महिलाओं के लिए मुफ्त मेट्रो योजना पर SC ने दिल्ली सरकार से पूछा- आप दिल्ली मेट्रो को क्यों बर्बाद करना चाहते हैं

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की महिलाओं को मुफ्त मेट्रो यात्रा देने की योजना पर सवाल उठाते हुए कहा कि दिल्ली सरकार को 'जनता के पैसे' से इस तरह की मुफ्त रेवड़ियां देने से गुरेज करना चाहिये. साथ ही सरकार को चेतावनी दी कि वह उसे ऐसा करने से रोक सकती है क्योंकि कोर्ट 'अधिकारविहीन' नहीं हैं.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली मेट्रो में महिलाओं को मुफ्त यात्रा देने की केजरीवाल सरकार की महत्वकांक्षी योजना को निशाना बनाया. कोर्ट ने इस तरह की ‘मुफ्त’ यात्रा और ‘रियायत’ देने पर सवाल उठाते हुये कहा कि इससे दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेपेशन को घाटा हो सकता है. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार को ‘जनता के पैसे’ से इस तरह की मुफ्त रेवड़ियां देने से गुरेज करना चाहिये. साथ ही सरकार को चेतावनी दी कि वह उसे ऐसा करने से रोक सकती है क्योंकि कोर्ट ‘अधिकारविहीन’ नहीं हैं.

 

जज अरूण मिश्रा और जज दीपक गुप्ता की पीठ ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा, “अगर आप लोगों को मुफ्त यात्रा की इजाजत देंगे तो दिल्ली मेट्रो को घाटा हो सकता है. अगर आप ऐसा करेंगे तो हम आपको रोकेंगे. आप यहां पर एक मुद्दे के लिये लड़ रहे हैं और आप चाहते हैं कि उन्हें नुकसान हो. आप प्रलोभन मत दीजिये. यह जनता का पैसा है.”

आप दिल्ली मेट्रो को क्यों बर्बाद करना चाहते हैं?- कोर्ट

 

पीठ ने कहा, “आप दिल्ली मेट्रो को क्यों बर्बाद करना चाहते हैं? क्या आप इस तरह की घूस देंगे और कहेंगे कि केन्द्र सरकार को इसका खर्च वहन करना चाहिए.” दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जून महीने में कहा था कि उनकी सरकार राजधानी में मेट्रो और बस में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा देने पर विचार कर रही है और उसकी योजना दो तीन महीने के भीतर इसे लागू करने की है.

 

दिल्ली सरकार का यह कदम आगले साल होने वाले विधान सभा चुनाव को ध्यान में रखते हुये उठाया है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार को इस तरह से अपने धन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. पीठ ने कहा, “आपके पास जो है वह जनता का धन और जनता का विश्वास है.” पीठ ने सवाल किया, “क्या आप समझते हैं कि अदालतें अधिकारविहीन हैं.” हालांकि दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि इस प्रस्ताव पर अभी अमल नहीं किया गया है.

 

शीर्ष अदालत ने दिल्ली मेट्रो के चौथे चरण की परियोजना से संबंधित तीन मुद्दों पर विचार किया. इनमें संचालन का घाटा वहन करना, जापान इंटरनेशनल कार्पोनेशन एजेन्सी के कर्ज का भुगतान में चूक होने पर इसका पुनर्भुगतान, और भूमि की कीमत साझा करना शामिल थे. केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच इन मुद्दों को अभी भी सुलझाना बाकी है.

 

मेट्रो की वित्तीय स्थिति ठीक रखना दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी

 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह दिल्ली मेट्रो रेल निगम की वित्तीय स्थिति ठीक रखे और ऐसा कोई कदम नहीं उठाये जिसकी वजह से उसे घाटा उठाना पड़े. इस परियोजना के लिये भूमि की कीमत साझा करने के मुद्दे पर पीठ ने कहा कि इसकी कीमत केन्द्र और दिल्ली सरकार को 50:50 के अनुपात में वहन करनी होगी.

 

पीठ ने संबंधित प्राधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि मेट्रो परियोजना के चौथे चरण में किसी प्रकार का विलंब नहीं हो और भूमि की कुल कीमत की 2,247.19 करोड़ रुपये की राशि तत्काल जारी की जाये. पीठ ने केन्द्र और दिल्ली सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वे भूमि की कीमत के भुगतान का तरीका तीन हफ्ते के भीतर तैयार करें.

