दूसरा- उन्हें लगा कि आतंकवाद के खिलाफ कड़े कानूनों के चलते पलायन के बाद वह स्थिति से बेहतर तरीके से डील कर पाएंगे क्योंकि इन कानूनों का मिश्रित आबादी पर स्वतंत्र रूप से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था.
बयान में कहा गया, ‘‘माधव ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन देकर विस्थापित समुदाय के बड़े हिस्से की आशंकाओं को दूर करते हुए कहा कि सरकार वापसी के अंतिम प्रारूप पर समुदाय के नेताओं के साथ चर्चा करने के लिए तैयार है और रिहाइश के विभिन्न स्थानों पर अंतिम निर्णय नहीं हुआ है.”