अंतराष्ट्रीय नशा विरोधी दिवस-पंजाब में 29 लाख लोग कर रहे नशे का सेवन, एक लाख महिलाएं शामिल

पंजाब की कुल आबादी में से, लगभग 15 प्रतिशत लोग किसी भी नशीली  दवा पर निर्भर हो चुके हैं । इसका मतलब पंजाब की कुल आबादी में से लगभग 29 लाख लोग (लगभग 28 लाख पुरुष और एक लाख महिलाएं) किसी भी प्रकार के नशे पर निर्भर हैं। सबसे ज्यादा नशा तम्बाकू का और उसके बाद शराब का किया जाता है। अवैध नशे या ड्रग्स में , ओपिओइड जैसे की अफीम, पोस्त , भूक्की, हेरोइन इत्यादि सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली ड्रग्स हैं, और हर 100 पुरुषों में से लगभग 1 ओपियोइड का एक निर्भर उपयोगकर्ता है।

बठिंडा। सन 1987 में हुई शुरुआत के बाद से, संयुक्त राष्ट्र संघ 26 जून को नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाता है। इस वर्ष के लिए थीम है “बेहतर देखभाल के लिए बेहतर ज्ञान”। पंजाब राज्य में एक घरेलू सर्वेक्षण के अनुसार, 100 लोगों में से लगभग 21 ने अपने जीवनकाल में कभी किसी नशीले पदार्थ का उपयोग किया हुआ है और लगभग १०० लोगो में से औसतन 15 वर्तमान में इसका इस्तेमाल कर रहे होंग़े। इसके अलावा, पंजाब की कुल आबादी में से, लगभग 15 प्रतिशत लोग किसी भी नशीली  दवा पर निर्भर हो चुके हैं । इसका मतलब पंजाब की कुल आबादी में से लगभग 29 लाख लोग (लगभग 28 लाख पुरुष और एक लाख महिलाएं) किसी भी प्रकार के नशे पर निर्भर हैं। सबसे ज्यादा नशा तम्बाकू का और उसके बाद शराब का किया जाता है। अवैध नशे या ड्रग्स में , ओपिओइड जैसे की अफीम, पोस्त , भूक्की, हेरोइन इत्यादि सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली ड्रग्स हैं, और हर 100 पुरुषों में से लगभग 1 ओपियोइड का एक निर्भर उपयोगकर्ता है।

  • अपने डॉक्टरी अभ्यास के 10 से अधिक वर्षों में, मैंने हजारों रोगियों को दवा की समस्याओं के साथ इलाज किया है। हालांकि आमतौर पर नशे का इस्तेमाल पीयर प्रेशर यानि की दोस्तों के दबाव में आकर शुरू होता है, लेकिन अक्सर पारिवारिक समस्याओं के कारण, या परिवार के किसी और सदस्य में पहले से ही नशे का इस्तेमाल करना भी इसका कारण हो सकते हैं। कभी कभी नशे की बीमारी परिवारों में चलती है और वंशानुगत/जेनेटिक होती है। यहां तक ​​कि कुछ मामलों में, अच्छे परिवारों के माता-पिता अक्सर अपने बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज करते हैं, और यहां तक ​​कि बच्चों के गलत होने के बावजूद बहाने देकर अपने बच्चों की रक्षा करते हैं। इसलिए, ऐसे बच्चे जब बड़े होते हैं, तो अक्सर गैर-जिम्मेदार होते हैं, अपने घरों से चोरी करते हैं, बेरोजगार रहते हैं और नशे के शिकार हो जाते हैं।

अक्सर यह देखा गया है कि लोगों को मादक पदार्थों की लत और इसके उपचार के बारे में कई गलतफहमियां

पहली ग़लतफ़हमी या भ्रान्ति यह है कि लत एक विकल्प है, और इसे बदला जा सकता है। हालांकि, नशा करना या न करना एक विकल्प है, लेकिन कुछ समय बाद व्यक्ति शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से नशे पर निर्भर हो जाता है और अक्सर नशा करने के इलावा कोई और विकल्प नहीं बचता है। एक मरीज ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है “यदि मैं ड्रग्स नहीं लेता हूं, तो मैं एक राक्षस बन जाता हूं जो केवल ड्रग्स द्वारा शांत होता है”।