 

शीर्ष अदालत ने 29 जुलाई को दिल्ली विकास प्राधिकरण को चौथे चरण की परियोजना के तीन प्राथमिकता वाले गलियारों में वित्तीय योगदान बढ़ाने के बारे में अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करने के लिये समय दिया था. इसका प्रस्ताव पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण ने दिया था.

 

मेट्रो परियोजना में केन्द्र और दिल्ली बराबर के साझेदार

 

दिल्ली मेट्रो के 103.94 किलोमीटर लंबे चौथे चरण में छह गलियारे होंगे. ये हैं-ऐरोसिटी से तुगलकाबाद, इंदरलोक से इंद्रप्रस्थ, लाजपतनगर से साकेत जी ब्लाक, मुकुन्दपुर से मौजपुर, जनकपुरी से आर के आश्रम और रिठाला से बवाना और नरेला.

 

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने इस साल नौ मार्च को 61.66 किलोमीटर लंबे प्राथमिकता वाले तीन गलियारों-एरोसिटी से तुगलकाबाद, आर के आश्रम से जनकपुरी (पश्चिम) और मुकुन्दपुर से मौजपुर- के लिये 24,948.65 करोड़ रुपये की लागत की मंजूरी दी थी. पीठ ने कहा कि चौथे चरण के शेष गलियारों के बारे में 23 सितंबर को विचार किया जायेगा.

 

मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि मेट्रो के लिये इस परियोजना में केन्द्र और दिल्ली बराबर के साझेदार हैं, इसलिए दोनों को भूमि की कीमत 50:50 के अनुपास में वहन करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मेट्रो की पहले की परियोजना में केन्द्र और दिल्ली सरकार ने भूमि की कीमत बराबर बराबर साझा की थी. उन्होंने कहा कि केन्द्र ने 2017 की मेट्रो नीति में कहा है कि वह अब भूमि की कीमत साझा नहीं करेगी.

 

अतिरिक्त सालिसीटर जनरल ने पूछे ये सवाल

 

दिल्ली सरकार के वकील ने जब जापान से लिये गये ऋण की अदायगी नहीं होने के कारण पुनर्भुगतान का मुद्दा उठाया तो पीठ ने कहा कि जब आप मुफ्त में सुविधायें देंगे तो मेट्रो इसकी कीमत वहन नहीं कर सकती. पीठ ने कहा, “आप मेट्रो में यात्रा मु्फ्त करायेंगे और चाहते हैं कि इसका खर्च केन्द्र उठाये.” केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने कहा कि पिछले पांच साल में दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन को कभी भी घाटा नहीं हुआ है.

 

नाडकर्णी ने कहा कि केन्द्र की 2017 की मेट्रो नीति के दायरे में दूसरे राज्य भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि परिवहन राज्य का विषय है और उनकी मदद कर रहा है. केंद्र अगर दिल्ली को कोई विशेष रियायत देता है तो दूसरे राज्य, जहां मेट्रो परियोजनायें चल रही हैं, भी इसकी मांग कर सकते हैं. पीठ ने नाडकर्णी से कहा कि राष्ट्रीय राजधानी होने की वजह से दिल्ली के विशेष दर्जे को ध्यान में रखते हुये केन्द्र को इस विवाद को हल करना चाहिए ताकि इस परियोजना में विलंब नहीं हो.

 

शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को आदेश दिया था कि दिल्ली मेट्रो की चौथे चरण की परियोजना पर तत्काल अमल किया जाये और इसका निर्माण कार्य शुरू किया जाये. इस परियोजना के बाद मेट्रो में प्रतिदिन 18.6 लाख सवारियां बढ़ने का अनुमान है. चौथे चरण की 103.94 किलोमीटर लंबी परियोजना में 37.01 किलोमीटर भूमिगत होगी जबकि करीब 66.92 किलोमीटर लाइन खंबो पर होगी. इस परियोजना की अनुमानित लागत 46,845 करोड़ रुपये है.

 

दिल्ली मेट्रो रेल निगम का इस समय 343 किलोमीटर लंबा नेटवर्क है जिसमे प्रतिदिन औसतन 28 लाख लोग यात्रा करते हैं. दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सार्वजनिक परिवहन सेवा का मुद्दा उठा था. इसी में मेट्रो के चौथे चरण की परियोजना का मुद्दा भी न्यायालय के सामने आ गया था.

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