डभरा (जांजगीर चांपा). पांच से आठ साल उम्र के दो भाइयों ने अपने 6 साल के दोस्त साहिल दास की पेंचकस से आंखें फोड़ीं। जब वह (साहिल) बेहोश हो गया तो उसे तालाब में फेंक दिया। साहिल की मौत हो चुकी है। घटना जांजगीर चांपा जिले के डभरा थानांतर्गत बगरैल गांव की है। वाकया रविवार का है। घटना के वक्त तीन अन्य बच्चे भी मौजूद थे।
दोस्तों के साथ खेलने गया था साहिल, बच्चे लौटकर बोले- चोर ले गया
- बच्चे खेलने के लिए जाने की बात कहकर घर से निकले थे। सभी बच्चे खेलकर लौट आए, लेकिन साहिल नहीं आया था। बहुत देर तक जब साहिल घर नहीं पहुंचा तो उसके दादा ने उसे बुलाने आए दोस्तों से उसके बारे में पूछताछ की। बच्चों ने बताया कि साहिल को बच्चा चोर ले गया है।
- इसके बाद परिजन ने खोजबीन शुरू की। उन्हें साहिल का शव गांव के तालाब में मिला, जिसे वे घर ले आए और पुलिस को सूचना दी। पुलिस की जांच में घटना का खुलासा हुआ। एसडीओपी अमित पटेल के अनुसार, रविवार शाम चार बजे दोस्त साहिल को लेने घर आए थे। इसके बाद उसकी हत्या हो गई।
साहिल ने आम खा लिए थे, इससे झगड़ा हुआ
जांजगीर की एसपी पारुल ने बताया, “डभरा थाना क्षेत्र के बगरैल गांव में रविवार को साहिल दास पिता शिव कुमार अपने 5 दोस्तों के साथ खेलने के लिए निकला था। दोस्त उसे घर से लेकर गए थे। कुछ देर खेलने के बाद उन्होंने आम खाने का मन बनाया। पास ही पेड़ पर एक बच्चा चढ़ा और एक-एककर आम तोड़कर नीचे फेंकने लगा। साहिल ने कुछ आम खा लिए। इससे वह नाराज हो गया।”
“दोनों के बीच आम को लेकर विवाद शुरू हो गया। बात इतनी बढ़ गई कि हाथापाई की नौबत आ गई। साहिल के पास जेब में एक पेंचकस था, वह दूसरे बच्चे उससे छीन लिया और साहिल की आंखों पर वार करने लगा। एक के बाद एक वार करते हुए बच्चे साहिल की दोनों आंखें फोड़ दीं। इस दौरान कुछ वार साहिल के सिर पर भी हुए थे।”
“साहिल के शरीर से खून बह रहा था। हमला करने वाले बच्चे का 8 साल का भाई भी साथ ही था। दोनों भाइयों ने मिलकर साहिल को पास के तालाब में फेंक दिया। दोनों उसके शरीर से बहते खून को देखकर डर गए थे। इस दौरान अन्य 3 बच्चे दहशत के कारण वे कुछ समझ ही न सके और बेबस देखते रहे।”
‘कार्टून और एनिमेशन फिल्में देखकर बच्चों में गुस्सा बढ़ रहा’
एम्स के एचओडी और साइकेट्री विभाग के डॉ. लोकेश सिंह ने बताया, “कार्टून और एनिमेशन देखकर बच्चे उग्र हो रहे हैं। वे सही और गलत की पहचान नहीं कर पाते। जो हीरो होता है, उन्हें आदर्श मानकर और वे जो कर रहे हैं उसे सही मानकर उनका अनुकरण करते हैं। आजकल कई पेरेंट्स को यही पता नहीं होता कि उनके बच्चे क्या देख रहे हैं। उन्हें बताने वाला भी कोई नहीं है कि क्या सही है और क्या गलत। हिंसक कार्यक्रमों से बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है। पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों को अपनी देखरेख में कार्टून या एनिमेशन फिल्म दिखाएं।”