इसके कारण कई बार आम जनता के साथ-साथ चिकित्सक भी नशेड़ी लोगों के प्रति असंगत हो जाते हैं और उन्हें अपनी समस्याओं के लिए दोषी ठहराते हैं। कई लोगों के लिए, पहली बार किया गया नशा पसंद नहीं आता और इसलिए उन्हें यह लत नहीं लगती । दूसरों के लिए नशा जारी रखने के कई कारण हो सकते हैं जैसे की गरीबी, नौकरी की कमी, दोस्तों या परिवारों में नशीली दवाओं का दुरुपयोग, ड्रग्स की आसान उपलब्धता आदि ।

दूसरी ग़लतफ़हमी/भ्रान्ति है की आम जनता को लगता है की नशे की बीमारी को एक टूटी हुई हड्डी की तरह ही ठीक किया जा सकता है । इसलिए, रोगी के शरीर से नशा बाहर जाने के बाद (यानी डिटॉक्सिफिकेशन या पुनर्वास केंद्र में भर्ती करने के बाद), उन्हें लगता है की इलाज/उपचार पूरा हो गया है। और यदि मरीज नशा दोबारा से शुरू कर ले तो उन्हें लगता है की इलाज असफल हो गया है । इसके विपरीत, नशे की बीमारी एक टूटी हुई हड्डी की बीमारी की बजाय शरीर की लम्बी बीमारी जैसे की ब्लड प्रेशर या शुगर की तरह है और इसलिए इलाज लम्बे समय के लिए चलता है और दवाइओ के साथ साथ मरीज मरीज को अपने व्यवहार, रोजमर्रा के नियम और घर के वातावरण में परिवर्तन की आवश्यकता होती है।

तीसरी ग़लतफ़हमी है की, लोग अक्सर नशे के दुरुपयोग से होने वाले शारीरिक नुकसान से अनजान होते हैं। अक्सर लोग दूसरों से, जो लंबे समय से ड्रग्स का इस्तेमाल कर रहे हैं, से अपनी तुलना करते हैं । लेकिन हर व्यक्ति अलग होता है, और यह आवश्यक नहीं है कि धूम्रपान करने से धूम्रपान करने वाले सभी लोगों में कैंसर हो जाएगा। यह कई अन्य कारकों पर निर्भर करता है। इसी तरह, नशे के टिके/ इंजेक्शन लेने वाले लोगो में, हेपेटाइटिस बी और सी, या एचआईवी और बाद में लिवर फेल होने जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। सही इलाज करके इन गंभीर समस्यायों से बचा जा सकता है।

चौथी भ्रान्ति/ग़लतफ़हमी है की कुछ लोग सोचते हैं कि नशे को एकदम बंद करने से शरीर ख़राब हो जायेगा और इसलिए नशे की मात्रा धीरे धीरे कम करने से उन्हें नशा छोड़ने में मदद मिलेगी। मगर इन्सान जितनी देर तक नशे लेता रहेगा, उतनी अधिक संभावना होगी कि आप उसे छोड़ने में असफल होंगे। अगर आप नशा छोड़ना चाहते हैं तो  तो डॉक्टरों की मदद से इससे एकदम ही बंद किया जा सकता है। इसे धीरे-धीरे छोड़ने से नशे को रोकने में कभी मदद नहीं मिलती है।

पांचवां, कभी-कभी, लोग एक नशा छोड़ने के लिए दूसरा नशा शुरू करने लगते हैं, यह सोच कर की दूसरा नशा कम हानिकारक होग़ा। हालांकि, एक बार एक नशे के आदी होने के बाद, अन्य नशे पर आदी होने की संभावना बहुत अधिक  होती है और अक्सर यह देखा जाता है कि एक के बाद एक नशों की संख्या बढ़ती रहती है।

अंत में, किसी भी तरह का नशा करना एक लम्बी मानसिक बीमारी है जो न केवल नशा करने वाले को प्रभावित करता है, बल्कि परिवारों और आने वाली पीढ़ियों को भी बर्बाद कर देती है। मगर उचित ज्ञान के साथ, नशे से ग्रसित मरीज उपयुक्त उपचार ले सकते हैं और इस प्रकार स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।

An article on the occasion of International day Against Drug Abuse and Illicit Trafficking written by 
-Dr. Jitender Aneja, 
M.D. (Psychiatry),
Associate Professor;
HOD, Department of Psychiatry 
All India Institute of Medical Sciences Bathinda
 
Thanks Regards
Prof. Satish Gupta
Dean & Additional Medical Superintendent 
AIIMS,Bathinda,Punjab   

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