बिहार में दिमागी बुखार से 15 दिन में 80 बच्चों की मौत; स्वास्थ्य मंत्री ने कहा- इसके लिए नियति जिम्मेदार
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा- बच्चों की मौत के लिए प्रशासन या सरकार जिम्मेदार नहीं मस्तिष्क बुखार से अकेले मुजफ्फरपुर में अब तक 67 बच्चों की जान गई स्वास्थ्य विभाग ने कहा- लीची उत्पादक जिलों में इस बुखार का ज्यादा असर, 15 साल तक के बच्चे इससे ग्रसित
मुजफ्फरपुर.बिहार के मुजफ्फरपुर मेंमस्तिष्क बुखार (एईएस) से शनिवार को भी4 बच्चों की जान चली गई। इस बीमारी से राज्य में15 दिन में 80 बच्चों की मौत हो चुकी है। राज्य केस्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने एक चैनल से कहा- ”बच्चों की मौत के लिए न प्रशासन जिम्मेदार है और न ही सरकार। बच्चों की नियतिठीक नहीं थी। मौसम भी इसके लिए जिम्मेदार है। सरकार ने इलाज के लिए पूरे इंतजाम किए थे।” केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन रविवार को मुजफ्फरपुर का दौरा करेंगे।
#UPDATE: Death toll due to Acute Encephalitis Syndrome (AES) in Muzaffarpur rises to 77. 66 died at Sri Krishna Medical College and Hospital & 11 at Kejriwal Hospital. https://t.co/zj3KUfrYov
— ANI (@ANI) June 15, 2019
मुजफ्फरपुर में67, समस्तीपुर में5, वैशाली में5, मोतिहारी मे 1 बच्चे की जान गई है।दो बच्चे किस जिले के हैं इसकी जानकारी प्रशासन से नहीं मिली है।मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल में पिछले 15 दिनों में एईएस से ग्रसित67 बच्चों की मौत हो चुकीहै।एसकेएमसीएच मेंभर्ती 6 बच्चों की हालत गंभीर है। यहां अभी 80 बच्चों का इलाज चल रहा है। केजरीवाल अस्पताल में भी 6 बच्चोंकी स्थिति नाजुकहै। यहां 25 बच्चों का इलाज चल रहा है। दोनों अस्पतालों मेंअब तक 288 बच्चे भर्ती हुए हैं।
Dr. Shailesh Prasad Singh, Civil Surgeon, Muzaffarpur: Death toll rises to 73 due Acute Encephalitis Syndrome (AES). #Bihar https://t.co/7ZyuvKtsIY
— ANI (@ANI) June 15, 2019
40 डिग्री से अधिक तापमान होने पर बीमारी बढ़ती
एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. गोपाल शंकर साहनी ने बताया किशोध में यह बात सामने आईकि जब गर्मी 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक औरनमी 70 से 80 प्रतिशत के बीच होती है तो इस बीमारी का कहर बढ़ जाता है। बीमारी में बच्चे को तेज बुखार के साथ झटके आते हैं। हाथ-पैर में ऐंठन होती है, वह देखते-देखते बेहोश हो जाता है।
लक्षण दिखते ही इलाज करवाना जरूरी
स्वास्थ्यविभाग ने इस बीमारी को लेकरगाइडलाइन जारी की है।इसके अनुसार, रात में खाली पेट सोने वाले बच्चों के बीमार होने की आशंका ज्यादा होती है। बच्चे को बिना देरी किए दो घंटे के भीतरअस्पताल ले जानाजरूरी है। इसके लिए एईएस प्रभावित जिलों के पीडीएस दुकानों पर गाड़ियों का प्रबंधकिया गया है।
1-15 साल के बच्चे होते हैं शिकार
इस बीमारी में मस्तिष्क में सूजन हो जातीहै। यह उन जगहों पर पाईजातीहै जहां लीची के बगान अधिक हैं। 1-15 साल के बच्चे इसके अधिक शिकार होते हैं। बीमारी का लक्षण तेज बुखार, शरीर में चमकी, दांत बैठना, शरीर में ऐंठन और सुस्त औरबेहोश होना है। खून में शुगर की मात्रा अचानककम हो जाती है।
लीची से जुड़ी है बीमारी
स्वास्थ्यविभाग की गाइडलाइन के मुताबिक, लीची के बीज और फल में ऐसा रसायन होता है जो ब्लड शुगर के स्तर को अचानक कम कर देता है। यह रसायन पूरे पके लीची के फल में कम मात्रा में होता है। ज्यादा लीची खाने और भूखे पेट धूप में खेलने वालेबच्चे शिकार होते हैं।