नई दिल्ली। देश में इन दिनों भाषा को लेकर बहस छिड़ी हुई है. इस बीच राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) के अध्यक्ष का कहना है कि संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाई जानी चाहिए. इससे रोजगार में मदद मिलेगी.
हिंदी भाषा संस्कृत भाषा से अंकुरित होने के अलावा कुछ नहीं
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार साई ने कहा, ‘अगर संस्कृत को राष्ट्रीय स्तर पर पढ़ाया जाएगा, तो यह भारत में रोजगार के अवसरों में इस्तेमाल करने के लिए एक अवसर के तौर पर सामने आएगी. हिंदी भाषा संस्कृत भाषा से अंकुरित होने के अलावा कुछ नहीं है. जिस तरह से संस्कृत भाषा जीवन का प्रत्येक मूल्य समझाती है, उस तरह से अंग्रेजी भाषा नहीं समझा सकती है. इसलिए अगर यह महत्व नहीं दिया जाता है कि इसे दिया जाना चाहिए.’
संस्कृत प्रकृति और पेड़ों को परिभाषित करती है
नंद कुमार ने ग्लोबल वार्मिंग को संस्कृत भाषा के इस्तेमाल की कमी से भी जोड़ा. उन्होंने कहा, ‘जिस तरह से संस्कृत प्रकृति और पेड़ों को परिभाषित करती है, कोई अन्य भाषा ऐसा नहीं कर सकती. अगर हम आज संस्कृत का अध्ययन करेंगे, तो हम इस तरह की ग्लोबल वार्मिंग को नहीं देखेंगे.’ उन्होंने कहा, ‘जिस पल हम संस्कृत का अध्ययन शुरू करेंगे, उसका उपयोग रोजगार सृजन में भी किया जाएगा. हम अंग्रेजी का अध्ययन करते हैं और यहां तक कि हिंदी का उद्देश्य भी बड़े पैमाने पर रोजगार के लिए कम हो गया है.
दरअसल, नंद कुमार का बयान ऐसे वक्त में आया है जब भाषा को लेकर दक्षिणी भारत में विवाद की स्थित पैदा हो गई थी. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में तीन भाषाओं के फॉर्मूले में दक्षिण के राज्यों में हिंदी भाषा को अनिवार्य करने पर बवाल हो गया. हालांकि सरकार की ओर से इसमें बदलाव किया गया है. जिसके तहत हिंदी के अनिवार्य होने वाली शर्त हटा दी गई है.