हरियाणा चुनाव की डेरा पॉलिटिक्स: आध्यात्म तो ‘बहाना’ है, मतदाताओं को लुभाना है

हरियाणा में 21 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है, जबकि 24 अक्टूबर को नतीजों की घोषणा की जाएगी.

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नई दिल्ली: भारतीय राजनीति के इतिहास में बाबाओं और उपदेशकों का बड़ा स्थान रहा है, हरियाणा इसकी एक बड़ी मिसाल है. अपने अनुयायियों की राजनीतिक इच्छाशक्ति को प्रभावित करने की उनकी क्षमता ने सभी धर्मों के नेताओं को उनके साथ जोड़ रखा है. पिछले कुछ सालों में स्थिति और भी दिलचस्प हो गई है, राज्य विधानसभा चुनावों के आगाज के साथ ही एक बार फिर हरियाणा में बाबाओं के डेरों ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया है.

 

पिछले कुछ सालों में सतलोक आश्रम के प्रमुख रामपाल और डेरा सच्चा सौदा के गुरुमीत राम रहीम सिंह के जेल जाने के बाद अब बचे दूसरे बाबाओं के लिए मैदान पुरी तरह खुल गया है. स्थानीय जनता और समुदायों पर इन बाबाओं का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है. इसलिए सिर्फ राज्य के नेता ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय नेता भी इनके दरबार में सिर झुकाते नजर आते हैं.

 

हरियाणा के रोहतक जिले में ऐसे ही कुछ बाबा और उनके डेरों पर अक्सर राजीनिक हलचल देखी जाती है. अलग अलग पार्टियों के कई नेता समय समय पर यहां आते रहते हैं. इस चुनावी सीजन में भी आध्यात्म के बहाने मतदाताओं को लुभाने के लिए नेताओं का इन डेरों पर आना जाता शुरू हो गया है. इन डेरा प्रमुखों को अक्सर नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए देखा जाता है. आइए नजर डालते हैं रोहतक कुछ ऐसे बाबओं पर….

 

बाबा बालकनाथ: अलवर के सांसद बाबा बालक नाथ रोहतक-दिल्ली मार्ग पर बने बाबा मस्त नाथ विश्वविद्यालय के कुलपति भी हैं. रोहतक और जींद के बीच बने मस्त नाथ डेरा का देश भर के नाथ समुदाय में बड़ा स्थान है. अक्सर विभिन्न दलों के बड़े राजनेता बाबा मस्त नाथ विश्वविद्यालय में हेलीकॉप्टर से उतरते हैं. बलक नाथ का नाम मई में रोहतक लोकसभा के लिए संभावित बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर भी सामने आया था. बालक नाथ यादव समुदाय से आते हैं, उनके संबंध पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा परिवार के साथ भी बेहद अच्छे बताए जाते हैं.

 

काली दास महाराज: काली दास महाराज का रोहतक जिले के सांपला में अपना डेरा है. उनके बारे में कहा जाता है कि वे पूरी तरह से सिर्फ नारियल के पानी पर जीवित रहते हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2017 में अपने तीन दिन के रोहतक दौरे के दौरान काली दास महाराज के डेरे का दौरा किया. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से लेकर पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जे पी नड्डा तक, सभी कभी ना कभी डेरे का दौरा कर चुके हैं. इसके साथ ही काली दास को अक्सर बीजेपी के बैनर तले आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में देखा जाता है. उनके करीबी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके ” सीधे संबंध ” का दावा करते हैं. नौकरशाही में अपने चमकदार कैरियर को छोड़ने वाली एक महिला सांसद का मानना ​​था कि कालीदास महाराज के साथ उनके कनेक्शन के कारण ही उन्हें टिकट मिला.

 

बाबा कपिल पुरी: पुराने रोहतक शहर में बाबा कपिल पुरी का ‘गौकरन धाम’ नाम का डेरा है, पंजाबी में इन्हें काफी मान्यता मिली हुई है. कपिल पुरी को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का करीबी माना जाता है और कहा जाता है कि वे स्वाभाविक रूप से कांग्रेस के प्रति झुकाव रखते हैं. बालक नाथ की तरह कपिल पुरी का नाम भी रोहतक से कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार के रूप में चर्चा में था. पंजाबी समुदाय में उनके प्रभाव के कारण, कांग्रेस उन्हें हरियाणा के मंत्री मनीष ग्रोवर के जवाब के रूप में देखती है. बाबा कपिल पुरी चुनावी राजनीति में कोई दिलचस्पी होने से इनकार करते हैं, उनका दावा है कि उनके पास सभी दलों के नेता आते हैं और डेरा के सामने झुकते हैं. कपिल पुरी कहते हैं कि मैं चुनाव लड़ने में दिलचस्पी नहीं लेता लेकिन मुझे किसी का टिकट मिल सकता है. बीजेपी के कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति किसी को हैरान नहीं करती है.

 

बाबा करन पुरी: इनके डेरे का नाम ‘बाला पुरी डेरा’ है जो रोहतक के डबल फाटक इलाके में स्थित है. बाबा करनपुरी का पंजाबी समुदाय पर अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है. बीजेपी नेताओं के लगातार दौरे से ‘बाला पुरी डेरा’ हमेशा सुर्खियों में बना रहता है. करण पुरी भी अक्सर बीजेपी के कार्यक्रमों में अपनी उपस्थित दर्ज करवाते रहते हैं. कुछ पंजापियों का कहना है कि उनका समुदाय कपिल पुरी और करनपुरी में बंटा हुआ है.

 

महंत सतीष दास: सतीश दास ने भारतीय राष्ट्रीय लोकदल (इनेलो) के साथ अपने संबंधों को खत्म करने के बाद औपचारिक रूप से बीजेपी में शामिल हो गए. वह 2014 के विधानसभा चुनावों में महम विधानसभा क्षेत्र से इनेलो के उम्मीदवार भी थे और कांग्रेस और बीजेपी के उम्मीदवारों के बाद तीसरे स्थान पर रहे. उनका मुख्यालय रोहतक जिले के महम इलाके में है. दशकों से उनकी ताकत डेरा में आने वाले महम गांवों के लोगों से मानी जाती है.

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