अमृतसर. सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव जी ने 1604 में आज ही के दिन दरबार साहिब में पहली बार गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया था। 1430 अंग (पन्ने) वाले इस ग्रंथ के पहले प्रकाश पर संगत ने कीर्तन दीवान सजाए और बाबा बुड्ढा जी ने बाणी पढ़ने की शुरुआत की।
पहली पातशाही से छठी पातशाही तक अपना जीवन सिख धर्म की सेवा को समर्पित करने वाले बाबा बुड्ढा जी इस ग्रंथ के पहले ग्रंथी बने। आगे चलकर इसी के संबंध में दशम गुरु गोबिंद सिंह ने हुक्म जारी किया “सब सिखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रंथ।’
गुरु अर्जन देव बोलते गए, भाई गुरदास लिखते गए
1603 में 5वें गुरु अर्जन देव ने भाई गुरदास से गुरु ग्रंथ साहिब को लिखवाना शुरू करवाया, जो 1604 में संपन्न हुआ। नाम दिया ‘आदि ग्रंथ’। 1705 में गुरु गोबिंद सिंह ने दमदमा साहिब में गुरु तेग बहादुर के 116 शबद जोड़कर इन्हें पूर्ण किया। 1708 में दशम गुरु गोबिंद सिंह ने हजूर साहिब में फरमान जारी किया था, “सब सिखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रंथ।’
समूची मानवता को एक लड़ी में पिरोने का संदेश है गुरु ग्रंथ साहिब
सिखाें में जीवंत गुरु के रूप में मान्य श्री गुरु ग्रंथ साहिब केवल सिख कौम ही नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए अादर्श व पथ प्रदर्शक हैं। दुनिया में यह इकलौते ऐसे पावन ग्रंथ हैं जाे तमाम तरह के भेदभाव से ऊपर उठकर आपसी सद्भाव, भाईचारे, मानवता व समरसता का संदेश देते हैं। आज के माहौल में अगर इनकी बाणियों में छिपे संदेश, उद्देश्य व अादेश काे माना जाए ताे समूची धरती स्वर्ग बन जाए। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज बाणी की विशेषता है कि इसमें समूची मानवता को एक लड़ी में पिरोने का संदेश दिया गया है।
6 गुरु साहिबानों के साथ समय-समय पर हुए भगतों, भट्टाें अाैर महापुरुषों की बाणी दर्ज है। गुरबाणी के इस अनमाेल खजाने का संपादन गुरु अर्जन देव ने करवाया। गुरुद्वारा रामसर साहिब वाली जगह गुरु साहिब ने 1603 में भाई गुरदास से बाणी लिखवाने का काम शुरू किया था। गुरु साहिब ने इसमें बिना कोई भेदभाव किए तमाम विद्धानाेें अाैर भगताें की बाणी शामिल की। 1604 में गुरु ग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश दरबार साहिब में किया गया।